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ग्वाल नृत्यों से सजा और मिठाई की मिठास से भरा अनोखा मोहद का मड़ई मेला

ग्वाल नृत्यों से सजा और मिठाई की मिठास से भरा अनोखा मड़ई मेला अपने आप में ग्रामीणों के आकर्षण का केंद्र बिंदु होता है. नरसिंहपुर जिले के छोटे से गांव मोहद में दीवाली के बाद ये परंपरागत मेला भरता है.

मोहद का मड़ई मेला
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Published : Nov 3, 2019, 5:17 AM IST

नरसिंहपुर। प्राचीन परंपराओं से ओत-प्रोत, ग्वाल नृत्यों से सजा और मिठाई की मिठास से भरा अनोखा मड़ई मेला अपने आप में ग्रामीणों के आकर्षण का केंद्र बिंदु होता है. नरसिंहपुर जिले के छोटे से गांव मोहद में दीवाली के बाद ये परंपरागत मेला भरता है और इसमें लोक नृत्य से लेकर सभी सामान ग्रामीणों को आसानी से उपलब्ध होता है. मड़ई के मेले में आने वाले व्यापारियों की मिठाई के दाम इसी गांव के बुजुर्ग तय करते हैं और उसी हिसाब से फिर बिक्री शुरू होती है.

बताया जाता है कि मौहद का मड़ई मेला मुगल साम्राज्य के जमाने से लगता आ रहा है. लगभग ढाई सौ साल पुराने मोहद के इस मड़ई मेले की पहचान अलग है. ग्वाल परंपरा से लेकर स्थानीय मिठाई का ये मेला बहुत लोकप्रिय है. हजारों की संख्या में लोग इस मेले का आनंद उठाने आते हैं और पूरे साल इस मड़ई का इंतजार भी करते हैं.

मोहद का मड़ई मेला

मेले में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किसी को नुकसान ना पहुंचे. मेले में एक और खास बात ये है की मड़ई मेला शुरू होने के पहले माता चंडी की पूजा की जाती है, जिसमें सभी लोग हिस्सा लेते हैं. इसके साथ ही ऊंची-ऊंची ढाल जो मोर पंख की बनी होती हैं, उनको लेकर ग्वाल नृत्य करते हैं. मेले में महिलाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं और जमकर मेले में खरीददारी भी करती हैं.

वहीं स्थानीय विधायक भी हर साल मेले में आते हैं. उनका कहना था ये मड़ई मेला सभी जाति एवं धर्म को एकरूपता प्रदान करता है. सभी लोग मिल-जुलकर मेले में आनंद लेते हैं. लोक नृत्य का आनंद लेते हैं और यही हमारी परंपरा और सभ्यता भी है. सांस्कृतिक विरासत को समेटे मोहद ग्राम का ये पारंपरिक मेला बताता है कि यही भारत की असली विरासत है.

नरसिंहपुर। प्राचीन परंपराओं से ओत-प्रोत, ग्वाल नृत्यों से सजा और मिठाई की मिठास से भरा अनोखा मड़ई मेला अपने आप में ग्रामीणों के आकर्षण का केंद्र बिंदु होता है. नरसिंहपुर जिले के छोटे से गांव मोहद में दीवाली के बाद ये परंपरागत मेला भरता है और इसमें लोक नृत्य से लेकर सभी सामान ग्रामीणों को आसानी से उपलब्ध होता है. मड़ई के मेले में आने वाले व्यापारियों की मिठाई के दाम इसी गांव के बुजुर्ग तय करते हैं और उसी हिसाब से फिर बिक्री शुरू होती है.

बताया जाता है कि मौहद का मड़ई मेला मुगल साम्राज्य के जमाने से लगता आ रहा है. लगभग ढाई सौ साल पुराने मोहद के इस मड़ई मेले की पहचान अलग है. ग्वाल परंपरा से लेकर स्थानीय मिठाई का ये मेला बहुत लोकप्रिय है. हजारों की संख्या में लोग इस मेले का आनंद उठाने आते हैं और पूरे साल इस मड़ई का इंतजार भी करते हैं.

मोहद का मड़ई मेला

मेले में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किसी को नुकसान ना पहुंचे. मेले में एक और खास बात ये है की मड़ई मेला शुरू होने के पहले माता चंडी की पूजा की जाती है, जिसमें सभी लोग हिस्सा लेते हैं. इसके साथ ही ऊंची-ऊंची ढाल जो मोर पंख की बनी होती हैं, उनको लेकर ग्वाल नृत्य करते हैं. मेले में महिलाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं और जमकर मेले में खरीददारी भी करती हैं.

वहीं स्थानीय विधायक भी हर साल मेले में आते हैं. उनका कहना था ये मड़ई मेला सभी जाति एवं धर्म को एकरूपता प्रदान करता है. सभी लोग मिल-जुलकर मेले में आनंद लेते हैं. लोक नृत्य का आनंद लेते हैं और यही हमारी परंपरा और सभ्यता भी है. सांस्कृतिक विरासत को समेटे मोहद ग्राम का ये पारंपरिक मेला बताता है कि यही भारत की असली विरासत है.

Intro:प्राचीन परंपराओं से ओतप्रोत ग्वाल नृत्यों से सजा एवं मिठाई की मिठास से भरा यह अनोखा मड़ाई मेला अपने आप में ग्रामीणों का केंद्र बिंदु होता है जी हां नरसिंहपुर जिले के छोटे से गांव मोहद मैं दीपावली के बाद यह परंपरागत मेला भरता है और जिसमें लोक नृत्य से लेकर वह सभी साजों सामान ग्रामीणों को आसानी से उपलब्ध होता हैBody:प्राचीन परंपराओं से ओतप्रोत ग्वाल नृत्यों से सजा एवं मिठाई की मिठास से भरा यह अनोखा मड़ाई मेला अपने आप में ग्रामीणों का केंद्र बिंदु होता है जी हां नरसिंहपुर जिले के छोटे से गांव मोहद मैं दीपावली के बाद यह परंपरागत मेला भरता है और जिसमें लोक नृत्य से लेकर वह सभी साजों सामान ग्रामीणों को आसानी से उपलब्ध होता है जिसका भी साल भर इंतजार करते हैं मेले की परंपरा  यह भी है  यहां आने वाले  व्यापारियों  की मिठाई  के दाम  इसी गांव के बुजुर्ग  तय करते हैं  और उसी हिसाब से फिर बिक्री शुरू होती है आइए आपको भी दिखाते हैं इस मेले के विविध रंग


VO 1-  मुगल साम्राज्य के जमाने से भरने वाले लगभग ढाई सौ वर्ष पुराने मोहद के इस मडई मेले की पहचान अलग है ग्वाल परंपरा से लेकर स्थानीय मिठाई का यह मेला बहुत लोकप्रिय है हजारों की संख्या में लोग इस मेले का आनंद उठाने आते हैं और पूरी साल इंतजार भी करते हैं इस मेले की खास बात यह है कि यहां दुकान तो लगती हैं लेकिन दुकानों के सामान का रेट इस गांव के पंच ,मुखिया एवं उनके साथ ग्रामीण मिल बैठकर तय करते हैं और एक बार रेट तय होने के बाद फिर मेले में जमकर मिठाई पकवान की खरीदारी होती है इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किसी को नुकसान ना पहुंचे खास बात यह है कि इस दाम को फिक्स करने की परंपरा वर्षों पुरानी है और जिसके पीछे का मकसद यह था कि व्यापारी को भी नुकसान ना हो और गरीब को भी मीठा खाने को मिल सके इस मेले में दूसरी खास बात यह है की मेला शुरू होने के पहले माता चंडी की पूजन की जाती है जिसमें सभी लोग हिस्सा लेते हैं इसके साथ ही ऊची - ऊँची ढाल जो मोर पंख की बनी होती है उनको लेकर ग्वाल नृत्य करते हैं क्या खास क्या आम सभी गांव के लोग दूर-दूर से आकर इस मेले का आनंद उठाते हैंI मेले में महिलाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं और जमकर मेले में खरीददारी भी करती हैं


बाईट- 01 प्रकाश राजपूत मेला संरक्षक

बाईट- 02 नरेंद्र विश्वकर्मा स्थानीय




वहीं स्थानीय विधायक भी हर वर्ष मेले में आते हैं उनका कहना था यह मड़ाई मेला सभी जाति एवं धर्म को एकरूपता प्रदान करता है सभी लोग मिलजुलकर मेले में आनंद उठाते हैं लोक नृत्य का आनंद लेते हैं और यही हमारी परंपरा और सभ्यता भी हैI सांस्कृतिक विरासत को समेटे मोहद ग्राम का यह पारंपरिक मेला बताता है यही हमारी विरासत है 


बाईट--03 जालम सिंह पटेल विधायक


ग्रामीण अंचल में भरने वाले इस मड़ाई मेले में लोग जहां जमकर खरीदारी करते हैं वही इसका आनंद भी लेते हैं जहां अहीर नृत्य  मन को मोह लेते हैं  वही  रात में रास रंग के कार्यक्रम भी  मलाई मेले की परंपरा में  चार चांद लगा देते हैं महिलाएं बताती हूं यहां मिलने वाला सामान  सस्ता होता है जिसके चलते महिलाएं  भी अपने श्रंगार का सामान लेती हैं तो पुरुष अपनी किसानी से संबंधित सामान की खरीदारी करते हैं वही इस मेले की खासियत यह है की मिठाई की दुकान लगाने वाले दुकानदारो जी सेकड़ो वर्षी से यहा आते है।  पर इनकी मिठाई का दाम यहां के  बुजुर्ग ग्रामीण ही तय करते हैं और उसी हिसाब से फिर बिक्री शुरू होती है हालांकि उसके पीछे का मकसद यह होता है कि हर गरीब को आसानी से मिठाई मिल सके मिठाई भी स्थानीय स्तर की होती हैं जो लोगों को खूब भाती हैं


Conclusion:वही इस मेले की खासियत यह है की मिठाई की दुकान लगाने वाले दुकानदारो जी सेकड़ो वर्षी से यहा आते है।  पर इनकी मिठाई का दाम यहां के  बुजुर्ग ग्रामीण ही तय करते हैं और उसी हिसाब से फिर बिक्री शुरू होती है हालांकि उसके पीछे का मकसद यह होता है कि हर गरीब को आसानी से मिठाई मिल सके मिठाई भी स्थानीय स्तर की होती हैं जो लोगों को खूब भाती हैं


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