रतलाम। गेहूं उपार्जन केंद्रों पर दो-दो दिनों तक इंतजार करने के बाद फसल तोलने वाले किसानों से उपार्जन की राशि में से सहकारी समितियों के ऋण की वसूली की जा रही है. ऋण वसूलने के बाद किसानों को बैंकों से वापस लोन भी नहीं मिल पा रहा है. कोरोना काल में पहले से ही आर्थिक तंगी से जूझ रहे किसान अब अपनी ही फसल का भुगतान लेने के लिए बैंक के चक्कर काटने को मजबूर हैं.
गेहूं उपार्जन केंद्र पर अपनी फसल बेचने वाले किसानों की कुल राशि में से 50% तक की ऋण वसूली के निर्देश शासन द्वारा जारी किए गए हैं, लेकिन ऋण की राशि वसूलने के बाद भी किसानों को सहकारी समितियां पुनः ऋण देने के लिए चक्कर लगवा रही हैं. सहकारी समितियों से किसानों को फिर से कृषि लोन नहीं दिया जा रहा है. जिससे किसानों के सामने आगामी फसल के लिए खाद-बीज खरीदने का संकट खड़ा हो गया है.
किसानों का कहना है कि एक तरफ तो सरकार किसानों से ऋण नहीं वसूलने की बात कह रही है, दूसरी ओर गेहूं उपार्जन केंद्र से सीधे ही कृषि लोन की राशि काटी जा रही है. कई किसानों के सहकारी समितियों का ऋण जमा किए जाने के बाद भी उनके गेहूं उपार्जन की राशि से ऋण वसूली की गई है. इस मामले में जिम्मेदार अधिकारी मौन धारण किए हुए हैं, वहीं अपनी फसलों के गिरे हुए दामों से परेशान किसान बैंकों और सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने को मजबूर हैं.