राजगढ़। मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के खिलचीपुर डिवीजन के अंतर्गत आने वाले छापीहेड़ा में 17 दिसंबर से श्रीमद भागवत कथा सुना रहे प्रसिद्ध कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर की कथा के दौरान का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है, जिसमे वे सनातनियों को राजगढ़ शहर की दरगाह परिसर में होने वाले उर्स के आयोजन में न जाने को लेकर कड़े शब्दो में संबोधित करते हुए नजर आ रहे हैं.
उर्स मेले में जाना बंद करें सच्चे सनातनी: वायरल वीडियो में कथा के आयोजन के दौरान देवकीनंदन ठाकुर मौजूदा जनसमूह से ये कहते हुए नजर आ रहे है कि "यह त्योहार विधर्मीयों का है, सनातनियों का नहीं है. ध्यान से सुन लो हमारा मैसेज, अगर तुम सच्चे सनातनी हो तो अपने धर्माचार्ययों के वचनों का पालन करो, नहीं तो माना जाएगा तुम असली नहीं नकली हो. आप ही के राजगढ़ में कोई उर्स उत्सव मनाया जाता है, मैंने ये सुना है उन लोगों से ज्यादा हमारे धर्म के लोग उस मेले में जाते हैं. अगर तुम्हे कृष्ण और राम से प्रेम है तो ऐसी किसी भी जगह पर जाना बंद कर दो, जहां हमारे देवी देवताओं की पूजा नहीं होती."
उर्स मेला व्यापार का स्त्रोत: दरअसल राजगढ़ के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल दरगाह (हजरत बाबा बदख्शानी की दरगाह) परिसर में प्रतिवर्ष 10 मार्च से 15 मार्च तक उर्स मैले का आयोजन किया जाता है, जो देश में लगने वाले सबसे बड़े मेले राजस्थान के अजमेर के बाद दूसरे नंबर पर है. इस मेले में सभी धर्मों के लोग लाखों की तादाद में शामिल होते हैं और मेले का लुत्फ उठाते हैं, सिर्फ इतना ही नहीं यह मेला राजगढ़ जिले सहित आसपास के तमाम व्यापारियों के लिए आय का एक स्त्रोत भी है. इस मेले में दुकानदार अपने प्रतिष्ठान लगाकर आय अर्जित करते हैं, जिसे एक बड़े सीजन के बराबर माना जाता है. फिलहाल कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर के वीडियो के सामने आने बाद सनातन धर्म के लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल उत्पन्न हो रहे हैं.
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गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है राजगढ़ का उर्स मेला: गौरतलब है कि राजगढ़ में होने वाले उर्स का आयोजन गंगा जमुनी तहजीब की एक अनूठी मिसाल भी रहा है,लगभग 30 साल से अधिक वा 5 साल पूर्व तक जिसकी शुरुवात राजगढ़ शहर के पारायण चौक में स्थित मंदिर से दरगाह परिसर तक लाई गई चादर पेश करने के बाद हुआ करती थी उसी प्रकार गुड़ी पड़वा के एक दिन पूर्व मजार से मंदिर तक हनुमान जी का झंडा ले जाया जाता था,जिसमे सभी धर्मो के लोग बढ़ी संख्या में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया करते थे,लेकिन कथित सालो से उक्त दोनो ही प्रथाएं राजगढ़ में बंद है.