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केदारेश्वर महादेव की प्रकृति करती है जलाभिषेक, हरियाली अमावस्या पर लगता है विशाल मेला

अरावली के पहाड़ों के बीच विराजमान केदारेश्वर महादेव के शिवलिंग पर प्रकृति दशकों से दिन-रात जलाभिषेक करती आ रही है. साथ ही यहां मौजूद कुंड में नहाने से शारीरिक कष्ट दूर हो जाते हैं, हरियाली अमावस्या पर यहां विशेष मेला भी लगता है.

केदारेश्वर महादेव मंदिर
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Published : Jul 31, 2019, 3:26 PM IST

नीमच। अरावली की पहाड़ियों के बीच कल-कल करते झरने सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इन्हीं पहाड़ियों के बीच स्थित हैं केदारेश्वर महादेव. बताया जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अरावली के पहाड़ों के बीच इस शिवलिंग की स्थापना की थी. जिला मुख्यालय से 76 किलोमीटर दूर रामपुरा-गांधी सागर मार्ग से आगे और अमरपुरा से 7 किमी कच्चे रास्ते से होकर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. जहां छोटे बड़े कुल मिलाकर सात कुण्ड हैं. ऐसी मान्यता है कि कुण्ड में नहाने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है.

केदारेश्वर महादेव मंदिर


इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां पहाड़ों से गिरता पानी मंदिर की दीवारों से होते हुए गोमुख से सीधे शिवलिंग पर पहुंचता है. जहां प्रकृति स्वयं 12 महीने भगवान शिव का अभिषेक करती है. सावन के हर सोमवार को यहां मेला लगता है, जबकि हरियाली अमावस्या के दिन विशेष रूप से भव्य मेला लगता है. जिसमें शामिल होने के लिए हजारों की संख्या में लोग दूर-दूराज से आते हैं.


इस मंदिर का निर्माण लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था. जिसके बाद मंदिर के विकास और रख-रखाव के लिए रामपुरा में केदारेश्वर विकास समिति का गठन किया गया है. मंदिर से पहले लगभग 50 मीटर नीचे वैष्णों देवी का एक छोटा मंदिर है, जबकि प्रवेश द्वार पर प्राचीन शिला लेख भी मौजूद है. मंदिर परिसर में हनुमानजी, गणेशजी और मां पार्वती की प्रतिमाओं के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं भी मौजूद हैं, जिनमें होल्कर कालीन कला शैली के प्रमाण मौजूद हैं.

नीमच। अरावली की पहाड़ियों के बीच कल-कल करते झरने सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इन्हीं पहाड़ियों के बीच स्थित हैं केदारेश्वर महादेव. बताया जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अरावली के पहाड़ों के बीच इस शिवलिंग की स्थापना की थी. जिला मुख्यालय से 76 किलोमीटर दूर रामपुरा-गांधी सागर मार्ग से आगे और अमरपुरा से 7 किमी कच्चे रास्ते से होकर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. जहां छोटे बड़े कुल मिलाकर सात कुण्ड हैं. ऐसी मान्यता है कि कुण्ड में नहाने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है.

केदारेश्वर महादेव मंदिर


इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां पहाड़ों से गिरता पानी मंदिर की दीवारों से होते हुए गोमुख से सीधे शिवलिंग पर पहुंचता है. जहां प्रकृति स्वयं 12 महीने भगवान शिव का अभिषेक करती है. सावन के हर सोमवार को यहां मेला लगता है, जबकि हरियाली अमावस्या के दिन विशेष रूप से भव्य मेला लगता है. जिसमें शामिल होने के लिए हजारों की संख्या में लोग दूर-दूराज से आते हैं.


इस मंदिर का निर्माण लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था. जिसके बाद मंदिर के विकास और रख-रखाव के लिए रामपुरा में केदारेश्वर विकास समिति का गठन किया गया है. मंदिर से पहले लगभग 50 मीटर नीचे वैष्णों देवी का एक छोटा मंदिर है, जबकि प्रवेश द्वार पर प्राचीन शिला लेख भी मौजूद है. मंदिर परिसर में हनुमानजी, गणेशजी और मां पार्वती की प्रतिमाओं के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं भी मौजूद हैं, जिनमें होल्कर कालीन कला शैली के प्रमाण मौजूद हैं.

Intro:अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने की थी इस शिवलिंग की स्थापना ,पूरे सावन में इस मंदिर में लगती है भक्तों की भीड़ Body:हरियाली से सराबोर अरावली की सुरम्य पहाडिय़ां, कल-कल गिरते झरने और पहाड़ों से गिरते पानी से होता है भगवान शिव का अभिषेक। यह नजारा है रामपुरा क्षेत्र के केदारेश्वर महादेव का, जहां प्रकृति स्वयं 12 महीने भगवान का अभिषेक करती है।
मनासा तहसील मुख्यालय से 50 किमी एवं भानपुरा से ६५ कि. मी. दूर स्थित है केदारेश्वर महादेव मंदिर। रामपुरा-गांधीसागर मार्ग पर अमरपुरा से 7 किमी क'चे रास्ते से होकर यहां पहुंचा जाता है। मान्यता है पांडवों ने अज्ञातवास के समय अरावली के पहाड़ों के बीच शिवलिंग की स्थापना की थी। पहाड़ों से गिरते पानी से भगवान शिव का हर समय अभिषेक होता है। पहाड़ों से गिरता पानी मंदिर की दीवारों से होते हुए गोमुख से सीधा शिवलिंग पर गिरता है। पांडवों के हाथों स्थापित शिवलिंग का रख-रखाव और मंदिर बनाने का कार्य लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर ने किया था।केदारेश्वर में छोटे बड़े कुल ७ कुण्ड है प्रति वर्ष सावन के हर सोमवार को मेला लगता है विशेष रूप से हरियाली अमावस्या को भव्य मेला लगता है . जिसमे आस पास के ग्रामीण क्षेत्रो से तथा रामपुरा से भी अनेक दर्शनार्थी शामिल होते है .
केदारेश्वर मंदिर के विकास और रख रखाव के लिए रामपुरा में केदारेश्वर विकास समिति भी गठित की गई है .मंदिर से पहले रास्ते में लगभग ५० मीटर निचे एक वैष्णो देवी का छोटा मंदिर है मंदिर के प्रवेश द्वार से पहले एक प्राचीन शीला लेख भी है मंदिर को आकर्षक रूप दिया और श्रद्धालुओं के रहने की व्यवस्था की। हर साल हजारों श्रद्धालु केदारेश्वर के दर्शन करने आते हैं। मंदिर परिसर में हनुमानजी, गणेशजी और मां पार्वती की भी प्रतिमाएं हैं। होल्करकालीन कला के अद्भुत नमूने भी नजर आते हैं। शिवलिंग के साथ ही देवी-देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। शिवलिंग के पास ही प्राकृतिक रूप से दो कुंड बने हैं। कुंडों के पानी में नहाने से शारीरिक व्याधियों से मुक्ति मिलती है। श्रावण में केदारेश्वर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है।
नीमच | जिला मुख्यालय से 76 किमी दूर स्थित है केदारेश्वर महादेव मंदिर। रामपुरा और गांधीसागर मार्ग पर अमरपुरा से 7 किलोमीटर कच्चे रास्ते से होकर यहां पहुंचा जा सकता है। कहा जाता है पांडवों ने अज्ञातवास के वक्त अरावली के पहाड़ों के बीच शिवलिंग की स्थापना की थी। बाद में इसका रख-रखाव व मंदिर निर्माण का कार्य अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था।

खासियत : पहाड़ों से गिरता पानी मंदिर की दीवारों से होते हुए गोमुख से सीधे शिवलिंग पर पहुंचा है जिससे भगवान का हर समय अभिषेक होता है। मंदिर में हनुमानजी, गणेशजी व माता पार्वती की भी प्रतिमाएं भी हैं। देवी-देवताओं की अन्य प्राचीन प्रतिमाएं भी यहां हैं। शिवलिंग के पास ही प्राकृतिक रूप से दो कुंड बने हैं। मान्यता है इनके पानी में नहाने से शारीरिक व्याधियों से मुक्ति मिलती है। सावन में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।Conclusion:
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