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जीवामृत ट्यूब इकाई: किसान खुद आसानी से लगाएं देसी फर्टिलाइजर फैक्ट्री, जानिए पूरी प्रक्रिया - JEEVAMRIT TUBE UNIT

बंजर हो रही जमीन को जीवामृत ट्यूब इकाई के उपयोग से बचाया जा सकता है. इस खाद से उर्वरकता और पैदावार दोगुनी होती है.

Jeevamrit Tube Unit
जीवामृत ट्यूब इकाई (ETV BHARAT)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 21, 2025, 4:22 PM IST

इंदौर : फर्टिलाइजर का दोगुना उपयोग और फसलों के लिए कीटनाशकों के बेतहाशा उपयोग के कारण अब प्रदेश के कई इलाकों की जमीन फसल उत्पादन के लिए बेकार होने की स्थिति में है. इसी क्रम में होशंगाबाद जिला भी है, जहां अगले 20 सालों में कई इलाकों की मिट्टी के बंजर होने की आशंका है. रसायनों के बढ़ता उपयोग के कारण मिट्टी का पीएच लेवल 7.5 से ज्यादा हो चुका है. इसके अलावा जमीन की क्षारीयता लगातार बढ़ रही है. कई जगहों पर जमीन का जैविक कार्बन 0.5% से भी कम हो चुका है. मध्य प्रदेश में अब तक हालांकि बंजर भूमि क्षेत्रफल बहुत कम था लेकिन अब राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के साथ मध्य प्रदेश में भी जमीनों के बंजर होने की आशंका है.

कैसे बनती है जीवामृत ट्यूब इकाई

किसानों द्वारा जैविक खेती को प्रोत्साहित करने एवं रासायनिक उर्वरता पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से जीवामृत ट्यूब इकाई एक बेहतर विकल्प बनकर उभर रही है. दरअसल, जीवामृत ट्यूब इकाई प्राकृतिक खाद बनाने की इकाई है. इसका इस्तेमाल फसल उत्पादन में वृद्धि के लिये किया जाता है. इस प्रक्रिया के जरिए प्राकृतिक खाद को बनाना आसान है. इसके निर्माण में गाय का गोबर, गौमूत्र, छाछ, गुड़, उबला चावल, बेसन, वेस्ट फूड और आवश्यकता अनुसार पानी की मात्रा लगती है.

Jeevamrit Tube Unit
कैसे बनती है जीवामृत ट्यूब इकाई (ETV BHARAT)

जीवामृत ट्यूब इकाई सेट करने की प्रक्रिया

इन सभी सामग्री को प्लास्टिक के ट्यूब में 60 दिन तक रखने के बाद वह एक प्राकृतिक खाद में बदल जाती है. इस यूनिट में एक नल लगाया जाता है. प्राकृतिक खाद में मौजूद पानी नल के माध्यम से प्रवाहित होता है, जो उत्कृष्ट कोटि का प्राकृतिक खाद होता है. इस खाद को फसल में अथवा भूमि पर डालने पर बंजर जमीन की उत्पादकता बढ़ने लगती है. वहीं भूमि में मौजूद क्षारीयता कम होने लगती है. इसके अलावा इस प्राकृतिक खाद की तुलना में रासायनिक उर्वरक महंगा होने की वजह से फसल की लागत बढ़ जाती है. इस दृष्टि से प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत ट्यूब इकाई एक सस्ती और उपयोगी खाद है.

ऐसे तैयार होती है देसी खाद

इंदौर संभाग आयुक्त दीपक सिंह ने बताया "जीवामृत ट्यूब इकाई प्राकृतिक खाद है. जिसका इस्तेमाल फसल उत्पादन में वृद्धि के लिये किया जाता है. इस प्राकृतिक खाद को बनाना आसान है. इसके निर्माण में गाय का गोबर, गौमूत्र, छाछ, गुड़, उबला चावल, बेसन, वेस्ट फूड और आवश्यकता अनुसार पानी की मात्रा लगती है. इन सभी सामग्री को प्लास्टिक के ट्यूब में 60 दिन तक रखने के बाद ये प्राकृतिक खाद में बदल जाती है. वर्तमान में रासायनिक उर्वरक महंगा होने की वजह से फसल की लागत बढ़ जाती है. इस दृष्टि से प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत ट्यूब इकाई सस्ती और उपयोगी खाद है."

इंदौर : फर्टिलाइजर का दोगुना उपयोग और फसलों के लिए कीटनाशकों के बेतहाशा उपयोग के कारण अब प्रदेश के कई इलाकों की जमीन फसल उत्पादन के लिए बेकार होने की स्थिति में है. इसी क्रम में होशंगाबाद जिला भी है, जहां अगले 20 सालों में कई इलाकों की मिट्टी के बंजर होने की आशंका है. रसायनों के बढ़ता उपयोग के कारण मिट्टी का पीएच लेवल 7.5 से ज्यादा हो चुका है. इसके अलावा जमीन की क्षारीयता लगातार बढ़ रही है. कई जगहों पर जमीन का जैविक कार्बन 0.5% से भी कम हो चुका है. मध्य प्रदेश में अब तक हालांकि बंजर भूमि क्षेत्रफल बहुत कम था लेकिन अब राजस्थान, झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के साथ मध्य प्रदेश में भी जमीनों के बंजर होने की आशंका है.

कैसे बनती है जीवामृत ट्यूब इकाई

किसानों द्वारा जैविक खेती को प्रोत्साहित करने एवं रासायनिक उर्वरता पर निर्भरता कम करने के उद्देश्य से जीवामृत ट्यूब इकाई एक बेहतर विकल्प बनकर उभर रही है. दरअसल, जीवामृत ट्यूब इकाई प्राकृतिक खाद बनाने की इकाई है. इसका इस्तेमाल फसल उत्पादन में वृद्धि के लिये किया जाता है. इस प्रक्रिया के जरिए प्राकृतिक खाद को बनाना आसान है. इसके निर्माण में गाय का गोबर, गौमूत्र, छाछ, गुड़, उबला चावल, बेसन, वेस्ट फूड और आवश्यकता अनुसार पानी की मात्रा लगती है.

Jeevamrit Tube Unit
कैसे बनती है जीवामृत ट्यूब इकाई (ETV BHARAT)

जीवामृत ट्यूब इकाई सेट करने की प्रक्रिया

इन सभी सामग्री को प्लास्टिक के ट्यूब में 60 दिन तक रखने के बाद वह एक प्राकृतिक खाद में बदल जाती है. इस यूनिट में एक नल लगाया जाता है. प्राकृतिक खाद में मौजूद पानी नल के माध्यम से प्रवाहित होता है, जो उत्कृष्ट कोटि का प्राकृतिक खाद होता है. इस खाद को फसल में अथवा भूमि पर डालने पर बंजर जमीन की उत्पादकता बढ़ने लगती है. वहीं भूमि में मौजूद क्षारीयता कम होने लगती है. इसके अलावा इस प्राकृतिक खाद की तुलना में रासायनिक उर्वरक महंगा होने की वजह से फसल की लागत बढ़ जाती है. इस दृष्टि से प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत ट्यूब इकाई एक सस्ती और उपयोगी खाद है.

ऐसे तैयार होती है देसी खाद

इंदौर संभाग आयुक्त दीपक सिंह ने बताया "जीवामृत ट्यूब इकाई प्राकृतिक खाद है. जिसका इस्तेमाल फसल उत्पादन में वृद्धि के लिये किया जाता है. इस प्राकृतिक खाद को बनाना आसान है. इसके निर्माण में गाय का गोबर, गौमूत्र, छाछ, गुड़, उबला चावल, बेसन, वेस्ट फूड और आवश्यकता अनुसार पानी की मात्रा लगती है. इन सभी सामग्री को प्लास्टिक के ट्यूब में 60 दिन तक रखने के बाद ये प्राकृतिक खाद में बदल जाती है. वर्तमान में रासायनिक उर्वरक महंगा होने की वजह से फसल की लागत बढ़ जाती है. इस दृष्टि से प्राकृतिक खेती के लिए जीवामृत ट्यूब इकाई सस्ती और उपयोगी खाद है."

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