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किसानों की सरकार से मांग, अफीम की खेती में सीपीएस पद्धति के तहत शुरू करवाएं लेवी - afeem farming

पोस्तादाना के भाव कम होने के कारण किसानों के चेहरे मायूस हो गए हैं. किसान चाहते है कि सरकार सीपीएस पद्धति के तहत दिए गए अफीम की खेती के लाइसेंस में लेवी शुरू करवाएं.

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अफीम का खेत
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Published : Feb 19, 2023, 4:01 PM IST

नीमच। देश में सैकड़ों प्रकार की फसलों की पैदावार होती है. कब किस फसल के बढ़े हुए भाव किसान को निहाल कर जाएं और कब कोई फसल कौड़ियों के दाम बिक जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता. इस कारण किसान हमेशा लाभकारी मूल्य की अपेक्षा में सरकार के समक्ष याचक बन कर खड़ा रहता है. पोस्तादाना के भाव 2 लाख रुपये क्विंटल तक आने से किसान की बांछें खिली थी, लेकिन फिर से भाव 1.15 लाख रुपये क्विंटल ही रह गए हैं. किसान चाहते हैं कि सरकार सीपीएस पद्धति के तहत दिए गए अफीम की खेती के लाइसेंस में लेवी शुरू करवाएं. साथ ही अन्य सभी प्रकार की फसलों की पैदावार पर लाभकारी मूल्य की गारंटी दें, ताकि फसल उत्पादन के बाद घाटे की खेती से किसान को निराश नहीं होना पड़े.

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खेती के लिए नहीं बन पा रही सही नीतिः किसानों का मानना है कि भ्रष्ट नौकरशाही और नेताओं की अदूरदर्शिता के चलते खेती के लिए सही नीति नहीं बन पा रही है. छोटे किसानों के लिए खेती से परिवार का गुजारा बेहद मुश्किल हो गया है. ऐसे भी किसान हैं, जिनके परिवार में कोई नौकरीपेशा नहीं है, वह सिर्फ खेती पर ही निर्भर हैं. उनके लिए महंगाई के दौर में परिवार का भरण पोषण चुनौतीपूर्ण हो गया है. इसलिए उम्मीद है कि क्या चुनाव के पहले किसान की पीड़ा सरकार समझ पाएगी.

अफीम खेती की लागत और लाभ का गणितः अफीम उत्पादक किसानों का कहना है कि अफीम की खेती करने पर प्रति दस आर में बीजाई, दाे ट्राली गोबर खाद, रासायनिक खाद, निराई गुड़ाई, कीटनाशक, फफूंदनाशक, चौकसी, सिंचाई, तोता सुरक्षा जाली, पौध सुरक्षा डोरी एवं बेंत सहित लेवी (डोडा का चीरा लगाना) करने पर 1.50 लाख रुपये तक की लागत आती है, जबकि लेवी (सीपीएस पद्धति) नहीं करने पर औसतन 1.20 लाख रुपये की लागत आती है. जबकि प्रति 10 आरी में औसतन एक क्विंटल से 90 किलो लेवी वाली काश्त और 80 किलो सीपीएस वाली काश्त से पोस्तादाना प्राप्त होता है. लेवी वाली काश्त से प्राप्त पोस्ता का भाव मंडी में प्रति क्विंटल 15 से 35 हजार रुपये क्विंटल अधिक रहता है. वहीं, धूला की मात्रा नगण्य/औसतन प्रति क्विंटल 300 ग्राम होती है, जबकि सीपीएस पद्धति की काश्त से प्राप्त पोस्ताना की छनाई करने पर डेढ़ से ढाई किलो धूली निकलती है. धूली युक्त पोस्ता की मंडी में व्यापारी भी खरीद नहीं करते हैं.

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किसानों को लाभ कर गारंटी दे सरकारः किसान दशरथ पाटीदार समरथ कुमावत ने बताया कि किसान सभी प्रकार की फसलों की खेती करते हैं, इस कारण संतुलन बना रहता है और विपरीत परिस्थितियां सामने आने के बाद भी देश अन्य देशों की तुलना में आर्थिक रूप से खड़ा रह पाता है. किसानों की कड़ी मेहनत से ही मध्य प्रदेश सरकार लगातार देश में सर्वाधिक अनाज उत्पादन के लिए सम्मानित होती रही है. यदि सरकार लाभ की गारंटी दे तो किसान अफीम की बजाए अन्य खेती करना शुरू कर देंगे.

समर्थन मूल्य पर क्यों नहीं खरीदती सरकारः किसान कैलाश लोहार ने बताया कि सरकार ही किसानों से आवश्यकता अनुसार फसलों का रकबा बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है, आव्हान करती है. जैसे कि वर्तमान में केंद्र सरकार मोटे अनाज के लिए प्रेरित कर रही है, लेकिन लाभकारी मूल्य की कोई गारंटी नहीं देता है. कुशल चंद्र चौधरी ने बताया कि फलदार पौधे लगाने की कॉन्ट्रैक्ट खेती शुरू की गई, लेकिन फल तुड़ाई के बाद लेवाल यानी व्यापारी गायब हो गए. किसान को दोहरा नुकसान भुगतना पड़ा. सरकार ने लहसुन, प्याज और अन्य फसलों का समर्थन मूल्य घोषित किया हुआ है, सरकार मंडियों में उपज के भाव समर्थन मूल्य से कम होने पर क्यों खुद उपज की खरीदी क्यों नहीं करती.

भाजपा सरकार की गलत नीतियों से किसान परेशानः कांग्रेस नेता उमराव सिंह गुर्जर ने बताया कि भाजपा सरकार की गलत नीतियों से किसान परेशान हैं. अफीम का लाइसेंस निर्धारित रकबा दस आरी के लिए ही मिलता है, उससे अधिक में फसल नहीं बोई जा सकती है. इस कारण उत्पादन भी सीमित ही होता है. उन्होंने कहा कि सरकार पिछले छह साल से डोडा चूरा नहीं खरीद रही. पोस्ता मंडी भी अकारण छह माह से बंद रही है. वहीं, पोस्तादाना के भाव 2 लाख रुपये प्रति क्विंटल से गिर कर 1.15 लाख रुपये ही रह गए हैं. किसानों को सहपठित धाराओं के झूठे मामलों में लोगों को फंसाया जा रहा है और अवैध वसूली हो रही है. गुर्जर ने कहा कि सीपीएस पद्धति किसानों के हित में नहीं है, क्योंकि किसान इस फसल के लिए कड़ी मेहनत करता है और खाद, दवाइयों का इस्तेमाल लाभ की उम्मीद से करता है. इस पद्धति से पोस्तादाना की टीनोपाल किस्म यानी उच्च गुणवत्ता की पैदावार नहीं होती और औसत पैदावार भी कम होती है. इस कारण परंपरागत डोडा को चीरा लगा कर अफीम सहेजने की प्रक्रिया शुरू करना चाहिए, जिससे सरकार को भी औषधी निर्माण में मदद मिलेगी और किसान भाइयों को भी फायदा होगा.

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किसान को लाभ अर्जित करने का पूरा हकः भाजपा किसान मोर्चा जिलाध्यक्ष नवल गिरी गोस्वामी, कुंचड़ौद ने बताया कि जिन किसानों के लाइसेंस कम मार्फिन या औसत की कुछ कमी के कारण रोके गए थे, सरकार ने उनके प्रति सहानुभूति दर्शाइ है. इसी के तहत सीपीएस पद्धति से अफीम काश्त के लाइसेंस जारी किए हैं. गोस्वामी ने कहा कि कड़ी मेहनत की एवज में किसान लाभकारी मूल्य पाने का हकदार होता है. जब भी चुनाव आते हैं तो कर्मचारी, अधिकारी और अन्य सभी सामाजिक वर्ग अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन, आंदोलन करते हैं. क्षेत्र का 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है और किसान को भी उसके हक की आवाज उठाने का नैतिक एवं विधिक अधिकार है.

जिले के किसान करते हैं करीब 79 प्रकार की फसलों की खेतीः वरिष्ठ अभिभाषक विजय शंकर शर्मा ने बताया कि हमारा देश, भारत कृषि प्रधान देश है. जिले के किसान करीब 79 प्रकार की फसलों की खेती करते हैं, जिस फसल का रकबा बढ़ जाता है, उसके भाव इतने अधिक गिर जाते हैं कि किसान को लागत भी नहीं मिल पाती है. शर्मा ने कहा कि खेती को लाभ का धंधा बनाने का दावा सरकार करती है, लेकिन हम देख रहे हैं कि अनेक प्रकार की फसलों जैसे प्याज, लहसुन, मटर, टमाटर आदि में किसान को लागत भी नहीं मिल पा रही है. लाभकारी मूल्य नहीं मिलने के कारण युवा पीढ़ी खेती से मुंह मोड़ रही है. सरकार की आयात-निर्यात नीति ही गलत है, बाजार पर कोई नियंत्रण नहीं है. इस कारण बिचौलिये अधिक लाभ अर्जित करते हैं.

नीमच। देश में सैकड़ों प्रकार की फसलों की पैदावार होती है. कब किस फसल के बढ़े हुए भाव किसान को निहाल कर जाएं और कब कोई फसल कौड़ियों के दाम बिक जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता. इस कारण किसान हमेशा लाभकारी मूल्य की अपेक्षा में सरकार के समक्ष याचक बन कर खड़ा रहता है. पोस्तादाना के भाव 2 लाख रुपये क्विंटल तक आने से किसान की बांछें खिली थी, लेकिन फिर से भाव 1.15 लाख रुपये क्विंटल ही रह गए हैं. किसान चाहते हैं कि सरकार सीपीएस पद्धति के तहत दिए गए अफीम की खेती के लाइसेंस में लेवी शुरू करवाएं. साथ ही अन्य सभी प्रकार की फसलों की पैदावार पर लाभकारी मूल्य की गारंटी दें, ताकि फसल उत्पादन के बाद घाटे की खेती से किसान को निराश नहीं होना पड़े.

MP Nemuch जिले में 25 बीघा जमीन पर अवैध रूप से अफीम की खेती, पुलिस ने दी दबिश

खेती के लिए नहीं बन पा रही सही नीतिः किसानों का मानना है कि भ्रष्ट नौकरशाही और नेताओं की अदूरदर्शिता के चलते खेती के लिए सही नीति नहीं बन पा रही है. छोटे किसानों के लिए खेती से परिवार का गुजारा बेहद मुश्किल हो गया है. ऐसे भी किसान हैं, जिनके परिवार में कोई नौकरीपेशा नहीं है, वह सिर्फ खेती पर ही निर्भर हैं. उनके लिए महंगाई के दौर में परिवार का भरण पोषण चुनौतीपूर्ण हो गया है. इसलिए उम्मीद है कि क्या चुनाव के पहले किसान की पीड़ा सरकार समझ पाएगी.

अफीम खेती की लागत और लाभ का गणितः अफीम उत्पादक किसानों का कहना है कि अफीम की खेती करने पर प्रति दस आर में बीजाई, दाे ट्राली गोबर खाद, रासायनिक खाद, निराई गुड़ाई, कीटनाशक, फफूंदनाशक, चौकसी, सिंचाई, तोता सुरक्षा जाली, पौध सुरक्षा डोरी एवं बेंत सहित लेवी (डोडा का चीरा लगाना) करने पर 1.50 लाख रुपये तक की लागत आती है, जबकि लेवी (सीपीएस पद्धति) नहीं करने पर औसतन 1.20 लाख रुपये की लागत आती है. जबकि प्रति 10 आरी में औसतन एक क्विंटल से 90 किलो लेवी वाली काश्त और 80 किलो सीपीएस वाली काश्त से पोस्तादाना प्राप्त होता है. लेवी वाली काश्त से प्राप्त पोस्ता का भाव मंडी में प्रति क्विंटल 15 से 35 हजार रुपये क्विंटल अधिक रहता है. वहीं, धूला की मात्रा नगण्य/औसतन प्रति क्विंटल 300 ग्राम होती है, जबकि सीपीएस पद्धति की काश्त से प्राप्त पोस्ताना की छनाई करने पर डेढ़ से ढाई किलो धूली निकलती है. धूली युक्त पोस्ता की मंडी में व्यापारी भी खरीद नहीं करते हैं.

शिवरात्रि में ठंडाई पीने ने 100 से अधिक लोग बीमार, अस्पताल में बुलाए गए अतिरिक्त डॉक्टर

किसानों को लाभ कर गारंटी दे सरकारः किसान दशरथ पाटीदार समरथ कुमावत ने बताया कि किसान सभी प्रकार की फसलों की खेती करते हैं, इस कारण संतुलन बना रहता है और विपरीत परिस्थितियां सामने आने के बाद भी देश अन्य देशों की तुलना में आर्थिक रूप से खड़ा रह पाता है. किसानों की कड़ी मेहनत से ही मध्य प्रदेश सरकार लगातार देश में सर्वाधिक अनाज उत्पादन के लिए सम्मानित होती रही है. यदि सरकार लाभ की गारंटी दे तो किसान अफीम की बजाए अन्य खेती करना शुरू कर देंगे.

समर्थन मूल्य पर क्यों नहीं खरीदती सरकारः किसान कैलाश लोहार ने बताया कि सरकार ही किसानों से आवश्यकता अनुसार फसलों का रकबा बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है, आव्हान करती है. जैसे कि वर्तमान में केंद्र सरकार मोटे अनाज के लिए प्रेरित कर रही है, लेकिन लाभकारी मूल्य की कोई गारंटी नहीं देता है. कुशल चंद्र चौधरी ने बताया कि फलदार पौधे लगाने की कॉन्ट्रैक्ट खेती शुरू की गई, लेकिन फल तुड़ाई के बाद लेवाल यानी व्यापारी गायब हो गए. किसान को दोहरा नुकसान भुगतना पड़ा. सरकार ने लहसुन, प्याज और अन्य फसलों का समर्थन मूल्य घोषित किया हुआ है, सरकार मंडियों में उपज के भाव समर्थन मूल्य से कम होने पर क्यों खुद उपज की खरीदी क्यों नहीं करती.

भाजपा सरकार की गलत नीतियों से किसान परेशानः कांग्रेस नेता उमराव सिंह गुर्जर ने बताया कि भाजपा सरकार की गलत नीतियों से किसान परेशान हैं. अफीम का लाइसेंस निर्धारित रकबा दस आरी के लिए ही मिलता है, उससे अधिक में फसल नहीं बोई जा सकती है. इस कारण उत्पादन भी सीमित ही होता है. उन्होंने कहा कि सरकार पिछले छह साल से डोडा चूरा नहीं खरीद रही. पोस्ता मंडी भी अकारण छह माह से बंद रही है. वहीं, पोस्तादाना के भाव 2 लाख रुपये प्रति क्विंटल से गिर कर 1.15 लाख रुपये ही रह गए हैं. किसानों को सहपठित धाराओं के झूठे मामलों में लोगों को फंसाया जा रहा है और अवैध वसूली हो रही है. गुर्जर ने कहा कि सीपीएस पद्धति किसानों के हित में नहीं है, क्योंकि किसान इस फसल के लिए कड़ी मेहनत करता है और खाद, दवाइयों का इस्तेमाल लाभ की उम्मीद से करता है. इस पद्धति से पोस्तादाना की टीनोपाल किस्म यानी उच्च गुणवत्ता की पैदावार नहीं होती और औसत पैदावार भी कम होती है. इस कारण परंपरागत डोडा को चीरा लगा कर अफीम सहेजने की प्रक्रिया शुरू करना चाहिए, जिससे सरकार को भी औषधी निर्माण में मदद मिलेगी और किसान भाइयों को भी फायदा होगा.

छिंदवाड़ा के चांद में महाशिवरात्रि पर तनाव, एक युवक ने शोभायात्रा के दौरान तोड़ डाला साउंड सिस्टम, कार्रवाई की मांग को लेकर थाने का घेराव-चक्काजाम

किसान को लाभ अर्जित करने का पूरा हकः भाजपा किसान मोर्चा जिलाध्यक्ष नवल गिरी गोस्वामी, कुंचड़ौद ने बताया कि जिन किसानों के लाइसेंस कम मार्फिन या औसत की कुछ कमी के कारण रोके गए थे, सरकार ने उनके प्रति सहानुभूति दर्शाइ है. इसी के तहत सीपीएस पद्धति से अफीम काश्त के लाइसेंस जारी किए हैं. गोस्वामी ने कहा कि कड़ी मेहनत की एवज में किसान लाभकारी मूल्य पाने का हकदार होता है. जब भी चुनाव आते हैं तो कर्मचारी, अधिकारी और अन्य सभी सामाजिक वर्ग अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन, आंदोलन करते हैं. क्षेत्र का 80 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है और किसान को भी उसके हक की आवाज उठाने का नैतिक एवं विधिक अधिकार है.

जिले के किसान करते हैं करीब 79 प्रकार की फसलों की खेतीः वरिष्ठ अभिभाषक विजय शंकर शर्मा ने बताया कि हमारा देश, भारत कृषि प्रधान देश है. जिले के किसान करीब 79 प्रकार की फसलों की खेती करते हैं, जिस फसल का रकबा बढ़ जाता है, उसके भाव इतने अधिक गिर जाते हैं कि किसान को लागत भी नहीं मिल पाती है. शर्मा ने कहा कि खेती को लाभ का धंधा बनाने का दावा सरकार करती है, लेकिन हम देख रहे हैं कि अनेक प्रकार की फसलों जैसे प्याज, लहसुन, मटर, टमाटर आदि में किसान को लागत भी नहीं मिल पा रही है. लाभकारी मूल्य नहीं मिलने के कारण युवा पीढ़ी खेती से मुंह मोड़ रही है. सरकार की आयात-निर्यात नीति ही गलत है, बाजार पर कोई नियंत्रण नहीं है. इस कारण बिचौलिये अधिक लाभ अर्जित करते हैं.

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