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कागशीला: यहां आज भी मौजूद हैं संत माखन दास की तपस्या के साक्ष्य, 24 साल रहे थे निराहार

भारत संतों का देश कहा जाता है. यहां अनेक ऐसे संतों के चमत्कारों की कहानियां लोगों की यादों में बसी हुई हैं, जिन्होंने अपने तप से भारतवर्ष को तपोभूमि बना दिया और भारत की ख्याति पूरे विश्व मे फैला दी. ऐसे ही एक संत थे बाबा माखनदास. मान्यता है कि पौराणिक काल में बाबा माखन दास राजगढ़ जिले के कागशीला नामक स्थान पर तप किया करते थे.

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Published : Feb 21, 2019, 11:51 PM IST

राजगढ़

राजगढ़। भारत संतों का देश कहा जाता है. यहां अनेक ऐसे संतों के चमत्कारों की कहानियां लोगों की यादों में बसी हुई हैं, जिन्होंने अपने तप से भारतवर्ष को तपोभूमि बना दिया और भारत की ख्याति पूरे विश्व मे फैला दी. ऐसे ही एक संत थे बाबा माखनदास. मान्यता है कि पौराणिक काल में बाबा माखन दास राजगढ़ जिले के कागशीला नामक स्थान पर तप किया करते थे.

जहां माखनदास ने तपस्या की थी, वहां आज भी उनकी एड़ियों के निशान मौजूद हैं. इसके साथ ही जहां वह धूनी लगाते थे वह आज भी प्रज्वलित रहती है. ऐसा कहा जाता है कि जब वह तपस्या में लीन रहते थे, तब जंगली जानवरों से रक्षा करने के लिए उनके पास अनेक शेर आकर बैठ जाते थे और उनकी रक्षा किया करते थे. इसके साथ ही जिस स्थान पर वह सोया करते थे, वहां आज भी उनकी रीढ़ की हड्डी के निशान हैं. बताया जाता है कि उस जगह बरसात के मौसम में एक बूंद भी पानी नहीं गिरता है.

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माखनदास को पशु-पक्षियों से बहुत प्रेम था और वह पशु-पक्षियों को अपने ज्ञान का लाभ भी देते थे. लोगों का कहना है कि उन्होंने लगातार 24 साल तक निराहार तपस्या की थी. लेकिन, इस अवधि के दौरान उन्होंने कभी भी पशु-पक्षियों को भूखा नहीं रखा. जिस स्थान पर वे पशु-पक्षियों को दाना दिया करते थे वहां आज भी वहां पर पत्थर के रूप में अनाज मौजूद है. बताया जाता है कि इस स्थान पर माखन दास बाबा से पूर्व रामायण काल में माता शबरी ने भी तपस्या की थी और उनको भी अखंड ज्ञान का भंडार प्राप्त हुआ था.

राजगढ़। भारत संतों का देश कहा जाता है. यहां अनेक ऐसे संतों के चमत्कारों की कहानियां लोगों की यादों में बसी हुई हैं, जिन्होंने अपने तप से भारतवर्ष को तपोभूमि बना दिया और भारत की ख्याति पूरे विश्व मे फैला दी. ऐसे ही एक संत थे बाबा माखनदास. मान्यता है कि पौराणिक काल में बाबा माखन दास राजगढ़ जिले के कागशीला नामक स्थान पर तप किया करते थे.

जहां माखनदास ने तपस्या की थी, वहां आज भी उनकी एड़ियों के निशान मौजूद हैं. इसके साथ ही जहां वह धूनी लगाते थे वह आज भी प्रज्वलित रहती है. ऐसा कहा जाता है कि जब वह तपस्या में लीन रहते थे, तब जंगली जानवरों से रक्षा करने के लिए उनके पास अनेक शेर आकर बैठ जाते थे और उनकी रक्षा किया करते थे. इसके साथ ही जिस स्थान पर वह सोया करते थे, वहां आज भी उनकी रीढ़ की हड्डी के निशान हैं. बताया जाता है कि उस जगह बरसात के मौसम में एक बूंद भी पानी नहीं गिरता है.

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माखनदास को पशु-पक्षियों से बहुत प्रेम था और वह पशु-पक्षियों को अपने ज्ञान का लाभ भी देते थे. लोगों का कहना है कि उन्होंने लगातार 24 साल तक निराहार तपस्या की थी. लेकिन, इस अवधि के दौरान उन्होंने कभी भी पशु-पक्षियों को भूखा नहीं रखा. जिस स्थान पर वे पशु-पक्षियों को दाना दिया करते थे वहां आज भी वहां पर पत्थर के रूप में अनाज मौजूद है. बताया जाता है कि इस स्थान पर माखन दास बाबा से पूर्व रामायण काल में माता शबरी ने भी तपस्या की थी और उनको भी अखंड ज्ञान का भंडार प्राप्त हुआ था.
Intro:हिन्दुधर्म के अनुसार द्वापर और त्रेतायुग के महान संत माखनदास की तपो भूमि मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले की जीरापुर तहसील में कागशिला स्थित है यह वही भूमि है जहां पर उन्होंने तप किया था और अपना सम्पूर्ण जीवन भगवान के चरणों मे समर्पित कर दिया था।


Body:दअरसल बात ऐसी है कि भारत संतो का देश है जहाँ अनेक ऐसे संत हुए जिन्होंने अपने तप से भारतवर्ष को तपोभूमि बना दिया,और भारत की ख्याति पूरे विश्व मे फेला दी ।ऐसे ही एक संत थे बाबा माखनदास जी ,कहा जाता है पौराणिक काल में बाबा मोहन दास राजगढ़ जिले के कागशीला नामक स्थान पर तप किया करते थे।
इस स्थान पर ऐसा बताया जाता है कि उन्होंने हजारों वर्षों तक यहां बैठकर तपस्या की थी और इसको एक महान तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध किया था। वही आज भी यह तपस्या करने के प्रमाण मौजूद हैं।
यहां पर उनके बैठने के स्थान पर उनके कूल्हे द्वारा बैठ बैठ कर वह स्थान भी इंसान के कूल्हों की तरह हो गया है वही जब वह तपस्या के दौरान अपनी ऐडी को जमीन पर जहां रखते थे वहां पर भी ऐडी का निशान मौजूद हैं वहीं माखनदास जहां पर धूनी लगाते थे वहां पर आज भी धूनी मौजूद है और वह प्रज्वलित रहती है वही बताया जाता है कि जब वह अपनी तपस्या में लीन रहते थे तब जंगली जानवरों से रक्षा करने के लिए उनके पास अनेक शेर आकर बैठ जाते थे और उनकी रक्षा करते थे ,जब वह शयन करते थे तब भी यह शेर उनकी रक्षा करते थे। वहीं शयन करने वाले स्थान पर आज भी उनकी रीढ़ की हड्डी के निशान और उनके पैरों के निशान मौजूद है वही बताया जाता है कि वह जिस जगह तपस्या किया करते थे और जिस जगह शयन करते थे उस जगह बरसात के मौसम में एक बूंद भी पानी नहीं गिरता है ।

बताया जाता है कि माखन दास जी को पशु पक्षियों से बहुत प्रेम था और वह पशु पक्षियों को अपने ज्ञान का लाभ भी देते थे वही बताया जाता है कि उन्होंने लगातार 24 वर्षों तक निराहार तपस्या की थी परंतु इस अवधि के दौरान उन्होंने कभी भी पशु पक्षियों को भूखा नहीं रखा वह इस दौरान वहां पर आने वाले विभिन्न पशु पक्षियों को दाना दिया करते थे जो आज भी वहां पर पत्थर के रूप में अनाज मौजूद है।
वही बताया जाता है कि इस स्थान पर माखन दास बाबा से पूर्व यहां पर रामायण काल में माता शबरी ने भी इस स्थान पर तपस्या की थी और उनको भी अखंड ज्ञान का भंडार प्राप्त हुआ था।


Conclusion:वही बताया जाता है कि इस स्थान पर उनके तब का इतना प् असर था कि यहां पर भयानक पशु-पक्षी भी दूसरे पक्षियों को या पशुओं को परेशान नहीं किया करते थे और अपना संतो के जैसा जीवन व्यापन करते थे ।यह स्थान मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के भड़का गाँव मे स्थित है।

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