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नेत्रहीन शिक्षक जिन्होंने कमजोरी को बनाया हथियार, 'दिव्य दृष्टि' से बच्चों को पढ़ा रहे सामाजिक विज्ञान

रतलाम शहर के शिवगढ़ शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक शाला में एक दृष्टिहीन शिक्षक बच्चों को सामाजिक विज्ञान पढ़ाते है. आज के समय में शिक्षक से पढ़ी कई बच्चे सरकारी नौकरी कर रहे है. शिक्षक राजेश का कहना है कि बचपन में मेरे जीवन में अंधकार छा गया था. लेकिन मैंने कभी इसे मेरी कमजोरी नहीं बनने दिया. आज भी मैं बच्चों को अपनी कमजोरी से लड़ने की सीख देता हूं. बच्चों को पढ़ाना मेरा जुनून है.

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Published : Oct 31, 2021, 12:32 PM IST

Updated : Nov 3, 2021, 3:32 PM IST

blind teacher teaching children in ratlam
रतलाम में बच्चों को पढ़ा रहे नेत्रहीन शिक्षक

रतलाम। कहते है कि जीवन में अगर अंधकार छा जाए तो इंसान निराशा में डूब जाता है. लेकिन शिवगढ़ के एक सरकारी स्कूल के ब्लाइंड टीचर बच्चों के जीवन में शिक्षा की रोशनी का अलख विगत 13 साल से जगाता आ रहा है. इस ब्लाइंड टीचर से पढ़ी हुई कई बालिकाएं आज सरकारी नौकरी कर प्रशासनिक व्यवस्था में अपना योगदान दे रही है. हम बात कर रहे है रतलाम जिले के आदिवासी अंचल के शिवगढ़ स्थित शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक स्कूल में पदस्थ ब्लाइंड टीचर राजेश परमार की.

राजेश यहां वर्ष 2003 में सामाजिक विज्ञान के टीचर के रूप में पदस्थ हुए थे. कक्षा 9वीं से लेकर 12वीं तक को पढ़ाने वाले राजेश परमार से पढ़ी हुई कई बालिकाएं आज सरकारी नौकरी कर रही है. शिक्षक राजेश बताते है कि वे जन्म से ब्लाइंड नहीं थे. मूल रूप से रतलाम जिले के ग्राम धमनोद के निवासी राजेश जब कक्षा आठवीं में पढ़ते थे, तब उनकी आंखों की रोशनी अचानक चली गई. परिवार सदमे में आ गया था, लेकिन राजेश ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी पढ़ाई पूरी की.

रतलाम में बच्चों को पढ़ा रहे नेत्रहीन शिक्षक

संघर्षमय रहा यहां तक का समय

राजेश बताते है कि 8वीं कक्षा में आंखों की रोशनी जाने के बाद भी मैंने पढ़ना नहीं छोड़ा. इंदौर के ब्लाइंड स्कूल में प्रवेश लिया और अपनी शिक्षा को जारी रखा. यहां राजेश ने ब्रेनलिपि में पढ़ाई की. इसके बाद कक्षा 11वीं और 12वीं भोपाल में सामान्य बच्चों के साथ पढ़कर उतीर्ण की. इस दौरान उन्होंने टेलीफोन आपरेटिंग का कोर्स भी किया. फिर पढ़ाई पुरी करने के बाद वर्ष 2003 में शिक्षकों की भर्ती में विकलांग कोटे में आवेदन किया.

इस भर्ती प्रक्रिया में शिक्षक के पद पर चयनित भी हो गए. शिवगढ़ के शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक स्कूल में पोस्टिंग हुई. तब से लेकर आज तक वो वहां सामान्य बच्चों को सामाजिक विज्ञान पढ़ा रहे है. स्कूल में सामाजिक विज्ञान विषय का परिणाम आज तक कभी खराब नहीं रहा.

अलग तरीके से पढ़ाते है राजेश

राजेश के पढ़ाने का तरीका भी अलग है. पहले वह बच्चों को जो याद होता है, वह बच्चों से पढ़वाते है. फिर उसमें से खुद प्रश्न बनाकर बच्चों को उत्तर भी लिखवाते है. समझाने के लिए वो क्लास रूम में ब्लैक बोर्ड पर भी लिखते है. जिसमें अब उनकी ब्लाइंडनेस आड़े नहीं आती है.

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राजेश की पत्नी भी है दृष्टिहीन

शिक्षक राजेश के परिवार में कुल 5 सदस्य है, जिसमें उनकी पत्नी और तीन बेटियां है. उनकी पत्नी भी 60 प्रतिशत दृष्टिबाधित है. लेकिन उनकी तीनों बेटियां पूरी तरह से स्वस्थ है. सबसे छोटी बेटी कक्षा 4 में है. वह अपने माता-पिता के साथ शिवगढ़ में ही रहती है. राजेश की दो बड़ी बेटियां कक्षा 10 और कक्षा 8 में इंदौर में नाना-नानी के पास रहकर पढ़ाई कर रही है.

बच्चों के जिवन में भर रहे शिक्षा की रोशनी

राजेश घर से स्कूल किसी न किसी के सहारे आते है, लेकिन स्कूल में उन्हें एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाने के लिए किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती है. अब वो अपनी आंखों की रोशनी न होने के बावजूद स्कूल के हर क्लासरूम में बेधड़क आते जाते है. राजेश का कहना है कि उनके जीवन में जो अंधकार छाया है, वह उससे कभी निराश नहीं हुए. बल्कि जीवन में कुछ करने की ठाना और आज दिल को खुशी है कि वह खुद अंधकार में होने के बाद भी बच्चों के जीवन मे शिक्षा की रोशनी बिखेर रहे है.

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साथी शिक्षकों के साथ करते है अच्छा व्यवहार

राजेश की साथी शिक्षक हंसा चौहान बताती है कि राजेश सर यहां पर 2003 से कार्यरत है. मेरा यहां पर ट्रांसफर बाद में हुआ. इतने कम समय में सर और मैं अच्छे सहकर्मी बन गए है. हंसा का कहना है कि सर का कमांड बहुत अच्छा है. उनकी एक आवाज में सारे बच्चे व्यवस्थित बैठ जाते है. पढ़ाने के मामले में सर काफी अच्छे है. सर को बहुत सारी चिजें मौखिक रुप से याद है. वे अपने हिसाब से चैप्टर को समझा देते है. बच्चे भी उनका सहयोग करते है.

सर को बच्चे एक बा बता देते हैं कि उनको यह चैप्टर पढ़ना है. इसके बाद सर बिना किसी सहयोग से चैप्टर बच्चों को पढ़ा देते है. सर बच्चों को पढ़ाते हुए चैप्टर से जुड़ा एक्स्ट्रा नॉलेज भी बच्चों को देते है. बच्चे पढ़ने के दौरान सर से विचार विमर्श भी करते है. सर भी बच्चों की सभी जिज्ञासा का समाधान कर देते है.

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पत्नी से सम्मेलन में हुआ परिचय

शिक्षक राजेश की पत्नी सारीका बताती है कि शादी के बाद थोड़ी दिक्कतें आई थी, लेकिन अब धीरे-धीरे सब मैनेज होता चला गया. सारीका ने कहा कि सर से मेरी मुलाकात शादी से पहले एक सम्मेलन के दौरान हुई थी. किला मैदान में हमारी एक संस्था है. इस संस्था के अध्यक्ष सर ही थे. यहां पढ़ाने वाली एक मैडम ने हमारा परिचय करवया. इसके बाद परिवार वाले मिले और शादी हो गई. अब मैं यहीं चाहती हूं कि हमारी बैटियां पढ़े और बहुत नाम करें.

रतलाम। कहते है कि जीवन में अगर अंधकार छा जाए तो इंसान निराशा में डूब जाता है. लेकिन शिवगढ़ के एक सरकारी स्कूल के ब्लाइंड टीचर बच्चों के जीवन में शिक्षा की रोशनी का अलख विगत 13 साल से जगाता आ रहा है. इस ब्लाइंड टीचर से पढ़ी हुई कई बालिकाएं आज सरकारी नौकरी कर प्रशासनिक व्यवस्था में अपना योगदान दे रही है. हम बात कर रहे है रतलाम जिले के आदिवासी अंचल के शिवगढ़ स्थित शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक स्कूल में पदस्थ ब्लाइंड टीचर राजेश परमार की.

राजेश यहां वर्ष 2003 में सामाजिक विज्ञान के टीचर के रूप में पदस्थ हुए थे. कक्षा 9वीं से लेकर 12वीं तक को पढ़ाने वाले राजेश परमार से पढ़ी हुई कई बालिकाएं आज सरकारी नौकरी कर रही है. शिक्षक राजेश बताते है कि वे जन्म से ब्लाइंड नहीं थे. मूल रूप से रतलाम जिले के ग्राम धमनोद के निवासी राजेश जब कक्षा आठवीं में पढ़ते थे, तब उनकी आंखों की रोशनी अचानक चली गई. परिवार सदमे में आ गया था, लेकिन राजेश ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी पढ़ाई पूरी की.

रतलाम में बच्चों को पढ़ा रहे नेत्रहीन शिक्षक

संघर्षमय रहा यहां तक का समय

राजेश बताते है कि 8वीं कक्षा में आंखों की रोशनी जाने के बाद भी मैंने पढ़ना नहीं छोड़ा. इंदौर के ब्लाइंड स्कूल में प्रवेश लिया और अपनी शिक्षा को जारी रखा. यहां राजेश ने ब्रेनलिपि में पढ़ाई की. इसके बाद कक्षा 11वीं और 12वीं भोपाल में सामान्य बच्चों के साथ पढ़कर उतीर्ण की. इस दौरान उन्होंने टेलीफोन आपरेटिंग का कोर्स भी किया. फिर पढ़ाई पुरी करने के बाद वर्ष 2003 में शिक्षकों की भर्ती में विकलांग कोटे में आवेदन किया.

इस भर्ती प्रक्रिया में शिक्षक के पद पर चयनित भी हो गए. शिवगढ़ के शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक स्कूल में पोस्टिंग हुई. तब से लेकर आज तक वो वहां सामान्य बच्चों को सामाजिक विज्ञान पढ़ा रहे है. स्कूल में सामाजिक विज्ञान विषय का परिणाम आज तक कभी खराब नहीं रहा.

अलग तरीके से पढ़ाते है राजेश

राजेश के पढ़ाने का तरीका भी अलग है. पहले वह बच्चों को जो याद होता है, वह बच्चों से पढ़वाते है. फिर उसमें से खुद प्रश्न बनाकर बच्चों को उत्तर भी लिखवाते है. समझाने के लिए वो क्लास रूम में ब्लैक बोर्ड पर भी लिखते है. जिसमें अब उनकी ब्लाइंडनेस आड़े नहीं आती है.

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राजेश की पत्नी भी है दृष्टिहीन

शिक्षक राजेश के परिवार में कुल 5 सदस्य है, जिसमें उनकी पत्नी और तीन बेटियां है. उनकी पत्नी भी 60 प्रतिशत दृष्टिबाधित है. लेकिन उनकी तीनों बेटियां पूरी तरह से स्वस्थ है. सबसे छोटी बेटी कक्षा 4 में है. वह अपने माता-पिता के साथ शिवगढ़ में ही रहती है. राजेश की दो बड़ी बेटियां कक्षा 10 और कक्षा 8 में इंदौर में नाना-नानी के पास रहकर पढ़ाई कर रही है.

बच्चों के जिवन में भर रहे शिक्षा की रोशनी

राजेश घर से स्कूल किसी न किसी के सहारे आते है, लेकिन स्कूल में उन्हें एक कक्षा से दूसरी कक्षा में जाने के लिए किसी के सहारे की जरूरत नहीं पड़ती है. अब वो अपनी आंखों की रोशनी न होने के बावजूद स्कूल के हर क्लासरूम में बेधड़क आते जाते है. राजेश का कहना है कि उनके जीवन में जो अंधकार छाया है, वह उससे कभी निराश नहीं हुए. बल्कि जीवन में कुछ करने की ठाना और आज दिल को खुशी है कि वह खुद अंधकार में होने के बाद भी बच्चों के जीवन मे शिक्षा की रोशनी बिखेर रहे है.

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साथी शिक्षकों के साथ करते है अच्छा व्यवहार

राजेश की साथी शिक्षक हंसा चौहान बताती है कि राजेश सर यहां पर 2003 से कार्यरत है. मेरा यहां पर ट्रांसफर बाद में हुआ. इतने कम समय में सर और मैं अच्छे सहकर्मी बन गए है. हंसा का कहना है कि सर का कमांड बहुत अच्छा है. उनकी एक आवाज में सारे बच्चे व्यवस्थित बैठ जाते है. पढ़ाने के मामले में सर काफी अच्छे है. सर को बहुत सारी चिजें मौखिक रुप से याद है. वे अपने हिसाब से चैप्टर को समझा देते है. बच्चे भी उनका सहयोग करते है.

सर को बच्चे एक बा बता देते हैं कि उनको यह चैप्टर पढ़ना है. इसके बाद सर बिना किसी सहयोग से चैप्टर बच्चों को पढ़ा देते है. सर बच्चों को पढ़ाते हुए चैप्टर से जुड़ा एक्स्ट्रा नॉलेज भी बच्चों को देते है. बच्चे पढ़ने के दौरान सर से विचार विमर्श भी करते है. सर भी बच्चों की सभी जिज्ञासा का समाधान कर देते है.

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पत्नी से सम्मेलन में हुआ परिचय

शिक्षक राजेश की पत्नी सारीका बताती है कि शादी के बाद थोड़ी दिक्कतें आई थी, लेकिन अब धीरे-धीरे सब मैनेज होता चला गया. सारीका ने कहा कि सर से मेरी मुलाकात शादी से पहले एक सम्मेलन के दौरान हुई थी. किला मैदान में हमारी एक संस्था है. इस संस्था के अध्यक्ष सर ही थे. यहां पढ़ाने वाली एक मैडम ने हमारा परिचय करवया. इसके बाद परिवार वाले मिले और शादी हो गई. अब मैं यहीं चाहती हूं कि हमारी बैटियां पढ़े और बहुत नाम करें.

Last Updated : Nov 3, 2021, 3:32 PM IST
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