रायसेन। वैसे तो देशभर में अलग-अलग तरीके से होली का त्योहार मनाया जाता है. मध्यप्रदेश में भी इससे जुड़ी कई मान्यताएं और परंपरा हैं. इसी तरह की परंपरा देखने को मिलती है रायसेन के खंडेरा गांव में, जहां होली के दूज पर गांव का कोई भी शख्स धारदार औजार का इस्तेमाल नहीं करता है. इस दिन लोग छोले वाली माता की पूजा में मग्न रहते हैं.
ये है रायसेन जिले के खंडेरा गांव में स्थित छोले वाली माता का मंदिर. यहां होली के दूसरे दिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. इस दिन यहां विशेष पूजा और हवन किया जाता है. होली को लेकर यहां गांववालों की अपनी ही मान्यता है. यहां होली के दूसरे दिन पूरे गांव में धारदार औजार का इस्तेमाल नहीं होता है. यहां तक कि घर में सब्जी तक भी नहीं काटी जाती और न तो किसान ही कटाई का काम करते हैं. कैंची हो, कुल्हाड़ी हो या चाकू, किसी का भी इस्तेमाल नहीं किया जाता. गांव के लोग एक दिन पहले ही सब्जी काटकर रख लेते हैं. 500 सालों से यह परंपरा चली आ रही है.
इस मान्यता के पीछे एक दिलचस्प कहानी है. कहा जाता है कि एक बार गांव में महामारी फैली. गांववाले एक मृतक का अंतिम संस्कार करके लौटते, तो उन्हें गांव में 3 लोग और मरे हुए मिलते. महामारी को रोकने के लिए एक संत के कहने पर ग्रामीणों ने 7 दिन तक यज्ञ किया. पूर्णाहुति के दिन जमीन से 5 प्रतिमाएं निकलीं. उनका नाम छोले वाली माता रखा गया. होली की दूज पर पूजा के लिए हर घर से दो किलो गेहूं चंदे में लिया जाता है. दूज पर लोग पूजा करते हैं. बकरी के बच्चे की बलि देकर उसका खून एक खप्पर में भरकर चबूतरे पर रख दिया जाता है और बकरी के बच्चे का धड़ मंदिर में ही रखकर छोड़ दिया जाता है. रातभर मंदिर के पट खुले रखे जाते हैं. कहा जाता है कि रात में शेर बकरी के बच्चे का धड़ खाने के लिए आता है.
ग्रामीणों ने इस मंदिर के हजारों चमत्कार देखे हैं और इस मंदिर पर माता को विश्व की सबसे बड़ी 15 किलोमीटर लंबी चुनरी भी चढ़ाई जा चुकी है. यहां के चमत्कारों की चर्चा दूर-दूर तक के गांवों तक है.