ETV Bharat / state

विस्थापन के बाद मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहा ये गांव, शिक्षा से वंचित आदिवासी बच्चे! - नीमच न्यूज

करणपुरा गांव के विस्थापन को प्रशासन ने रहने की जगह तो दे दी, लेकिन मूलभूत सुविधाओं के नाम पर ग्रामीणों को अधिकारियों का मुंह ताकना पड़ रहा है. गांव में स्कूल नहीं होने के कारण बच्चे प्रथामिक शिक्षा तक नहीं ले पा रहे हैं.

स्कूल नहीं होने से पढ़ नहीं पा रहे बच्चे
author img

By

Published : Aug 11, 2019, 3:36 PM IST

नीमच। विस्थापन का दर्द वहीं समझ सकता है, जिसने अपनी जमीन छोड़ी हो, मामला नीमच जिले के रामपुरा तहसील के एक गांव का है. जिसे विस्थापन के दौरान जमीन और गांव का नाम तो दे दिया गया. लेकिन मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित है. 2015 में अभ्यारण क्षेत्र के करणपुरा गांव को वन्य क्षेत्र से विस्थापित किया गया था. जिसके बाद सरकार ने मुआवजे के साथ रहने के लिए जमीन तो दी है, पर यहां के बच्चे आज भी शिक्षा के लिए प्रशासन का मुंह ताक रहे है.

मामला जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर रामपुरा तहसील के अंतर्गत ग्राम पंचायत बुज में आने वाले खेड़ा गांव का है. इस गांव को गांधी सागर अभ्यारण क्षेत्र के करणपुरा गांव को वन्य क्षेत्र से विस्थापित किया गया था. इस खेड़ा गांव की जनसंख्या करीब 200 है और करीब 45 से 50 बच्चे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि पिछले चार साल से बच्चों ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है.

विस्थापन के बाद मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहा ये गांव

ग्रामीणों का कहना है कि खेडा गांव से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर एक स्कूल है. लेकिन स्कूल तक जाने के लिए घना जंगल से होकर गुजरना पड़ता है. जिसमें जंगली जानवरों से खतरा बना रहता है. इस कारण पालक बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे है. परिजनों कहना है कि गांव में स्कूल होना चाहिए ताकि बच्चे पढ़ाई कर सकें.

वहीं गांव में बिजली की भी सुविधा नहीं है, जिस कारण ग्रामीमों ने बास-बल्ली के सहारे दूसरे जगह से बिजली कनेक्शन ले रखा है. लेकिन वो भी बारिश के दिन में तेज हवा चलने से टूट जाती है. जिससे ग्रामीणों को अंधेर में रहना पड़ता है. वहीं गांव में बिजली के खंभे तो नहीं लेकिन बिल बार आता है. ग्रामीणों का कहना हमें वोट देने का अधिकार तो दिया गया है लेकिन सुविधाओं के नाम पर हमें कुछ नहीं दिया गया है.

वहीं इस मामले में एडीएम विनय कुमार धोका का कहना है की गांव की दूरी 3 किलो मीटर से कम है. इस वजह से गांव में स्कूल नहीं खोला गया होगा. उनका कहना है ग्रामीणों की समस्या को लेकर अधिकारियों को चर्चा करेंगे और उसे जल्द से जल्द समाधान करने की कोशिश करेंगे.

नीमच। विस्थापन का दर्द वहीं समझ सकता है, जिसने अपनी जमीन छोड़ी हो, मामला नीमच जिले के रामपुरा तहसील के एक गांव का है. जिसे विस्थापन के दौरान जमीन और गांव का नाम तो दे दिया गया. लेकिन मूलभूत सुविधाओं से आज भी वंचित है. 2015 में अभ्यारण क्षेत्र के करणपुरा गांव को वन्य क्षेत्र से विस्थापित किया गया था. जिसके बाद सरकार ने मुआवजे के साथ रहने के लिए जमीन तो दी है, पर यहां के बच्चे आज भी शिक्षा के लिए प्रशासन का मुंह ताक रहे है.

मामला जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर रामपुरा तहसील के अंतर्गत ग्राम पंचायत बुज में आने वाले खेड़ा गांव का है. इस गांव को गांधी सागर अभ्यारण क्षेत्र के करणपुरा गांव को वन्य क्षेत्र से विस्थापित किया गया था. इस खेड़ा गांव की जनसंख्या करीब 200 है और करीब 45 से 50 बच्चे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि पिछले चार साल से बच्चों ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है.

विस्थापन के बाद मूलभूत सुविधा के लिए तरस रहा ये गांव

ग्रामीणों का कहना है कि खेडा गांव से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर एक स्कूल है. लेकिन स्कूल तक जाने के लिए घना जंगल से होकर गुजरना पड़ता है. जिसमें जंगली जानवरों से खतरा बना रहता है. इस कारण पालक बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे है. परिजनों कहना है कि गांव में स्कूल होना चाहिए ताकि बच्चे पढ़ाई कर सकें.

वहीं गांव में बिजली की भी सुविधा नहीं है, जिस कारण ग्रामीमों ने बास-बल्ली के सहारे दूसरे जगह से बिजली कनेक्शन ले रखा है. लेकिन वो भी बारिश के दिन में तेज हवा चलने से टूट जाती है. जिससे ग्रामीणों को अंधेर में रहना पड़ता है. वहीं गांव में बिजली के खंभे तो नहीं लेकिन बिल बार आता है. ग्रामीणों का कहना हमें वोट देने का अधिकार तो दिया गया है लेकिन सुविधाओं के नाम पर हमें कुछ नहीं दिया गया है.

वहीं इस मामले में एडीएम विनय कुमार धोका का कहना है की गांव की दूरी 3 किलो मीटर से कम है. इस वजह से गांव में स्कूल नहीं खोला गया होगा. उनका कहना है ग्रामीणों की समस्या को लेकर अधिकारियों को चर्चा करेंगे और उसे जल्द से जल्द समाधान करने की कोशिश करेंगे.

Intro:विस्तापन का दर्द एक ऐसा गाँव जो हर सुविधा से है वंचितBody:
# 200 की आबादी वाला खेड़ा गाँव, शिक्षा से वंचित करीब 45 बच्चे
# गाँव में पिछले 4 साल से स्कूल की बिल्डिंग की एक दीवाल तक नहीं
# बिजली के बिल तो आते है, मगर गाँव में बिजली का पोल तक नहीं
# 1किलोमीटर दूर से बांस-बल्लियों के सहारे आ रही है बिजली
# सड़क, पानी मुलभुत सुविधा तक नहीं, जंगल में जानवरो का डर
# वोट देने का अधिकार है, मगर सुविधा के नाम पर जीरो




HEADING : विस्तापन का दर्द...

ANCHOR :
नीमच। विस्तापन का दर्द वही समज सकता है जिसने अपनी जमीन छोड़ी हो, मामला नीमच जिले के रामपुरा तहसील के एक गाँव का है जिसे विस्तापन के दौरान जमीन और गाँव का नाम तो दे दिया गया लेकिन शिक्षा की व्यवस्था अभी तक नहीं की गई! सन 2015 में इस गाँव को विस्थापित किया गया था लेकिन सरकार ने मुआवजे के साथ रहने के लिए जमीन तो दे दी लेकिन शिक्षा की कोई व्यवस्था यहाँ पर नहीं की जिसकी वजह से यहाँ के बच्चो ने रतक आज तक स्कूल का महू तक नहीं देखा !

दरअसल मामला जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर रामपुरा तहसील के अंतर्गत ग्राम पंचायत बुज में आने वाले खेड़ा गाँव का है।
सन 2015 में गांधी सागर अभ्यारण क्षेत्र के करणपुरा गांव को वन्य क्षेत्र से विस्थापित किया गया था। इस खेड़ा गाँव की जनसँख्या करीब 200 है! और यहाँ पर सभी आदिवासी परिवार है और करीब 45 से 50 बच्चे है जो पिछले चार साल से स्कूल पढाई से आज तक वंचित है!
कारण गाँव मे स्कूल नही होना ओर स्कूल जिस गाँव मे है वह खेडा गाँव से करीब तीन किलोमीटर दुर है! रास्ते मे घना जंगल है, जिसमे जहरीले, जंगली जानवरो से खतरा बना रहता है! इस कारण पालक बच्चो को स्कूल नही भेज पा रहे है! परिजनों कहना है कि गाँव मे स्कूल होना चाहिए ताकि बच्चे पढ़ सके! इस कारण बच्चे घर पर ही रहकर छोटे भाई बहनो की देख भाल के साथ घर की चैकिदारी का काम कर रहे है! पढने लिखने की उम्र मे बच्चे घर के काम काज सिख रहे है! गाँव मे करीब 18 बच्चो का नाम बुज की प्राथमिक शाला मे खाना पुर्ति के लिए नाम दर्ज कर दिया गया है! 12 से 15 साल के उम्र के बच्चे कक्षा 1 मे दर्ज है! जो आज भी स्कूल नही जा पा रहे है!
गाँव मे शिक्षा ही नही बाकि सुविधाओं के हाल भी बेहाल है! गांव तक पहुचने के लिए मुख्य सडक से करीब 1 किलो मीटर जंगल से पैदल होकर गुजरना पडता है! गाँव मे बिजली जो खम्बो पर नही 1 किलोमीटर दुर से बास-बल्ली के सहारे आ रही है जिसका बील भी आ रहा है! आधी, तुफान व बारीश के दौरान तारो ओर बल्लीयो के टुटने पर कई दिन तक अंघेरे मे रहना पडता है! ओर पानी मे करंट फेलने पर अनहोनी का डर भी बना रहता है! पानी के लिए एक मात्र हैंड पम्प है, जो गर्मी आते आते ही दम तोड देता है!
विगत 4 साल मे गा्रमीणो द्वारा मंत्री विधायक और प्रशासनिक अधिकारीयो को दर्जनभर आवदेन दिये गये मगर आजतक केवल और इस आदिवासीयो को आशवासन ही मिला है! लोगो का मानना है कि आदिवासी गाँव होने के कारण उनकी आवाज मे इतना दम नही है कि जो शासन-प्रशासन तक पहुच सके! खेडा बुज गाँव की तस्वीर भी उन तमात विस्थापित गॉंवो की तरह ही है जहां विस्थापन से पुर्व खोखले आस्वाशन के सपने ग्रामीणो को दिखाये गये! दुखद बात यह है कि जिम्मेदारो को बच्चो के भविष्य की चिंता नही है जिन्होने 4 साल से स्कूल का मुह नही देखा है!
वही पुरे मामले पर एडीएम विनय कुमार धोका का कहना है की गाँव की दुरी 3 किलो मीटर से कम होगी इस वजह से स्कूल नही खोला गया होगा! बच्चे अब तक शिक्षा से कैसे वंचित रहे है! इसकी जानकारी लेकर शिक्षा की व्यवस्था तुरंत की जायेगी!


गाँव में बच्चे, आधार कार्ड, बिजली बिल, गाँव में खेलते बच्चे, बुज का शासकीय स्कूल, गाँव, बिजली!

बाईट, 1 सुरेश भील ग्रामीण
बाईट, 2 ग्यारसी बाई
बाइट-3 दिनेश पडायपंथी समाज सेवी
बाइट-4 मोहन भील
बाईट, 5 विनय कुमार धोखा, एडीएम नीमच
बाइट 6 पी .एस .गोयलConclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.