रतलाम। मध्यप्रदेश के 219 नंबर की सीट है रतलाम ग्रामीण विधानसभा. वर्ष 2008 में यह अनुसूचित जनजाति यानी ट्राइबल के लिए आरक्षित हुई थी. इसके बाद से दो बार भाजपा के पास जबकि एक बार कांग्रेस के पास रही है. अभी यहां से भाजपा के 46 वर्षीय दिलीप कुमार मकवाना विधायक हैं और 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए भी वे तैयारी कर रहे हैं, लेकिन दिलीप मकवाना भारी उहापोह में है, क्योंकि पार्टी हर बार यहां से अपना प्रत्याशी बदल देती है. जबकि कांग्रेस की तरफ से इस बार भी थावरलाल भूरिया के चुनाव लड़ने की तैयारी है. हालांकि यहां से कांतिलाल भूरिया के बेटे और यूथ कांग्रेस के एमपी अध्यक्ष विक्रांत भूरिया भी चुनाव लड़ने के लिए सक्रिय हैं. यदि कोई बड़ा विरोध नहीं हुआ तो वे यहां से चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसे में भाजपा के लिए मुश्किलें होंगी, क्योंकि दिलीप मकवाना कांग्रेस के विक्रांत भूरिया की अपेक्षा कमजोर कैंडीडेट हैं. ऐसे में भाजपा भी चुनाव के लिए नए चेहरे की तलाश में है, जो विक्रांत भूरिया को टक्कर दे सके. यदि मुद्दे की बात करें तो भाजपा इस बार भी विकास के मुद्दे पर अडिग है, जबकि कांग्रेस बेरोजगारी और भ्रष्टाचार काे मुद्दा बनाने की तैयारी में है.
रतलाम ग्रामीण सीट का राजनीतिक इतिहास: इस विधानसभा क्षेत्र के उपलब्ध डेटा के अनुसार वर्ष 1977 के चुनाव में कुल 64346 मतदाता थे. इसमें से पहली बार कुल 35447 वोट पड़े थे और तब संघ समर्थित जनता पार्टी के उम्मीदवार सूरजमल जैन जीतकर विधायक बने थे. उन्हें कुल 19738 वोट हासिल हुए थे. जबकि पाटीदार बाहुल्य होने के बाद भी कांग्रेस के उम्मीदवार हरिराम पाटीदार 12038 वोट ही ले पाए और 7700 वोटों से हार गए. जब 1980 में विधानसभा चुनाव हुए तो यहां से कांग्रेस ने कैंडीडेट बदल दिया और शांतिलाल अग्रवाल को टिकट दिया. कांग्रेस का यह दांव ठीक पड़ा और उन्होंने 19048 वोट लेकर भाजपा के सिटिंग एमएलए सूरजमल जैन को 4371 वोटों से हराया. जैन को तब कुल 14677 वोट ही मिले थे.
1985 से 1993 तक रतलाम ग्रामीण का सियासी इतिहास: वहीं 1985 में एक बार फिर कांग्रेस ने अपने सिटिंग एमएलए शांतिलाल अग्रवाल पर भरोसा जताया. उन्होंने इस भरोसे को कायम रखते हुए 5922 वोट से जीत दिलाई व दूसरी बार विधायक बने. जबकि भाजपा ने इस बार चेहरा बदलकर भुवन चौधरी को टिकट दिया था. अग्रवाल को 26192 वोट मिले और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार भुवन चौधरी को 20270 वोट मिले. वर्ष 1990 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बदल दिया. शांतिलाल अग्रवाल की बजाय मोती लाल को टिकट दिया. कांग्रेस का यह बदलाव फिर काम आया और इस बार भी उनका ही प्रत्याशी जीता. मोतीलाल दवे को कुल 35764 वोट मिले. जबकि भाजपा ने लगातार तीसरी बार अपना प्रत्याशी दबला और इस बार दीन दयाल पाटीदार को टिकट दिया, जो 31281 वोट लेकर 4483 वोटों से हार गएय भाजपा ने हार का सिलसिला रोकने के लिए हारे हुए कैंडीडेट दीनदयाल पाटीदार को ही वर्ष 1993 में टिकट दिया, जबकि कांग्रेस ने अपने सिटिंग एमएलए मोतीलाल दवे को फिर से टिकट दियाय इस बार भी मोतीलाल दवे जीतेय दवे को को कुल 43087 वोट मिले और भाजपा के दीनदयाल को कुल 36914 वोट मिले. इस तरह कांग्रेस उम्मीदवार यह चुनाव 6173 वोटों से जीत गए.
1998 से 2003 तक रतलाम सीट पर कांग्रेस-बीजेपी की जद्दोजहद: भाजपा ने हार का क्रम तोड़ने के लिए 1998 में फिर से चेहरा बदला और दीनदयाल पाटीदार की बजाय धूलजी चौधरी को टिकट दिया. जबकि कांग्रेस ने फिर से मोतीलाल दवे पर ही दांव लगाया. इस बार भी कांग्रेस का दांव फिट बैठा और दवे को 41834 वोट मिले, जबकि भाजपा के चौधरी 39165 वोट लेकर बहुत ही कम मार्जिन 2669 वोटों से हार गए. भाजपा की बैचेनी इस सीट को जीतने के लिए बढ़ती जा रही थी. इसीलिए भाजपा ने धूलजी चौधरी को पूरे पांच साल क्षेत्र में संपर्क करने के लिए कहा. इस बार उनकी यह ट्रिक काम कर गई और 2003 के विधानसभा चुनाव में धूल जी चौधरी ने यह चुनाव 9410 वोट से जीता. जबकि उनके सामने तीन बार के विधायक मोतीलाल दवे को कांग्रेस ने टिकट दिया था. मोतीलाल को इस बार 45307 वोट मिले, जबकि धूल जी चौधरी को 54717 वोट मिले.
सीट रिजर्व होने के बाद भाजपा का पलड़ा हुआ भारी: वर्ष 2008 में रतलाम ग्रामीण सीट अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व हो गई. ऐसे में दोनों ही पार्टी को अपना कैंडीडेट इस बार बदलना पड़ा. भाजपा ने मथुरालाल डामर और कांग्रेस ने लक्ष्मीदेवी खराड़ी को टिकट दिया. इस बार 101601 वोट डाले गए. इसमें से कांग्रेस की उम्मीदवार लक्ष्मी देवी खराड़ी को 46619 वोट मिले और उन्होंने 44068 वोट प्राप्त करने वाले बीजेपी के उम्मीदवार मथुरा लाल डामर को 2551 वोटों से हराया. लेकिन भाजपा ने 2013 में दोबारा मथुरालाल को टिकट दिया. इस बार भाजपा का दांव सही बैठा और उनके प्रत्याशी को इस सीट की सबसे बड़ी जीत मिली. कुल 138314 वोट डाले गए, जिसमें से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार मथुरालाल को कुल 77367 वोट मिले, जबकि कांग्रेस की उम्मीदवार लक्ष्मी देवी खराड़ी को कुल 50398 वोटों मिले और वे दूसरे स्थान पर रहीं. मथुरा लाल को कुल 26969 वोटों से जीत मिली.
साल 2018 में क्या रहा परिणाम: भाजपा ने एक इंटरनल सर्वे को आधार बनाकर 2018 में रतलाम ग्रामीण विधानसभा से अपना प्रत्याशी बदल दिया और मथुरालाल की बजाय दिलीप मकवाना को टिकट दिया गया. वहीं कांग्रेस ने भी उम्मीदवार बदल दिया और थावरलाल भूरिया को टिकट दिया गया, लेकिन इस बार भाजपा का दांव सटीक बैठा और उनके प्रत्याशी दिलीप मकवाना को कुल वोटिंग 161893 में से 79806 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार थावरलाल भूरिया कुल 74201 वोट मिली और वे 5605 वोटों से हार गए.
रतलाम ग्रामीण सीट के स्थानीय मुद्दे: इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़ा मुद्दा बेराेजगारी ही है. लगभग आबादी खेती किसानी पर निर्भर है, लेकिन सबसे बड़ी संख्या में रहने वाले आदिवासी मजदूरी पर निर्भर है. किसी भी तरह की इंडस्ट्री नहीं होने से उन्हें मजदूरी के लिए गुजरात जाना पड़ता है. इसके अलावा दूसरी बड़ी समस्या स्वास्थ्य सेवाएं हैं. यहां सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तो खोल दिए, लेकिन उनमें डॉक्टरों की कमी जनता को अखरती है.
रतलाम ग्रामीण में जातीय समीकरण: इसमें सबसे बड़ी संख्या आदिवासियों की है. दलित और आदिवासी मिलाकर करीब 80 हजार मतदाता है. इसके बाद पाटीदार आते हैं. तीसरे नंबर पर ठाकुर और चाेथे नंबर पर ब्राह्मण, मुस्लिम और अन्य जातियां समान रूप से आती हैं.
रतलाम ग्रामीण क्षेत्र की खासियत: रतलाम ग्रामीण क्षेत्र में नामली नगर पंचायत और धामनोद नगर पंचायत के रूप में दो ही छोटे शहर आते हैं. जबकि बड़े ग्रामो कि दृष्टि से बांगरोद, बिरमावल, धराड़ ओर सिमलावदा पंचायते हैं. भौगोलिक दृष्टि से दक्षिण में बदनावर विधानसभा, उत्तर में जावरा पूर्व में बड़नगर और पश्चिम में सैलाना विधानसभा है. यहां रतलाम जनपद आता है और इसमें जनपद पंचायत के 25 वार्ड एवम जिला पंचायत के चार 4 वार्ड आते हैं. इस पूरे एरिया में एकमात्र अंगूर से बनने वाली वाइन फैक्ट्री है और किसानों ने इसके कारण अंगूर की खेती शुरू कर दी. बाकी सोयाबीन और गेंहू की फसल लगाई जाती है.