रायसेन। सांची यू तो विश्व में बौद्ध स्थली के लिए पहचाना जाता है, लेकिन एक और वजह़ से सांची को दुनिया में जाना जा रहा है. बौद्ध स्थली में एक ऐसा अनोखा म्यूजियम है जहां 300 से ज्यादा कलाकृतियों को संजोकर रखी गई है. लिम्का अवॉर्ड जैसे चार अवार्ड मिलने के बाद भी ना जिला प्रशासन और ना ही सरकार का सहयोग इस म्यूजियम को मिल रहा है. वहीं कलेक्टर ने विश्वास दिलाया है कि वुड आर्ट म्यूजियम को लाभ और प्रोत्साहन दोनों प्रदान किए जाएंगे.
मिल चुके है चार लिम्का अवार्ड
मुन्नालाल का लकड़ियों में कला को खोजने का शौक इस कदर बढ़ा कि आज उन्होंने 300 से अधिक कलाकृतियां एकत्रित कर ली है. वुड आर्ट म्यूजियम को अभी तक चार लिम्का अवार्ड और अन्य अवार्ड भी मिल चुके हैं. देश-विदेश से सांची आने वाले पर्यटक इन वुड आर्ट को देख आश्चर्यचकित हो जाते है. जो इस निजी म्यूजियम को देखने आता है जो अनुपयोगी लकड़ियों और पत्थरों में खोजे हुए आर्ट को देख दातों तले उंगलियां दबा लेता हैं. कला प्रेमी मानते हैं कि इस निजी म्यूजियम में जो है दुनिया के किसी म्यूजियम में नहीं है. यह म्यूजियम पर्यावरण एवं उन संस्कृतियों को सजोए हुए हैं जिन्हें आने वाली पीढ़ियां सिर्फ किताबों में ही पढ़ेगी लेकिन देखने को नहीं मिलेगी.
30 साल में 300 से अधिक कलाकृतियां
वुड आर्ट म्यूजियम को बनाने में 30 साल का वक्त लग गया. म्यूजियम में 300 से अधिक लकड़ियों से बनी कलाकृतियां है. म्यूजियम में बैठा हुआ शेर, लेटी हुई महिला, मोहन जोदड़ो काल के बर्तन, चम्मच कटोरी और लकड़ी के ऑक्टोपस, कुत्ता, नाग-नागिन, डायनासोर, गुरु शिष्य, ममत्व महिला, ऐनाकोंडा, बाजूका, मनुष्य का गुर्दा, अवस्त्र महिला और महिला पुरुष जननांग, प्रेम करती कला, मां दुर्गा, भारत माता, साधु, गणेश, शिवलिंग, कुबेर के वुर्ड आर्ट है. वहीं पत्थरों से बनी कृषि के प्राचीन उपकरण, पत्थरों पर जीवाणु विषाणु और ग्लोब, कश्मीर की वादियां, अंडे की आकृति, मनुष्य की फोटो, मां बच्चे को दुलार करती पत्थर पर आर्ट भी म्यूजियम में है.