नीमच। अरावली की पहाड़ियों के बीच कल-कल करते झरने सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इन्हीं पहाड़ियों के बीच स्थित हैं केदारेश्वर महादेव. बताया जाता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान अरावली के पहाड़ों के बीच इस शिवलिंग की स्थापना की थी. जिला मुख्यालय से 76 किलोमीटर दूर रामपुरा-गांधी सागर मार्ग से आगे और अमरपुरा से 7 किमी कच्चे रास्ते से होकर इस मंदिर तक पहुंचा जा सकता है. जहां छोटे बड़े कुल मिलाकर सात कुण्ड हैं. ऐसी मान्यता है कि कुण्ड में नहाने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है.
इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां पहाड़ों से गिरता पानी मंदिर की दीवारों से होते हुए गोमुख से सीधे शिवलिंग पर पहुंचता है. जहां प्रकृति स्वयं 12 महीने भगवान शिव का अभिषेक करती है. सावन के हर सोमवार को यहां मेला लगता है, जबकि हरियाली अमावस्या के दिन विशेष रूप से भव्य मेला लगता है. जिसमें शामिल होने के लिए हजारों की संख्या में लोग दूर-दूराज से आते हैं.
इस मंदिर का निर्माण लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर ने करवाया था. जिसके बाद मंदिर के विकास और रख-रखाव के लिए रामपुरा में केदारेश्वर विकास समिति का गठन किया गया है. मंदिर से पहले लगभग 50 मीटर नीचे वैष्णों देवी का एक छोटा मंदिर है, जबकि प्रवेश द्वार पर प्राचीन शिला लेख भी मौजूद है. मंदिर परिसर में हनुमानजी, गणेशजी और मां पार्वती की प्रतिमाओं के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं भी मौजूद हैं, जिनमें होल्कर कालीन कला शैली के प्रमाण मौजूद हैं.