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निवाड़ी: कृषि वैज्ञानिक टीम ने जिले के ग्रामों में फसलों का किया निरीक्षण - निवाड़ी किसान फसल बर्बाद

पीला मोजेक बीमारी से किसानों की खराब हुई फसलों की जांच के लिए कलेक्टर के आदेश पर केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय झांसी ने कृषि वैज्ञानिकों की एक टीम निवाड़ी भेजी है. टीम अब निरीक्षण कर रही है.

Agricultural scientist team inspects crops in villages of Niwari
कृषि वैज्ञानिक टीम ने किया फसलो का निरीक्षण
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Published : Sep 6, 2020, 12:24 PM IST

निवाड़ी। भारी बारिश और फसलों पर हुई बीमारी के कारण किसानों की सोयाबीन की फसल खराब हो गई थी. जिसके बाद से ही किसान लगातार सर्वे की मांग कर रहे थे, वहीं कलेक्टर आशीष भार्गव के प्रयास से केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय झांसी के कृषि वैज्ञानिकों की एक टीम ने, निवाड़ी जिले के ग्राम हर्ष मऊ, निवाड़ी, तरिचरकलां, ऊबोरा श्यामसी, गढ़कुंडार और कठउपहाड़ी आदि ग्रामों का दौरा किया. दौरे के दौरान टीम ने किसानों के खेतों में उड़द, मूंगफली, तिल आदि फसलों का निरीक्षण किया, वैज्ञानिकों की टीम में डॉ प्रशांत जंभुलकर, डॉ वैभव सिंह प्लांट पैथोलॉजिस्ट और डॉ उषा एंटोंमोलॉजिस्ट शामिल थे.

अधिकांश किसानों ने खरीफ की फसल में बिना सीडड्रिल के यानी ब्रॉडकास्टिंग बुवाई करने पर कृषि वैज्ञानिकों ने अफसोस जाहिर किया. उन्होंने बताया की आने वाले सालों में हमारे किसान भाइयों को चाहिए कि प्रत्येक फसल में बोनी की जाए, अर्थात सीडड्रिल के जरिए बुवाई की जाए. इससे खरपतवार नियंत्रण और कीट नियंत्रण में बहुत मदद मिलेगी. उड़द में तना एवं फली छेदक का प्रकोप पाया गया है. जिसके नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफास दवा 2 मिलीलीटर 1 लीटर पानी की दर से तत्काल स्प्रे करें.

इसी तरह से कई गांव में मूंगफली की फसल में भी तंबाकू की इल्ली का प्रकोप पाया गया है, जिसके नियंत्रण के लिए किसान फ्लुबेन्डमाइड 20 प्रतिशत की 300 मिलीलीटर मात्रा एक हेक्टर में स्प्रे कर सकते हैं.

यदि यह दवा ना मिले तो कवीनालफास 20 प्रतिशत का भी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं. और अगर यह दोनों दवा ना मिले तो नोबालूराना, इंडेक्साकार्ब की दो मिली प्रति लीटर पानी की दर से स्प्रे करने से इल्ली का नियंत्रण किया जा सकता है.

वहीं किसानों को मूंग ,उड़द, सोयाबीन में पीला मोजेक रोग से बचने के उपाय के लिए किसानों को प्रारंभिक अवस्था में रोग ग्रसित पौधे को फाड़ कर नष्ट करने की सलाह दी. वहीं रोग का प्रकोप ज्यादा होने पर किसानों को रासायनिक दवाओं के छिड़काव के लिए भी सलाह दी गई, जिसमें बीटा साईफ्लूथरिन-इमिडाक्लोप्रिड की 350 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर, थायोमिथाकजम-लेमबडा सायहेलोथिन 125 की मिली लीटर प्रति हेक्टेयर के मान से प्रयोग करने की सलाह दी गई.

इसी के पालन में जिले के उपसंचालक कृषि एसके श्रीवास्तव ने कृषि विभाग के समस्त अमले को भी निर्देशित किया कि वह दैनिक समीक्षा करें और पौध संरक्षण की सामायिक सलाह किसानों तक पहुंचाएं.

निवाड़ी। भारी बारिश और फसलों पर हुई बीमारी के कारण किसानों की सोयाबीन की फसल खराब हो गई थी. जिसके बाद से ही किसान लगातार सर्वे की मांग कर रहे थे, वहीं कलेक्टर आशीष भार्गव के प्रयास से केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय झांसी के कृषि वैज्ञानिकों की एक टीम ने, निवाड़ी जिले के ग्राम हर्ष मऊ, निवाड़ी, तरिचरकलां, ऊबोरा श्यामसी, गढ़कुंडार और कठउपहाड़ी आदि ग्रामों का दौरा किया. दौरे के दौरान टीम ने किसानों के खेतों में उड़द, मूंगफली, तिल आदि फसलों का निरीक्षण किया, वैज्ञानिकों की टीम में डॉ प्रशांत जंभुलकर, डॉ वैभव सिंह प्लांट पैथोलॉजिस्ट और डॉ उषा एंटोंमोलॉजिस्ट शामिल थे.

अधिकांश किसानों ने खरीफ की फसल में बिना सीडड्रिल के यानी ब्रॉडकास्टिंग बुवाई करने पर कृषि वैज्ञानिकों ने अफसोस जाहिर किया. उन्होंने बताया की आने वाले सालों में हमारे किसान भाइयों को चाहिए कि प्रत्येक फसल में बोनी की जाए, अर्थात सीडड्रिल के जरिए बुवाई की जाए. इससे खरपतवार नियंत्रण और कीट नियंत्रण में बहुत मदद मिलेगी. उड़द में तना एवं फली छेदक का प्रकोप पाया गया है. जिसके नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफास दवा 2 मिलीलीटर 1 लीटर पानी की दर से तत्काल स्प्रे करें.

इसी तरह से कई गांव में मूंगफली की फसल में भी तंबाकू की इल्ली का प्रकोप पाया गया है, जिसके नियंत्रण के लिए किसान फ्लुबेन्डमाइड 20 प्रतिशत की 300 मिलीलीटर मात्रा एक हेक्टर में स्प्रे कर सकते हैं.

यदि यह दवा ना मिले तो कवीनालफास 20 प्रतिशत का भी 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं. और अगर यह दोनों दवा ना मिले तो नोबालूराना, इंडेक्साकार्ब की दो मिली प्रति लीटर पानी की दर से स्प्रे करने से इल्ली का नियंत्रण किया जा सकता है.

वहीं किसानों को मूंग ,उड़द, सोयाबीन में पीला मोजेक रोग से बचने के उपाय के लिए किसानों को प्रारंभिक अवस्था में रोग ग्रसित पौधे को फाड़ कर नष्ट करने की सलाह दी. वहीं रोग का प्रकोप ज्यादा होने पर किसानों को रासायनिक दवाओं के छिड़काव के लिए भी सलाह दी गई, जिसमें बीटा साईफ्लूथरिन-इमिडाक्लोप्रिड की 350 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर, थायोमिथाकजम-लेमबडा सायहेलोथिन 125 की मिली लीटर प्रति हेक्टेयर के मान से प्रयोग करने की सलाह दी गई.

इसी के पालन में जिले के उपसंचालक कृषि एसके श्रीवास्तव ने कृषि विभाग के समस्त अमले को भी निर्देशित किया कि वह दैनिक समीक्षा करें और पौध संरक्षण की सामायिक सलाह किसानों तक पहुंचाएं.

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