मुरैना । जिले से 70 किलोमीटर दूर स्थित पुरातन काल का ईश्वरा महादेव मंदिर स्थित है. बियाबान जंगल में स्थित ईश्वर महादेव स्वयंभू है, मतलब कि ये शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ है. मान्यता के अनुसार रामायण काल में लंकापति रावण के भाई विभीषण ने यहां इस मंदिर में आकर तपस्या की थी. इसी के साथ ही इस शिवलिंग पर 12 महीनों जलधारा से अभिषेक होता है, जबकि आसपास पानी के किसी भी तरह का स्त्रोत मौजूद नहीं है. यहां तक कि उस इलाके में पानी की विकराल समस्या रहती है पर मंदिर में स्थित शिवलिंग पर निरंतर जल धारा बहती है.
महाशिवरात्री के दिन लगता है मेला
ऐसे ही कई और चमत्कारों से भरा ईश्वर महादेव मंदिर लोगों के बीच आस्था के केंद्र बना हुआ है. जहां पर दूर-दूर से लोग दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. महाशिवरात्रि के दिन तो इस जंगल में भी मेले जैसा माहौल हो जाता है.
पहाड़ में बनी गुफा में स्थापित है शिवलिंग
पुरातन काल से स्थित ईश्वरा महादेव मंदिर पहुंचने के लिए पहले पहाड़गढ़ और फिर वहां से जंगल के रास्ते होते हुए 12 किलोमीटर दूर ईश्वर महादेव मंदिर पहुंचा जा सकता है. मंदिर में नीचे उतरते ही पहाड़ में बनी गुफा में ही शिवलिंग स्थापित है, जिस पर अविरल जल की धारा प्रभावित होती है. यहां पर साधु भी रहते हैं लेकिन रात को वो भी मंदिर के ऊपर पहाड़ी पर बने हनुमान मंदिर में रुकते हैं. बताया जाता है कि यहां रात को हर रोज शिवलिंग की पूजा होती है. लेकिन रात को कौन शिवलिंग की पूजा अर्चना कर बेलपत्र चढ़ाता है ये आज तक कोई पता नहीं कर पाया है.
रात में रहस्यमयी है शिवलिंग की पूजा
ईश्वरा महादेव मंदिर पर बिना किसी जल के स्रोत के किस तरह से अविरल पानी की धारा बह रही है ये भी अपने आप में चमत्कार है। इसी के साथ मंदिर के पास स्थित घाटी में 1 मुखी बेलपत्र से लेकर 3,5,7,9, 11 और 21 मुखी तक के बेलपत्र पाए जाते हैं.
मंदिर तक जाने के लिए नहीं है सड़क
शिवरात्रि के दिन ईश्वरा महादेव मंदिर के दर्शनों के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं. प्राचीन मंदिर होने के बाद भी प्रशासन और सरकार ने इसकी तरफ कभी ध्यान नहीं दिया. मंदिर से पहले ही 2 किलोमीटर से अधिक लंबे रास्ते पर सड़क ही नहीं है. जिसके चलते मंदिर जाने वालों श्रद्धालुओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.