राजगढ़। मध्यप्रदेश में चुनावी प्रचार में सत्ता पक्ष के नेता दावों व वादों की भरमार कर रहे हैं. लेकिन हकीकत इससे अलग है. देश के कोने-कोने में सड़कों का जाल बिछा होने के दावा किया जा रहा है. वहीं, राजगढ़ जिले में दर्जनभर से ज्यादा ऐसे गांव हैं, जहां सड़क तो बहुत दूर की बात, पगडंडी तक नहीं है. लोगों को एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए नाव का सहारा लेना पड़ता है. नाव में किराया भी देना पड़ता है. दरअसल, मोहनपुरा डैम से प्रभावित हुए रास्ते के कारण लगभग एक दर्जन दांव के ग्रामीण जान हथेली पर लेकर एक गांव से दूसरे गांव तक का सफर नाव से करने पर मजबूर हैं.
डैम से कई पुलियां प्रभावित : राजगढ़ जिले के मोहनपुरा डैम की ज़द में आकर राजगढ़-ब्यावरा के बीच बसे लगभग एक दर्जन से ज्यादा गांवों को जोड़ने वाली सड़क व पुलियां प्रभावित हुई हैं. जिस कारण ग्रामीणों को एक गांव से दूसरे गांव व शहरों में पहुंचने के लिए काफी मशक्कत करना पड़ती है. इसके लिए उन्हें आसान तरीका डैम के पानी में संचालित होने वाली नाव का नज़र आता है, जो उन्हें व उनके सामान जैसे दो व चार पहिया वाहन को भी इस पार से उस पार छोड़ देती है. अगर वे नाव का सहारा नहीं लेते तो सड़क के रास्ते काफी लंबा रास्ता तय करना पड़ता है.
एक सवारी का किराया 20 रुपये : रायपुरिया गांव के ग्रामीण किशोर सिंह बताते हैं कि यहां से चलने वाली नाव आसपास के लगभग एक दर्जन गांव का सफर तय करती है. यहां चार निजी नाव संचालित होती हैं. जिसमें एक व्यक्ति का किराया 20 रुपये लगता है. बाइक के 40 रुपये देने पड़ते हैं. इसके अलावा कार के 400 रुपये लगते हैं. लोगों का कहना है कि अगर हम रोड के माध्यम से सफर करते हैं तो तीन सौ रुपये खर्च आता है. जबकि नाव में बाइक रखकर पार करने में 40 रुपये में काम हो जाता है. लोगों का कहना है कि सुरक्षा के कोई इंतजाम नाव में नहीं है.
नाव से जाना किफायती : खजुरिया गांव की कैलाश बाई बताती हैं कि वह गांव से आने-जाने के लिए नाव का इंतज़ार करती है और उनके सिर्फ 20 रुपये ही लगते हैं. सड़क के रास्ते होकर जाऊंगी तो दूर भी पड़ेगा और ज्यादा खर्च भी होगा. वहीं, मौके पर मौजूद अन्य ग्रामीणों ने भी यही बताया कि बस में उनको ज्यादा किराया लगता है. ग्रामीण विष्णु सोलंकी बताते हैं कि हमारे यहां पहले पुलिया हुआ करती थी, जोकि डैम के पानी में डूब चुकी है. साथ ही वे राजगढ़ सांसद रोडमल नागर पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि उन्होंने पुल नहीं बनवाया.
क्या बोले नाव चलाने वाले : ग्रामीणों ने बताया कि जो रोड मंजूर था, वह ब्यावरा से चाटूखेड़ा और छापीहेड़ा के लिए निकल रहा था. जिससे लगभग 20 गांवों के ग्रामीण फायदा उठाते थे. लेकिन जो रोड बनाया गया है, वह उतना नहीं चलता. इसलिए लोग नाव का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं. नाव चलाने वाले ओमप्रकाश बताते हैं कि वह सुबह 8 बजे से काम शुरू कर देते हैं. दिनभर में तीन चक्कर लगा देते हैं. यहां चार नाव चलती हैं. कभी किसी को ज्यादा सवारी मिल जाती हैं तो कभी किसी को कम मिलती हैं. सुरक्षा को लेकर उन्होंने कहा कि नाव में जैकेट हैं.