नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने छत्तीसगढ़ के एक ईसाई व्यक्ति की याचिका पर खंडित फैसला सुनाया. इसमें उसने अपने पिता को या तो उनके पैतृक गांव छिंदवाड़ा के कब्रिस्तान में या अपनी निजी कृषि भूमि पर दफनाने की मांग की थी.
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने रमेश बघेल की याचिका पर फैसला सुनाया. उन्होंने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने उनके पिता को गांव में आदिवासियों के कब्रिस्तान में दफनाने की इजाजत नहीं दी थी. उनके पिता पादरी थे. बघेल ने कहा कि ग्रामीणों ने दफनाने को लेकर विरोध किया.
आज, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बघेल की अपने पिता को उनकी निजी संपत्ति में दफनाने की याचिका को अनुमति दे दी. हालांकि न्यायमूर्ति शर्मा उनकी राय से सहमत नहीं थे. उन्होंने कहा कि धर्मांतरित ईसाई का अंतिम संस्कार निर्धारित स्थान पर ही किया जाना चाहिए जो याचिकाकर्ता के मूल स्थान से 20-25 किलोमीटर दूर स्थित है.
यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता के पिता का शव 7 जनवरी से शवगृह में रखा हुआ था, दो न्यायाधीशों की पीठ ने मामले को तीसरे न्यायाधीश की पीठ को नहीं भेजा और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता अपने पिता को अपने पैतृक गांव से 20-25 किलोमीटर दूर स्थित ईसाई कब्रिस्तान में दफनाए. पीठ ने राज्य सरकार और स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे उन्हें सभी तरह की रसद सहायता प्रदान करें और याचिकाकर्ता के परिवार को पर्याप्त पुलिस सुरक्षा प्रदान करें.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने अपनी राय में कहा कि याचिकाकर्ता के पिता को सम्मानजनक तरीके से दफनाया जाना उचित है. गांव के स्थानीय अधिकारियों की आलोचना करते हुए क्योंकि याचिकाकर्ता अपने पिता को उनकी इच्छा के अनुसार दफना नहीं सका, न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि गांव स्तर या उच्च स्तर पर स्थानीय अधिकारियों का ऐसा रवैया धर्मनिरपेक्षता के उत्कृष्ट सिद्धांत और हमारे देश की गौरवशाली परंपराओं के साथ विश्वासघात को दर्शाता है.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, 'धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे की अवधारणा... सभी धार्मिक आस्थाओं के बीच सद्भाव का प्रतिबिंब है जो देश में समान भाईचारे और सामाजिक ताने-बाने की एकता की ओर ले जाती है.' न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा कि वे न्यायमूर्ति नागरत्ना की राय से सहमत नहीं हैं.
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, 'इस प्रकार सम्मान के साथ मैं न्यायसंगत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने की आवश्यकता को समझने में असमर्थ हूं और याचिकाकर्ता को अपने पिता के शव को अपनी निजी भूमि पर दफनाने का समर्थन नहीं करता हूं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दफनाने की प्रक्रिया संविधान के भाग III के तहत संरक्षित अधिकारों का एक हिस्सा है. हालांकि मामले में जगह चुनने की छूट संविधान की सीमाओं से परे है.
न्यायमूर्ति शर्मा ने कहा, 'यह अच्छी तरह से स्थापित है कि अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित अधिकार कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं के अधीन हैं. अनुच्छेद 25 के तहत धर्म को मानने, उसका पालन करने का अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था के अधीन है. हाईकोर्ट ने ग्राम पंचायत के सरपंच द्वारा जारी प्रमाण पत्र पर भरोसा करते हुए कि ईसाइयों के लिए अलग से कोई कब्रिस्तान नहीं है, बेटे को दफनाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था.
हाईकोर्ट का कहना था कि इससे आम जनता में अशांति और असमंजस्य पैदा हो सकता है. पादरी की मृत्यु वृद्धावस्था के कारण हुई. बघेल के अनुसार छिंदवाड़ा गांव में एक कब्रिस्तान था जिसे ग्राम पंचायत ने शवों को दफनाने और दाह संस्कार के लिए मौखिक रूप से आवंटित किया था.
कब्रिस्तान में आदिवासियों को दफनाने, हिंदू धर्म के लोगों को दफनाने या दाह संस्कार करने तथा ईसाई समुदाय के लोगों के लिए अलग-अलग क्षेत्र निर्धारित किए गए थे. याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता और उसके परिवार के सदस्य चाहते थे कि व्यक्ति को कब्रिस्तान में ईसाई लोगों के लिए निर्दिष्ट क्षेत्र में दफनाया जाए.