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कोरोना की भेंट चढ़ा 'जलसा-ए-चालीसवां' पर्व

रतलाम जिले की आलोट तहसील में हर साल मनाया जाने वाला 'जलसा ए चालीसवां' पर्व कोरोना की भेंट चढ़ गया. कोरोना काल के चलते क्षेत्र में माहौल शांत रहा. ना तो ताजिये के साथ जुलुस निकाला गया और ना ही बैंड बाजों को बुलाया गया.

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कोरोना की भेंट चढ़ा 'जलसा-ए-चालीसवां' पर्व
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Published : Oct 11, 2020, 3:03 PM IST

रतलाम। आलोट तहसील में हर साल मोहर्रम पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, आलोट में मोहर्रम पर्व को 'जलसा ए चालीसवां' के नाम से जाना जाता है. लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए मोहर्रम पर्व नहीं मनाया गया. आलोट में तीन दिन तक चलने वाले इस त्यौहार में मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और कई जगह से लोग आते हैं. यहां लोग जुलुस के रूप में हजारों की संख्या में उपस्थित रहते हैं.

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इस जलसे में आस-पास के सभी राज्यों से बैंड-बाजों को बुलाया जाता है, जिसमें गुजरात का बाला सिंदूर बैंड, राजस्थान का भीलवाड़ा बैंड, मध्य प्रदेश के आलोट, रतलाम, नागदा, ताल, जावरा, खाचरोद, महिदपुर और कई जगहों से बैंड आते हैं. यह सभी बैंड कलाम (नात) पेश करते हैं और दिन-रात लोग बैंड पर नात-ए-पाक सुनते हैं. साथ ही ताजिये की ज्यारत करते हैं. रात भर जुलुस के तौर पर नगर भ्रमण कर लोग दूसरे दिन सुबह छिटे की रस्म अदा कर वापस अपने स्थान पर चले जाते हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते इस साल मोहर्रम पर्व पर ताजिये और जुलुस नहीं निकाला गया और ना ही बैंड-बाजों की धूम रही.

रतलाम। आलोट तहसील में हर साल मोहर्रम पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, आलोट में मोहर्रम पर्व को 'जलसा ए चालीसवां' के नाम से जाना जाता है. लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए मोहर्रम पर्व नहीं मनाया गया. आलोट में तीन दिन तक चलने वाले इस त्यौहार में मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और कई जगह से लोग आते हैं. यहां लोग जुलुस के रूप में हजारों की संख्या में उपस्थित रहते हैं.

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इस जलसे में आस-पास के सभी राज्यों से बैंड-बाजों को बुलाया जाता है, जिसमें गुजरात का बाला सिंदूर बैंड, राजस्थान का भीलवाड़ा बैंड, मध्य प्रदेश के आलोट, रतलाम, नागदा, ताल, जावरा, खाचरोद, महिदपुर और कई जगहों से बैंड आते हैं. यह सभी बैंड कलाम (नात) पेश करते हैं और दिन-रात लोग बैंड पर नात-ए-पाक सुनते हैं. साथ ही ताजिये की ज्यारत करते हैं. रात भर जुलुस के तौर पर नगर भ्रमण कर लोग दूसरे दिन सुबह छिटे की रस्म अदा कर वापस अपने स्थान पर चले जाते हैं. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते इस साल मोहर्रम पर्व पर ताजिये और जुलुस नहीं निकाला गया और ना ही बैंड-बाजों की धूम रही.

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