रतलाम। बेसन को आटे की तरह गूंथकर, बारीक छेदों वाले बड़े 'झारे' से भट्टी की तेज आग में खौलते तेल में तल कर बनाई जा रही यह स्वादिष्ट चीज, वो व्यजंन है, जिसका नाम सुनते ही स्वाद के शौकीनों के मुंह में पानी आ जाता है. जिसको चखने के बाद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस स्वादिष्ट व्यंजन की तारीफ में कसीदे पढ़ने से खुद को रोक नहीं पाए.
जी हां, हम बात कर रहे हैं रतलाम के मशहूर सेव की, जिसके चलते आज पूरे देश में रतलाम की एक अलग पहचान बनी है. कहते हैं कि रतलामी सेव इतना खस्ता होता है, कि इसे होंठों से भी चबाया जा सकता है. रतलाम में सेव बनाने की शुरूआत सन 1962 में हुई थी. जोधपुर के महाराजा रतन सिंह ने जब अपनी राजधानी रतलाम को बनाया, तब वे अपने साथ एक हलवाई लादूराम के परिवार को साथ लेकर आए थे. रतलाम में सबसे पहले सेव बनाने का काम उन्हीं के द्वारा शुरू किया गया था, जो धीरे-धीरे रतलाम सहित पूरे मालवांचल में फेमस हो गया. कहा जाता है कि रतलाम के सेव को कागज या कपड़े में बांधकर रखने पर भी यह तेल नहीं छोड़ता है, जो इसकी सबसे बड़ी खासियत है.
सेव बनाने का काम रतलाम का सबसे बड़ा कारोबार माना जाता है. यहां एक हजार से भी ज्यादा दुकानों में इसे बनाने का काम किया जाता है. सेव की बढ़ती डिमांड को देखते हुये और रतलाम के नमकीन व्यापारियों को बढ़ावा देने के लिए यहां 23 करोड़ की लागत से नमकीन क्लस्टर भी बनवाया गया है, लेकिन शहर से दूर होने की वजह से ये योजना खटाई में पड़ती दिख रही है. क्योंकि रतलाम के नमकीन व्यापारियों की इसमें विशेष रुचि नहीं है.
रतलाम के इन सेवों को देश में एक अलग पहचान दिलाने में रतलाम रेलवे स्टेशन का भी बड़ा योगदान माना जाता है, क्योंकि यहां से गुजरने वाले यात्री रतलामी सेव ले जाना नहीं भूलते हैं. यही वजह है कि रतलामी सेव का जायका धीरे-धीरे दुनिया भर के लोगों में पहुंच रहा है क्योंकि इसका स्वाद ही इतना लजीज है जो किसी के भी मुंह में पानी ला ही देता है.