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लाखों श्रद्धालु पहुंच रहे सिद्धपीठ भेसवा माता के दर्शन करने, मनोकामना पूरी होने पर चढ़ता है चढ़ावा - बकरे और अन्य जानवरों की दी जाती है बलि

राजगढ़ में सारंगपुर तहसील के भेसवा माता का धाम पर नवरात्रि के दौरान लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर माता के दर्शन करने पहुंच रहे है.

सिद्धपीठ भेसवा माता के दर्शन करने पहुंच रहे लाखों श्रद्धालु
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Published : Oct 7, 2019, 12:43 PM IST

राजगढ़। नवरात्र अवसर पर देश भर में मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. सारंगपुर तहसील के अंतर्गत भेसवा माताजी का धाम पर नवरात्रि के दौरान लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर माता के दर्शन करने पहुंच रहे है. जब इच्छा पूरी हो जाती है तो भक्त अपनी मनोकामना अनुसार चढ़ावा चढ़ाते हैं.

भेसवा माताजी बिजासन माता के नाम से भी प्रसिद्ध है. आदिकाल में जब धरती पर राक्षसों और दानवों का आतंक था तब मां ने महिषासुर और रक्तबीज का संहार करा था. जिसके बाद मां को बिजासन की पदवी प्राप्त हुई थी.

माता भेसवा की कहानी

आदिकाल में सारंगपुर इलाके में लाखा बंजारा रहता था. एक दिन जब वह जंगलों में जानवरों को चराने के लिए गया हुआ था. तभी माता रानी उसके समक्ष छोटी सी बच्ची के रूप में प्रकट हुई थी. इसका रहस्य राजस्थान से चल आ रहा है. छोटी कन्या को देखकर बंजारा उसे अपने घर ले आया. जिसके बाद लाखा बंजारा कुछ ही दूर ग्राम सुलतानिया में डेरा डाल लिया. जहां छोटी कन्या प्रतिदिन और उसके साथी लोग अपनी भेड़, बकरी और गाय चराने के लिए जाते थे. वहीं एक दिन कन्या के साथिओं ने लाखा बंजारा से शिकायत कर दी कि उसकी बेटी जानवरों को पानी नही पिलाती है. पिता लाखा बंजारा को इस बात पर शक नहीं हुआ क्योंकि उनके जानवर पूर्णता हष्ट पुष्ट थे. वहीं बंजारा को मन में यह बात तो थी की उनकी कन्या कोई साधारण कन्या नहीं है. एक दिन लाखा ने उसकी बेटी का पीछा किया. जहां उसने देखा कि तलैया माता नामक स्थान पर उसकी बेटी शेर, बकरी, ऊंट और सभी जानवरों को जल क्रीड़ा के दौरान अपना चमत्कार दिखाती थी और सभी जानवर माता के दर्शन करते थे. इसी दौरान माता और उनके पिता की आंख एक दूसरे से मिल गई. जिसके बाद माता ने ओम का आकार लेकर धरती मां को पुकारते हुए कहा कि उनके पिता ने उन्हें निर्वस्त्र देख लिया है. इस प्राथर्ना के साथ ही माता धरती के अंदर समा गई.

बकरे और अन्य जानवरों की दी जाती है बलि

धरती मां के अंदर समाने के कुछ समय बाद माता ने उसी पहाड़ी के ऊपर एक सोने चांदी के रूप में अपना हाथ प्रकट किया. जहां वे विराजमान हो गई. वहीं जब राजपूतों और मुगलों के काल में यहां पर काफी चोरी हुआ करती थी तब यहां पर कुछ चोरों की नजर उस हाथ पर पड़ी और उन्होंने उसको चुरा लिया. जिसके बाद चोर तुरंत अंधे हो गए. चोरों ने ने मां से क्षमा मांगते हुए मां के समक्ष बकरे और अन्य की बलि देने की मनोकामना की. तभी से यहां पर बकरे और अन्य जानवरों की बलि दी जाती है. मां ने इस आराधना से प्रसन्न होकर उनकी दृष्टि वापस दे दी. वही मां ने अपना पूर्ण स्वरूप दिखाते हुए अपना पूर्ण रूप मां भेसवा के मुख्य मंदिर में स्थापित किया. जिसके बाद माता इस जगह पर विराजित हो गई और अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने लगी.

राजगढ़। नवरात्र अवसर पर देश भर में मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. सारंगपुर तहसील के अंतर्गत भेसवा माताजी का धाम पर नवरात्रि के दौरान लाखों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर माता के दर्शन करने पहुंच रहे है. जब इच्छा पूरी हो जाती है तो भक्त अपनी मनोकामना अनुसार चढ़ावा चढ़ाते हैं.

भेसवा माताजी बिजासन माता के नाम से भी प्रसिद्ध है. आदिकाल में जब धरती पर राक्षसों और दानवों का आतंक था तब मां ने महिषासुर और रक्तबीज का संहार करा था. जिसके बाद मां को बिजासन की पदवी प्राप्त हुई थी.

माता भेसवा की कहानी

आदिकाल में सारंगपुर इलाके में लाखा बंजारा रहता था. एक दिन जब वह जंगलों में जानवरों को चराने के लिए गया हुआ था. तभी माता रानी उसके समक्ष छोटी सी बच्ची के रूप में प्रकट हुई थी. इसका रहस्य राजस्थान से चल आ रहा है. छोटी कन्या को देखकर बंजारा उसे अपने घर ले आया. जिसके बाद लाखा बंजारा कुछ ही दूर ग्राम सुलतानिया में डेरा डाल लिया. जहां छोटी कन्या प्रतिदिन और उसके साथी लोग अपनी भेड़, बकरी और गाय चराने के लिए जाते थे. वहीं एक दिन कन्या के साथिओं ने लाखा बंजारा से शिकायत कर दी कि उसकी बेटी जानवरों को पानी नही पिलाती है. पिता लाखा बंजारा को इस बात पर शक नहीं हुआ क्योंकि उनके जानवर पूर्णता हष्ट पुष्ट थे. वहीं बंजारा को मन में यह बात तो थी की उनकी कन्या कोई साधारण कन्या नहीं है. एक दिन लाखा ने उसकी बेटी का पीछा किया. जहां उसने देखा कि तलैया माता नामक स्थान पर उसकी बेटी शेर, बकरी, ऊंट और सभी जानवरों को जल क्रीड़ा के दौरान अपना चमत्कार दिखाती थी और सभी जानवर माता के दर्शन करते थे. इसी दौरान माता और उनके पिता की आंख एक दूसरे से मिल गई. जिसके बाद माता ने ओम का आकार लेकर धरती मां को पुकारते हुए कहा कि उनके पिता ने उन्हें निर्वस्त्र देख लिया है. इस प्राथर्ना के साथ ही माता धरती के अंदर समा गई.

बकरे और अन्य जानवरों की दी जाती है बलि

धरती मां के अंदर समाने के कुछ समय बाद माता ने उसी पहाड़ी के ऊपर एक सोने चांदी के रूप में अपना हाथ प्रकट किया. जहां वे विराजमान हो गई. वहीं जब राजपूतों और मुगलों के काल में यहां पर काफी चोरी हुआ करती थी तब यहां पर कुछ चोरों की नजर उस हाथ पर पड़ी और उन्होंने उसको चुरा लिया. जिसके बाद चोर तुरंत अंधे हो गए. चोरों ने ने मां से क्षमा मांगते हुए मां के समक्ष बकरे और अन्य की बलि देने की मनोकामना की. तभी से यहां पर बकरे और अन्य जानवरों की बलि दी जाती है. मां ने इस आराधना से प्रसन्न होकर उनकी दृष्टि वापस दे दी. वही मां ने अपना पूर्ण स्वरूप दिखाते हुए अपना पूर्ण रूप मां भेसवा के मुख्य मंदिर में स्थापित किया. जिसके बाद माता इस जगह पर विराजित हो गई और अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने लगी.

Intro:जिले की सबसे सुप्रसिद्ध भेसवा माता जी,जिनकी दर्शन करने से होती है सारी मनोकामनाएं पूरी ,ना सिर्फ जिले के लोग बल्कि देश-विदेश से लोग दर्शन करने को आते हैं ,नवरात्रि के दौरान लाखों श्रद्धालु करते हैं माता के दर्शन, आदिकाल से कर रही है भक्तों की मनोकामना को पूर्ण, माँ बिजासन के नाम से भी प्रसिद्ध है माँ भेसवा


Body:मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले की सारंगपुर तहसील के अंतर्गत आने वाले सुप्रसिद्ध भेसवा माताजी का धाम पर नवरात्रि के दौरान लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और अपनी मनोकामनाएं मां के समक्ष रखते हैं ,वही मनोकामना पूर्ण होने पर वहां पर अपनी मनोकामना अनुसार चढ़ावा चढ़ाते हैं भक्त, वही उनकी कथा भी काफी रोचक है, आदिकाल से विराजित है माता उस पठार पर और करती है भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण

कैसे प्रकट हुई भेसवा माता जी

भेसवा माताजी बिजासन माता के नाम से भी प्रसिद्ध है आदिकाल में जब धरती पर राक्षसों और दानवों का आतंक था तब मां ने महिषासुर और रक्तबीज का संहार करा था तब मां को बिजासन की पदवी प्राप्त हुई थी और वह बिजासन के नाम से सुप्रसिद्ध हुई थी वही आदिकाल में इस इलाके में लाखा बंजारा रहता था वही जब वह जंगलों में अपने जानवरों को चराने के लिए गया हुआ था तब इस स्थान को प्रसिद्ध करने के लिए मां उसके समक्ष छोटी सी बच्ची के रूप में प्रकट हुई,इसका रह्स्य राजस्थान से चल आ रहा है और वहीं जब लाखा बंजारा ने एक छोटी कन्या को वहां पर देखा तो वह उसे अपने घर ले आए, और उसका लालन पालन करने लगे, वहीं जब लाखा बंजारा ने अपना डेरा मालवा के इस क्षेत्र में पड़ाव डाला , यह चौरासी कोस की यह भूमि मालवांचल ग्राम के नाम से जानी जाती थी,यह पर कुछ दूरी पर ग्राम सुलतानिया है जहां पर लाखा बंजारे ने अपना डेरा डाला हुआ था, और माता रानी भी उनके साथ यहां आई हुई थी और मां और उनके सखा इस 84 कोस भूमि पर अपनी भेड़, बकरी और गाय चराने के लिए आते थे, वही वे अपने सखा के साथ भेड़ बकरी चराते हुए रोजाना जाती थी, इसी दौरान एक दिन उनके सखा लोगों ने उनके पिताजी से उनकी शिकायत की थी कि आपकी बेटी जानवरों को पानी नही पिलाती है अगर जानवर पानी नही पियेंगे तो मर जाएंगे, वही मां के पिताजी लाखा बंजारा को इस बात पर शक नहीं हुआ क्योंकि उनके जानवर पूर्णता हष्ट पुष्ट थे, वही लाखा बंजारा को मन में यह बात तो थी की उनकी कन्या कोई साधारण कन्या नहीं है,फिर भी उन्होंने उन लोगो की बात मानते हुए मन मे सोचा कि यह लोग कह रहे है तो में देखता हूँ ,तो कुछ समय बाद उन्होंने इसकी समीक्षा की,यह पहाड़ी जो एक ओम के आकार की पहाड़ी है इसके नीचे धरानिया हेड़ी गांव स्थित है ,उसके नजदीक एक तालाब है जिसमे माँ के सखा लोग अपने जानवरों को पानी पिलाते थे,परन्तु माँ अपने जानवरों को पानी पिलाने नहीं ले जाती थी वही जब दोपहर के समय यहां से कुछ ही दूरी पर एक स्थान है जिसको तलैया माता के नाम से जानते हैं, उसी स्थान पर माता ने जल क्रीड़ा की है वही जल क्रीड़ा के दौरान शेर,बकरी,ऊँट और अन्य जानवर एक साथ पानी पीते थे, महिषी जल क्रीड़ा के दौरान वे अपना चमत्कार दिखा दी थी और सभी जानवर उनके दर्शन करते थे ,वही एक बार उनके पिताजी ने चुप कर यह सब चमत्कार देख रहे थी, इसी दौरान मां और उनके पिता की आंख एक दूसरे से मिल गई ,इस पर मां ने ओम का आकार लेते हुए धरती मां को पुकारा की मेरे पिताजी ने मुझे निर्वस्त्र देख लिया है और इस प्राथर्ना के साथ वे धरती मां के अंदर समा गई।



Conclusion:वहीं कुछ समय बाद उन्होंने इस पहाड़ी के ऊपर एक सोने चांदी के रूप में अपना हाथ प्रकट किया और वह यहां पर विराजमान हुई, वही जब राजपूतों और मुगलों के काल में यहां पर काफी चोरी चौपाटी हुआ करती थी तब यहां पर कुछ चोरों की नजर उस हाथ पर पड़ी और उन्होंने उसको चुरा लिया जिस पर वे तुरंत अंधे हो गए वहीं जब सुबह हुई अन्य लोगों को इस बारे में पता लगा तो उन लोगों ने उनसे कहा कि आप लोगों ने ऐसा क्यों किया और उन लोगों ने मां से क्षमा मांगते हुए मां के समक्ष बकरे और अन्य की बलि देने की मनोकामना की तभी से यहां पर बकरे और अन्य जानवरों की बलि दी जाती है और मां ने इस आराधना से प्रसन्न होकर उनकी दृष्टि वापस दे दी वही मां ने अपना पूर्ण स्वरूप दिखाते हुए अपना पूर्ण रूप मां भेसवा के मुख्य मंदिर में स्थापित किया और वे यहां पर विराजित हो गई और अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने लगी ।


विसुअल

1.मुख्य मंदिर के
2.जहां माँ अंतरध्यान हुई थी
3. मां का हाथ

बाइट

मां भेसवा के मंदिर के पुजारी की

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