नीमच। विस्थापन का दर्द वहीं समझ सकता है, जिसने अपनी जमीन छोड़ी हो, मामला नीमच जिले के रामपुरा तहसील के एक गांव का है. जिसे विस्थापन के दौरान जमीन और गांव का नाम तो दे दिया गया. लेकिन मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित है. 2015 में अभ्यारण क्षेत्र के करणपुरा गांव को वन्य क्षेत्र से विस्थापित किया गया था. जिसके बाद सरकार ने मुआवजे के साथ रहने के लिए जमीन तो दी है, पर यहां के बच्चे आज भी शिक्षा के लिए प्रशासन का मुंह ताक रहे है.
मामला जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर रामपुरा तहसील के अंतर्गत ग्राम पंचायत बुज में आने वाले खेड़ा गांव का है. इस गांव को गांधी सागर अभ्यारण क्षेत्र के करणपुरा गांव को वन्य क्षेत्र से विस्थापित किया गया था. इस खेड़ा गांव की जनसंख्या करीब 200 है और करीब 45 से 50 बच्चे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि पिछले चार साल से बच्चों ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है.
ग्रामीणों का कहना है कि खेडा गांव से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर एक स्कूल है. लेकिन स्कूल तक जाने के लिए घना जंगल से होकर गुजरना पड़ता है. जिसमें जंगली जानवरों से खतरा बना रहता है. इस कारण पालक बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे है. परिजनों कहना है कि गांव में स्कूल होना चाहिए ताकि बच्चे पढ़ाई कर सकें.
वहीं गांव में बिजली की भी सुविधा नहीं है, जिस कारण ग्रामीमों ने बास-बल्ली के सहारे दूसरे जगह से बिजली कनेक्शन ले रखा है. लेकिन वो भी बारिश के दिन में तेज हवा चलने से टूट जाती है. जिससे ग्रामीणों को अंधेर में रहना पड़ता है. वहीं गांव में बिजली के खंभे तो नहीं लेकिन बिल बार आता है. ग्रामीणों का कहना हमें वोट देने का अधिकार तो दिया गया है लेकिन सुविधाओं के नाम पर हमें कुछ नहीं दिया गया है.
वहीं इस मामले में एडीएम विनय कुमार धोका का कहना है की गांव की दूरी 3 किलो मीटर से कम है. इस वजह से गांव में स्कूल नहीं खोला गया होगा. उनका कहना है ग्रामीणों की समस्या को लेकर अधिकारियों को चर्चा करेंगे और उसे जल्द से जल्द समाधान करने की कोशिश करेंगे.