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ब्यावरा विधानसभा सीटः नारायण-राम में किसकी चमकेगी किस्मत, दांव पर दिग्गी-शिवराज की साख

राजगढ़ जिले की ब्यावरा विधानसभा सीट पर कांग्रेस विधायक गोवर्धन दांगी के निधन की वजह से उपचुनाव हो रहा है. इस सीट पर कांग्रेस ने रामचंद्र दांगी को मैदान में उतारा है. तो बीजेपी ने 2018 के चुनाव में प्रत्याशी रहे नारायम पंवार को फिर से मौका दिया है. देखिए ब्यावरा विधानसभा सीट उपचुनाव पर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट......

ब्यावरा उपचुनाव
ब्यावरा उपचुनाव
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Published : Oct 13, 2020, 7:37 PM IST

राजगढ़। मध्य प्रदेश की जिन 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है. उनमें से एक सीट राजगढ़ जिले की ब्यावरा सीट भी है. जो कांग्रेस विधायक गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई. इस सीट पर कांग्रेस ने रामचंद्र दांगी को मैदान में उतारा है. तो बीजेपी ने नारायण सिंह पंवार को प्रत्याशी बनाया है.

ब्यावरा विधानसभा सीट

गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई सीट

ब्यावरा विधानसभा सीट कांग्रेस के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गोवर्धन दांगी ने यहां बीजेपी के नारायण सिंह पंवार को महज 826 वोटों से हराया था. लिहाजा कांग्रेस अपनी सीट बचाए रखने के लिए पूरी कोशिश करेगी. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का यहां खासा दबदबा माना जाता है. लिहाजा इस बार भी उनकी पसंद के प्रत्याशी को ही मौका दिया गया है.

ये भी पढ़ेंः ग्वालियर विधानसभा सीटः चेहरा वही निशान नया, दांव पर है सिंधिया के सच्चे सिपाही की साख

अब तक 14 विधानसभा चुनाव हुए

ब्यावरा विधानसभा सीट के सियासी इतिहास पर नजर डाली जाए. तो 1951 से लेकर अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी बारी-बारी से यह सीट जीतती रही है. जबकि निर्दलीय प्रत्याशी भी यहां जीत दर्ज करते रहे हैं. ब्यावरा विधानसभा सीट पर अब तक 14 आम चुनाव हुए हैं. जिनमें पांच बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की तो चार बार बीजेपी के प्रत्याशी ने बाजी मारी. चार बार निर्दलीय प्रत्याशी जीते तो एक बार जनता दल ने जीत का स्वाद चखा था.

ब्यावरा में अब तक 14 चुनाव हुए हैं
ब्यावरा में अब तक 14 चुनाव हुए हैं

ब्यावरा के जातिगत समीकरण

ब्यावरा विधानसभा सीट के जातिगत समीकरणों की बात की जाए तो यहां दांगी और सोंधिया समाज का दबदबा माना जाता है. यहां दांगी समाज का वोट बैंक 30000 से 35000 के बीच में है तो सोंधिया समाज के मतदाता 25000 से 30000 के बीच है. लिहाजा पार्टियां इन्ही जातियों से आने वाले प्रत्याशियों पर दांव लगाती हैं. लेकिन दांगी और सोंधिया बाहुल्य इलाके में लोधी, गुर्जर, मीणा और यादव मतदाता निर्णायक साबित होते हैं. जिससे इस वोट बैंक पर भी हर जाति की नजर होती है.

ब्यावरा जातिगत समीकरण
ब्यावरा जातिगत समीकरण

ये भी पढ़ेंः MP उपुचनावः ETV भारत से बोले गोहद के मतदाता, मौका उसे ही मिलेगा जो विकास करेगा

ब्यावरा के मतदाता

वही बात अगर ब्यावरा विधानसभा सीट के मतदाताओं की जाए तो यहां कुल 2 लाख 25 हजार 296 मतदाता है. जिनमें 1 लाख 15 हजार 984 पुरुष मतदाता, तो 1 लाख 9 हजार 311 महिला मतदाता है. जो पहली बार उपचुनाव में मतदान करेंगे.

ब्यावरा के कुल मतदाता
ब्यावरा के कुल मतदाता

कांग्रेस प्रत्याशी ने किया जीत का दावा

कांग्रेस प्रत्याशी रामचंद्र दांगी कहते है कि बीजेपी ने धोखे से कांग्रेस सरकार गिराई है. इसलिए जनता उन्हें दोबारा मौका नहीं देगी. क्योंकि कमलनाथ पूरे प्रदेश में विकास के काम करने में लगे थे. इसलिए जनता एक बार फिर उन्हें मुख्यमंत्री बनाना चाहती है. बीजेपी के पूर्व विधायकों का काम क्षेत्र की जनता ने देखा है. इसलिए अब जनता बीजेपी को मौका नहीं देगी.

ये भी पढ़ेंः बदनावर में पहला उपचुनावः बड़ा फैक्टर है जातिगत समीकरण, बीजेपी-कांग्रेस में ही रहता है मुकाबला

बीजेपी प्रत्याशी को इस बार जीत का भरोसा

पिछले चुनाव में मामूली अंतर से हारे बीजेपी प्रत्याशी नारायण पंवार इस बार अपनी जीत का दावा करते नजर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब से कांग्रेस की सरकार बनी थी. तब से विकास के सभी काम रुक गए थे. पिछले चुनाव में पारिवारिक कारणों के चलते वे महज कुछ वोटों से ही चुनाव हार गए थे. लेकिन जनता इस बार उन्हें ब्यावरा के विकास के लिए मौका जरुर देगी.

ब्यावरा में पहली बार हो रहा उपचुनाव
ब्यावरा में पहली बार हो रहा उपचुनाव

मुश्किल होती है दूसरी बार जीत मिलना

वही ब्यावरा के सियासी समीकरणों पर राजनीतिक जानकार राजेश शर्मा कहते है कि ब्यावरा में पहली बार उपचुनाव हो रहा है. किसी भी प्रत्याशी को यहां दोबारा जीत दर्ज करना मुश्किल होता है. अब तक के सियासी इतिहास में डीएम जगताप ही ऐसे प्रत्याशी रहे जो दो बार चुनाव जीत सके है. लिहाजा दोनों पार्टियां हर चुनाव में यहां प्रत्याशी बदल देते हैं. लेकिन बीजेपी ने इस बार 2018 में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को ही मौका दिया है. ऐसे में इस बार जनता किसे मौका देगी यह कहना मुश्किल है.

ये भी पढ़ेंः बीजेपी में जाने के बाद अकेले पड़े सिंधिया!, चंबल की 7 सीटों पर दांव पर लगी साख

दिग्विजय सिंह का माना जाता है दबदबा

ब्यावरा विधानसभा सीट पर दिग्विजय सिंह का दबदबा माना जाता है. लिहाजा 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह के करीबी गोवर्धन दांगी को मैदान में उतारकर जीत दर्ज की थी. उन्होंने नारायण सिंह पंवार को करीबी अंतर से चुनाव हराया था. गोवर्धन दांगी के निधन के बाद एक बार फिर पार्टी ने दिग्विजय सिंह के ही करीबी रामचंद्र दांगी को मैदान में उतारा है. लिहाजा उन्हें जिताने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह की रहेगी.

कांग्रेस विधायक गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई सीट
कांग्रेस विधायक गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई सीट

सीएम शिवराज के खास हैं नारायण पंवार

वही बात अगर बीजेपी प्रत्याशी नारायण पंवार की जाए तो वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खास माने जाते हैं. लिहाजा सभी विरोधों को दरकिनार करते हुए शिवराज ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है. जिससे ब्यावरा में बीजेपी प्रत्याशी को जीत दिलाने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जिम्मे है. लिहाजा ब्यावरा में ऊंट किस करवट बैठेगा इसका पता तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा.

राजगढ़। मध्य प्रदेश की जिन 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहा है. उनमें से एक सीट राजगढ़ जिले की ब्यावरा सीट भी है. जो कांग्रेस विधायक गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई. इस सीट पर कांग्रेस ने रामचंद्र दांगी को मैदान में उतारा है. तो बीजेपी ने नारायण सिंह पंवार को प्रत्याशी बनाया है.

ब्यावरा विधानसभा सीट

गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई सीट

ब्यावरा विधानसभा सीट कांग्रेस के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है, 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गोवर्धन दांगी ने यहां बीजेपी के नारायण सिंह पंवार को महज 826 वोटों से हराया था. लिहाजा कांग्रेस अपनी सीट बचाए रखने के लिए पूरी कोशिश करेगी. कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का यहां खासा दबदबा माना जाता है. लिहाजा इस बार भी उनकी पसंद के प्रत्याशी को ही मौका दिया गया है.

ये भी पढ़ेंः ग्वालियर विधानसभा सीटः चेहरा वही निशान नया, दांव पर है सिंधिया के सच्चे सिपाही की साख

अब तक 14 विधानसभा चुनाव हुए

ब्यावरा विधानसभा सीट के सियासी इतिहास पर नजर डाली जाए. तो 1951 से लेकर अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी बारी-बारी से यह सीट जीतती रही है. जबकि निर्दलीय प्रत्याशी भी यहां जीत दर्ज करते रहे हैं. ब्यावरा विधानसभा सीट पर अब तक 14 आम चुनाव हुए हैं. जिनमें पांच बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की तो चार बार बीजेपी के प्रत्याशी ने बाजी मारी. चार बार निर्दलीय प्रत्याशी जीते तो एक बार जनता दल ने जीत का स्वाद चखा था.

ब्यावरा में अब तक 14 चुनाव हुए हैं
ब्यावरा में अब तक 14 चुनाव हुए हैं

ब्यावरा के जातिगत समीकरण

ब्यावरा विधानसभा सीट के जातिगत समीकरणों की बात की जाए तो यहां दांगी और सोंधिया समाज का दबदबा माना जाता है. यहां दांगी समाज का वोट बैंक 30000 से 35000 के बीच में है तो सोंधिया समाज के मतदाता 25000 से 30000 के बीच है. लिहाजा पार्टियां इन्ही जातियों से आने वाले प्रत्याशियों पर दांव लगाती हैं. लेकिन दांगी और सोंधिया बाहुल्य इलाके में लोधी, गुर्जर, मीणा और यादव मतदाता निर्णायक साबित होते हैं. जिससे इस वोट बैंक पर भी हर जाति की नजर होती है.

ब्यावरा जातिगत समीकरण
ब्यावरा जातिगत समीकरण

ये भी पढ़ेंः MP उपुचनावः ETV भारत से बोले गोहद के मतदाता, मौका उसे ही मिलेगा जो विकास करेगा

ब्यावरा के मतदाता

वही बात अगर ब्यावरा विधानसभा सीट के मतदाताओं की जाए तो यहां कुल 2 लाख 25 हजार 296 मतदाता है. जिनमें 1 लाख 15 हजार 984 पुरुष मतदाता, तो 1 लाख 9 हजार 311 महिला मतदाता है. जो पहली बार उपचुनाव में मतदान करेंगे.

ब्यावरा के कुल मतदाता
ब्यावरा के कुल मतदाता

कांग्रेस प्रत्याशी ने किया जीत का दावा

कांग्रेस प्रत्याशी रामचंद्र दांगी कहते है कि बीजेपी ने धोखे से कांग्रेस सरकार गिराई है. इसलिए जनता उन्हें दोबारा मौका नहीं देगी. क्योंकि कमलनाथ पूरे प्रदेश में विकास के काम करने में लगे थे. इसलिए जनता एक बार फिर उन्हें मुख्यमंत्री बनाना चाहती है. बीजेपी के पूर्व विधायकों का काम क्षेत्र की जनता ने देखा है. इसलिए अब जनता बीजेपी को मौका नहीं देगी.

ये भी पढ़ेंः बदनावर में पहला उपचुनावः बड़ा फैक्टर है जातिगत समीकरण, बीजेपी-कांग्रेस में ही रहता है मुकाबला

बीजेपी प्रत्याशी को इस बार जीत का भरोसा

पिछले चुनाव में मामूली अंतर से हारे बीजेपी प्रत्याशी नारायण पंवार इस बार अपनी जीत का दावा करते नजर रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब से कांग्रेस की सरकार बनी थी. तब से विकास के सभी काम रुक गए थे. पिछले चुनाव में पारिवारिक कारणों के चलते वे महज कुछ वोटों से ही चुनाव हार गए थे. लेकिन जनता इस बार उन्हें ब्यावरा के विकास के लिए मौका जरुर देगी.

ब्यावरा में पहली बार हो रहा उपचुनाव
ब्यावरा में पहली बार हो रहा उपचुनाव

मुश्किल होती है दूसरी बार जीत मिलना

वही ब्यावरा के सियासी समीकरणों पर राजनीतिक जानकार राजेश शर्मा कहते है कि ब्यावरा में पहली बार उपचुनाव हो रहा है. किसी भी प्रत्याशी को यहां दोबारा जीत दर्ज करना मुश्किल होता है. अब तक के सियासी इतिहास में डीएम जगताप ही ऐसे प्रत्याशी रहे जो दो बार चुनाव जीत सके है. लिहाजा दोनों पार्टियां हर चुनाव में यहां प्रत्याशी बदल देते हैं. लेकिन बीजेपी ने इस बार 2018 में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को ही मौका दिया है. ऐसे में इस बार जनता किसे मौका देगी यह कहना मुश्किल है.

ये भी पढ़ेंः बीजेपी में जाने के बाद अकेले पड़े सिंधिया!, चंबल की 7 सीटों पर दांव पर लगी साख

दिग्विजय सिंह का माना जाता है दबदबा

ब्यावरा विधानसभा सीट पर दिग्विजय सिंह का दबदबा माना जाता है. लिहाजा 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह के करीबी गोवर्धन दांगी को मैदान में उतारकर जीत दर्ज की थी. उन्होंने नारायण सिंह पंवार को करीबी अंतर से चुनाव हराया था. गोवर्धन दांगी के निधन के बाद एक बार फिर पार्टी ने दिग्विजय सिंह के ही करीबी रामचंद्र दांगी को मैदान में उतारा है. लिहाजा उन्हें जिताने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह की रहेगी.

कांग्रेस विधायक गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई सीट
कांग्रेस विधायक गोवर्धन दांगी के निधन से खाली हुई सीट

सीएम शिवराज के खास हैं नारायण पंवार

वही बात अगर बीजेपी प्रत्याशी नारायण पंवार की जाए तो वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खास माने जाते हैं. लिहाजा सभी विरोधों को दरकिनार करते हुए शिवराज ने एक बार फिर उन पर भरोसा जताया है. जिससे ब्यावरा में बीजेपी प्रत्याशी को जीत दिलाने की जिम्मेदारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जिम्मे है. लिहाजा ब्यावरा में ऊंट किस करवट बैठेगा इसका पता तो 10 नवंबर को ही पता चलेगा.

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