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लड़कियों की शादी की उम्र 18 हो या 21, ग्रामीण महिलाओं ने दी अपनी राय

हाल ही में सरकार मानसून सत्र में लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने पर विचार कर रही है. सरकार के इस विचार पर देश के अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं की अलग-अलग राय है. इस संबंध में ईटीवी भारत ने राजगढ़ के ग्रामीण इलाके की महिलाओं से उनकी राय जानी...

opinion of rural residents on central government decision
लड़कियों की शादी की उम्र पर ग्रामीण महिलाओं की राय
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Published : Sep 16, 2020, 6:08 PM IST

राजगढ़। देश के 74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लड़कियों के स्वास्थ्य और कुपोषण को देखते हुए शादी की उम्र बढ़ाने पर विचार करने की बात कही थी. 2 जून को महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से एक समिति बनाई गई. समिति की सिफारिशों पर गौर करते हुए सरकार मानसून सत्र में लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल कर सकती है. सरकार के इस कदम पर समाजिक कार्यकर्ताओं और डॉक्टरों की अपनी-अपनी राय है. इसी कड़ी में राजगढ़ जिले में ईटीवी भारत ने महिलाओं की राय भी जानी.

लड़कियों की शादी की उम्र पर ग्रामीण महिलाओं की राय

भारत में शादी के बंधन को सबसे पवित्र बंधन माना जाता है, शादी को लेकर ना सिर्फ लड़के बल्कि लड़कियों के भी काफी सपने और अरमान होते है. जहां लड़कियों को अपने जीवनसाथी से काफी उम्मीद होती है, लेकिन लड़कियों की शादी उनके मां-पिता या रिश्तेदारों द्वारा बचपन में कर दी जाती है, अगर वहीं लड़की की उम्र एक समझदारी भरी निर्णय लेने की होती तो वह अपना वर अच्छी तरह से चुन सकती है.

opinion of rural residents on central government decision
ग्रामीण महिलाएं

लड़कियों की शादी की उम्र क्या होनी चाहिए ?

देश में एक बार फिर से एक सवाल सामने आ खड़ा हुआ है कि आखिर लड़कियों की शादी की उम्र क्या होनी चाहिए. संसद के मानसून सत्र में इस मुद्दे पर दोबारा चर्चा की जाएगी. केंद्र सरकार लड़कियों की शादी की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 करने पर विचार कर रही है. सबसे पहले जहां सन 1929 में शारदा कमेटी की सिफारिश पर लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल का कानून बनाया गया था. वहीं 1955 में हिंदू एक्ट के तहत भी कुछ बदलाव किए गए थे और 1978 में सरकार ने फिर से बदलाव करते हुए लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाकर 18 साल और लड़कों की उम्र 21 साल तय कर दी थी.

opinion of rural residents on central government decision
छात्राएं

ये भी पढ़े- 21 बेहतर या 18 में हो लड़कियों की शादी, इन सवालों का आंकड़े दे रहे जवाब

ईटीवी भारत ने ग्रामीण महिलाओं से जानी उनकी राय

पूरे देश में एक बार फिस से लड़कियों की शादी को लेकर बहस छिड़ी हुई है, कि लड़कियों की शादी की सही उम्र क्या होनी चाहिए. इसी कड़ी में ईटीवी भारत ने राजगढ़ जिले के ग्रामीण क्षेत्र के की महिलाओं से उनकी राय जानी. यहां पर लगातार किसी को पता चले बिना बाल विवाह किया जाता है और कई महिलाओं को अपना वर चुनने का अधिकार समाज में नहीं दिया जाता है. ईटीवी भारत ने ऐसी ही महिलाओं से बात की है जिनका विवाह 90 के दशक में कम उम्र में हो गया था. ग्रामीण महिला सरिता बाई बताती है कि उनका विवाह काफी कम उम्र में हुआ था, जिससे उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. केंद्र सरकार अगर लड़कियों की शादी की उम्र को 21 साल करती है तो यह फैसला स्वागत योग्य है. सरकार को लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 जरूर करना चाहिए. उन्होंने कहा कि कम उम्र में शादी होने की वजह से ना सिर्फ ससुराल की जिम्मेदारी आ जाती है बल्कि उनकी पढ़ाई भी बीच में छूट जाती है. साथ ही उनका शरीर भी मां बनने के लिए पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता.

opinion of rural residents on central government decision
बाल विवाह के खिलाफ लगे पोस्टर

ये भी पढ़े- लड़कियों की शादी की सही उम्र क्या हो, उम्र बढ़ाना या कम करना क्या है हल? जानें एक्सपर्टस से कौन सी उम्र है सही.

सरिता बाई ने कहा कि उनकी शादी के कुछ समय बाद ही वह दो बच्चियों की मां बन गई थी, जिसके बाद उनकी जिम्मेदारी से लेकर घर परिवार की जिम्मेदारी सब उन पर आ गई थी. वहीं जल्द ही उनके पति की मृत्यु हो जाने की वजह से घर चलाने की जिम्मेदारी भी उन पर थी. अगर वो पढ़ी लिखी होती तो कहीं अच्छी जगह पर नौकरी करते हुए अपने बच्चों का अच्छे से भरण-पोषण कर पाती. उन्होंने कहा कि शिक्षा के आभाव के चलते उन्हें आज भी काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. साथ ही उनकी दोनों बच्चियों को भी संघर्ष से गुजरना पड़ रहा है.

विशेषज्ञों की राय

कई विशेषज्ञ मानते है कि कम उम्र में शादी हो जाने की वजह से लड़कियों का शरीर इतना विकसित नहीं हो पाता कि वह कम उम्र में ही मां बन सके, साथ ही कई रोगों से वह ग्रस्त हो जाती है. इसके साथ ही महिलाओं को कई अन्य ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है जो उसकी जिंदगी में काफी महत्व रखती है.

सबसे बड़ी समस्या हैं शिक्षा का आभाव

लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाने से उन्हें शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है, जो एक बहुत बड़ी कमी है. शादी के चलते पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है, जिससे वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती है.

शारीरिक और मानसिक विकास की कमी

कम उम्र में शादी होने पर लड़कियों में मानसिक विकास की कमी होती है, साथ ही वह शारीरिक रुप से भी शादी के लिए तैयार नहीं रहती है, ऐसे में इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है, जो आगे चलकर कई बीमारियों को जन्म देती है.

ये भी पढ़े- दुर्गा उत्सव पर कोरोना का कहर, छिंदवाड़ा में इस बार नहीं होगी बंगाली देवी की स्थापना

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006

बाल विवाह को लेकर सरकार लगातार गंभीर बनी हुई है. जिसे देखते हुए 2006 में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम बनाया गया. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9 के अनुसार, अगर कोई अठारह साल से अधिक आयु का वयस्क पुरुष बाल-विवाह करता है, तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी, साथ ही उनके परिवार वाले खिलाफ भी मामला दर्ज किया जाएगा. इस अधिनियम के अंतर्गत दो साल की जेल या एक लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है. बता दें कि ये बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे समाज में बाल विवाह को रोकने के लिए लागू किया गया है.

बाल विवाह रोकने पूर्व कलेक्टर ने निकाला था नियम

राजगढ़ जिले में बाल विवाह को रोकने के लिए प्रशासन काफी सख्त बना हुआ है. पिछले कुछ कलेक्टरों ने बाल विवाह को रोकने के लिए लगातार कोशिश किए है. पूर्व कलेक्टर निधि निवेदिता ने नियम निकाला था कि जब तक पंड़ित बच्चों का बर्थ सर्टिफिकेट नहीं देख लेता, तब तक वह विवाह की तारीख सुनिश्चित ना करें. अगर किसी पंडित द्वारा बाल विवाह करवाया जाता है तो बाला विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत वह पंडित भी दोषी होगा.

'बादल पर पांव हैं' योजना का संचालन

राजगढ़ जिले में पिछले साल पूर्व कलेक्टर निधि निवेदिता ने 'बादल पर पांव हैं' योजना चलाई गई थी, जिसमें 2600 महिलाओं और युवतियों ने परीक्षाएं दी थी. इनमें से आधे से ज्यादा वह महिलाएं थी जिनकी शादी की वजह से बीच में ही पढ़ाई छूट गई थी और उनको पढ़ने का मौका नहीं मिला था. इस योजना के तहत उन्हें पढ़ने का मौका मिला था. इस संबंध में कृष्णा द्विवेदी जो अध्यापक है उनका कहना है कि 18 साल तक सिर्फ 12वीं तक की पढ़ाई ही पूरी हो पाती है, लेकिन 21 साल में ज्यादातर व्यक्ति ग्रेजुएशन पूरी कर लेते हैं. जो पढ़ाई का काफी अच्छा मानक माना जाता है. ग्रेजुएट होने के बाद इंसान में काफी समझदारी और निर्णय लेने की क्षमता भी बढ़ जाती है.

सामाजिक कार्यकर्ता की राय

इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता बरखा दांगी कहती है कि विवाह की सही उम्र 21 वर्ष होती है, क्योंकि इस कम उम्र में व्यक्ति अपना निर्णय ठीक से नहीं ले पाता है. वहीं जहां लड़कियों का बाल विवाह होने के कारण ना सिर्फ लड़कियों की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती है, बल्कि लड़कियों का शरीर कमजोर होता है, जिससे उसका होने वाला बच्चा भी मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग पैदा हो सकता है.

लड़कियां जहां कम उम्र में शादी होने की वजह से वह दूसरों पर आश्रित रहती है और स्वयं का निर्णय नहीं ले पाती. वहीं दूसरे के लिए गए निर्णय को उन्हें मानना पड़ता है. ऐसा माना जाता है कि 21 वर्ष का व्यक्ति समझदार होता है और लड़कियों की शादी की उम्र भी 21 होगी तो वह अपने निर्णय खुद ले सकेंगी, साथ ही अपने अच्छे-बुरे का सोचते हुए अपने वर का निर्णय करेंगी.

राजगढ़। देश के 74वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लड़कियों के स्वास्थ्य और कुपोषण को देखते हुए शादी की उम्र बढ़ाने पर विचार करने की बात कही थी. 2 जून को महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से एक समिति बनाई गई. समिति की सिफारिशों पर गौर करते हुए सरकार मानसून सत्र में लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ाकर 21 साल कर सकती है. सरकार के इस कदम पर समाजिक कार्यकर्ताओं और डॉक्टरों की अपनी-अपनी राय है. इसी कड़ी में राजगढ़ जिले में ईटीवी भारत ने महिलाओं की राय भी जानी.

लड़कियों की शादी की उम्र पर ग्रामीण महिलाओं की राय

भारत में शादी के बंधन को सबसे पवित्र बंधन माना जाता है, शादी को लेकर ना सिर्फ लड़के बल्कि लड़कियों के भी काफी सपने और अरमान होते है. जहां लड़कियों को अपने जीवनसाथी से काफी उम्मीद होती है, लेकिन लड़कियों की शादी उनके मां-पिता या रिश्तेदारों द्वारा बचपन में कर दी जाती है, अगर वहीं लड़की की उम्र एक समझदारी भरी निर्णय लेने की होती तो वह अपना वर अच्छी तरह से चुन सकती है.

opinion of rural residents on central government decision
ग्रामीण महिलाएं

लड़कियों की शादी की उम्र क्या होनी चाहिए ?

देश में एक बार फिर से एक सवाल सामने आ खड़ा हुआ है कि आखिर लड़कियों की शादी की उम्र क्या होनी चाहिए. संसद के मानसून सत्र में इस मुद्दे पर दोबारा चर्चा की जाएगी. केंद्र सरकार लड़कियों की शादी की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 करने पर विचार कर रही है. सबसे पहले जहां सन 1929 में शारदा कमेटी की सिफारिश पर लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल का कानून बनाया गया था. वहीं 1955 में हिंदू एक्ट के तहत भी कुछ बदलाव किए गए थे और 1978 में सरकार ने फिर से बदलाव करते हुए लड़कियों की शादी की उम्र को बढ़ाकर 18 साल और लड़कों की उम्र 21 साल तय कर दी थी.

opinion of rural residents on central government decision
छात्राएं

ये भी पढ़े- 21 बेहतर या 18 में हो लड़कियों की शादी, इन सवालों का आंकड़े दे रहे जवाब

ईटीवी भारत ने ग्रामीण महिलाओं से जानी उनकी राय

पूरे देश में एक बार फिस से लड़कियों की शादी को लेकर बहस छिड़ी हुई है, कि लड़कियों की शादी की सही उम्र क्या होनी चाहिए. इसी कड़ी में ईटीवी भारत ने राजगढ़ जिले के ग्रामीण क्षेत्र के की महिलाओं से उनकी राय जानी. यहां पर लगातार किसी को पता चले बिना बाल विवाह किया जाता है और कई महिलाओं को अपना वर चुनने का अधिकार समाज में नहीं दिया जाता है. ईटीवी भारत ने ऐसी ही महिलाओं से बात की है जिनका विवाह 90 के दशक में कम उम्र में हो गया था. ग्रामीण महिला सरिता बाई बताती है कि उनका विवाह काफी कम उम्र में हुआ था, जिससे उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा. केंद्र सरकार अगर लड़कियों की शादी की उम्र को 21 साल करती है तो यह फैसला स्वागत योग्य है. सरकार को लड़कियों की शादी की उम्र 18 से बढ़ाकर 21 जरूर करना चाहिए. उन्होंने कहा कि कम उम्र में शादी होने की वजह से ना सिर्फ ससुराल की जिम्मेदारी आ जाती है बल्कि उनकी पढ़ाई भी बीच में छूट जाती है. साथ ही उनका शरीर भी मां बनने के लिए पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता.

opinion of rural residents on central government decision
बाल विवाह के खिलाफ लगे पोस्टर

ये भी पढ़े- लड़कियों की शादी की सही उम्र क्या हो, उम्र बढ़ाना या कम करना क्या है हल? जानें एक्सपर्टस से कौन सी उम्र है सही.

सरिता बाई ने कहा कि उनकी शादी के कुछ समय बाद ही वह दो बच्चियों की मां बन गई थी, जिसके बाद उनकी जिम्मेदारी से लेकर घर परिवार की जिम्मेदारी सब उन पर आ गई थी. वहीं जल्द ही उनके पति की मृत्यु हो जाने की वजह से घर चलाने की जिम्मेदारी भी उन पर थी. अगर वो पढ़ी लिखी होती तो कहीं अच्छी जगह पर नौकरी करते हुए अपने बच्चों का अच्छे से भरण-पोषण कर पाती. उन्होंने कहा कि शिक्षा के आभाव के चलते उन्हें आज भी काफी संघर्ष करना पड़ रहा है. साथ ही उनकी दोनों बच्चियों को भी संघर्ष से गुजरना पड़ रहा है.

विशेषज्ञों की राय

कई विशेषज्ञ मानते है कि कम उम्र में शादी हो जाने की वजह से लड़कियों का शरीर इतना विकसित नहीं हो पाता कि वह कम उम्र में ही मां बन सके, साथ ही कई रोगों से वह ग्रस्त हो जाती है. इसके साथ ही महिलाओं को कई अन्य ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है जो उसकी जिंदगी में काफी महत्व रखती है.

सबसे बड़ी समस्या हैं शिक्षा का आभाव

लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाने से उन्हें शिक्षा से वंचित रहना पड़ता है, जो एक बहुत बड़ी कमी है. शादी के चलते पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है, जिससे वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाती है.

शारीरिक और मानसिक विकास की कमी

कम उम्र में शादी होने पर लड़कियों में मानसिक विकास की कमी होती है, साथ ही वह शारीरिक रुप से भी शादी के लिए तैयार नहीं रहती है, ऐसे में इसका सीधा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है, जो आगे चलकर कई बीमारियों को जन्म देती है.

ये भी पढ़े- दुर्गा उत्सव पर कोरोना का कहर, छिंदवाड़ा में इस बार नहीं होगी बंगाली देवी की स्थापना

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006

बाल विवाह को लेकर सरकार लगातार गंभीर बनी हुई है. जिसे देखते हुए 2006 में बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम बनाया गया. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा 9 के अनुसार, अगर कोई अठारह साल से अधिक आयु का वयस्क पुरुष बाल-विवाह करता है, तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी, साथ ही उनके परिवार वाले खिलाफ भी मामला दर्ज किया जाएगा. इस अधिनियम के अंतर्गत दो साल की जेल या एक लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है. बता दें कि ये बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे समाज में बाल विवाह को रोकने के लिए लागू किया गया है.

बाल विवाह रोकने पूर्व कलेक्टर ने निकाला था नियम

राजगढ़ जिले में बाल विवाह को रोकने के लिए प्रशासन काफी सख्त बना हुआ है. पिछले कुछ कलेक्टरों ने बाल विवाह को रोकने के लिए लगातार कोशिश किए है. पूर्व कलेक्टर निधि निवेदिता ने नियम निकाला था कि जब तक पंड़ित बच्चों का बर्थ सर्टिफिकेट नहीं देख लेता, तब तक वह विवाह की तारीख सुनिश्चित ना करें. अगर किसी पंडित द्वारा बाल विवाह करवाया जाता है तो बाला विवाह प्रतिषेध अधिनियम के तहत वह पंडित भी दोषी होगा.

'बादल पर पांव हैं' योजना का संचालन

राजगढ़ जिले में पिछले साल पूर्व कलेक्टर निधि निवेदिता ने 'बादल पर पांव हैं' योजना चलाई गई थी, जिसमें 2600 महिलाओं और युवतियों ने परीक्षाएं दी थी. इनमें से आधे से ज्यादा वह महिलाएं थी जिनकी शादी की वजह से बीच में ही पढ़ाई छूट गई थी और उनको पढ़ने का मौका नहीं मिला था. इस योजना के तहत उन्हें पढ़ने का मौका मिला था. इस संबंध में कृष्णा द्विवेदी जो अध्यापक है उनका कहना है कि 18 साल तक सिर्फ 12वीं तक की पढ़ाई ही पूरी हो पाती है, लेकिन 21 साल में ज्यादातर व्यक्ति ग्रेजुएशन पूरी कर लेते हैं. जो पढ़ाई का काफी अच्छा मानक माना जाता है. ग्रेजुएट होने के बाद इंसान में काफी समझदारी और निर्णय लेने की क्षमता भी बढ़ जाती है.

सामाजिक कार्यकर्ता की राय

इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता बरखा दांगी कहती है कि विवाह की सही उम्र 21 वर्ष होती है, क्योंकि इस कम उम्र में व्यक्ति अपना निर्णय ठीक से नहीं ले पाता है. वहीं जहां लड़कियों का बाल विवाह होने के कारण ना सिर्फ लड़कियों की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाती है, बल्कि लड़कियों का शरीर कमजोर होता है, जिससे उसका होने वाला बच्चा भी मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग पैदा हो सकता है.

लड़कियां जहां कम उम्र में शादी होने की वजह से वह दूसरों पर आश्रित रहती है और स्वयं का निर्णय नहीं ले पाती. वहीं दूसरे के लिए गए निर्णय को उन्हें मानना पड़ता है. ऐसा माना जाता है कि 21 वर्ष का व्यक्ति समझदार होता है और लड़कियों की शादी की उम्र भी 21 होगी तो वह अपने निर्णय खुद ले सकेंगी, साथ ही अपने अच्छे-बुरे का सोचते हुए अपने वर का निर्णय करेंगी.

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