नरसिंहपुर। प्राचीन परंपराओं से ओत-प्रोत, ग्वाल नृत्यों से सजा और मिठाई की मिठास से भरा अनोखा मड़ई मेला अपने आप में ग्रामीणों के आकर्षण का केंद्र बिंदु होता है. नरसिंहपुर जिले के छोटे से गांव मोहद में दीवाली के बाद ये परंपरागत मेला भरता है और इसमें लोक नृत्य से लेकर सभी सामान ग्रामीणों को आसानी से उपलब्ध होता है. मड़ई के मेले में आने वाले व्यापारियों की मिठाई के दाम इसी गांव के बुजुर्ग तय करते हैं और उसी हिसाब से फिर बिक्री शुरू होती है.
बताया जाता है कि मौहद का मड़ई मेला मुगल साम्राज्य के जमाने से लगता आ रहा है. लगभग ढाई सौ साल पुराने मोहद के इस मड़ई मेले की पहचान अलग है. ग्वाल परंपरा से लेकर स्थानीय मिठाई का ये मेला बहुत लोकप्रिय है. हजारों की संख्या में लोग इस मेले का आनंद उठाने आते हैं और पूरे साल इस मड़ई का इंतजार भी करते हैं.
मेले में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किसी को नुकसान ना पहुंचे. मेले में एक और खास बात ये है की मड़ई मेला शुरू होने के पहले माता चंडी की पूजा की जाती है, जिसमें सभी लोग हिस्सा लेते हैं. इसके साथ ही ऊंची-ऊंची ढाल जो मोर पंख की बनी होती हैं, उनको लेकर ग्वाल नृत्य करते हैं. मेले में महिलाएं भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं और जमकर मेले में खरीददारी भी करती हैं.
वहीं स्थानीय विधायक भी हर साल मेले में आते हैं. उनका कहना था ये मड़ई मेला सभी जाति एवं धर्म को एकरूपता प्रदान करता है. सभी लोग मिल-जुलकर मेले में आनंद लेते हैं. लोक नृत्य का आनंद लेते हैं और यही हमारी परंपरा और सभ्यता भी है. सांस्कृतिक विरासत को समेटे मोहद ग्राम का ये पारंपरिक मेला बताता है कि यही भारत की असली विरासत है.