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चंबल के डाकू ही नहीं मिठास भी है प्रसिद्ध, देश भर में मशहूर है मुरैना की गजक का स्वाद

मुरैना की लजीज गजक का नाम सुनते ही स्वाद के शौकीनों के मुंह में पानी आ जाता है क्योंकि जो भी इस गजक को एक बार खा लेता है, इसका स्वाद उसके दिलो-दिमाग पर छा जाता है.

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Published : Mar 21, 2019, 12:05 PM IST

मुरैना की गजक

मुरैना। चंबल संभाग के मुरैना जिले का नाम सुनते ही लोगों के जहन में वैसे तो बीहड़ और बागियों की तस्वीर उभर आती है, लेकिन इस सब के बावजूद मुरैना अपनी एक नायाब और बेहद खास चीज के लिये भी मशहूर है. जी हां हम बात कर रहे हैं मुरैना की बेहद लजीज गजक की, जिसका नाम सुनते ही स्वाद के शौकीनों के मुंह में पानी आ जाता है. क्योंकि जो भी इस गजक को एक बार खा लेता है, इसका स्वाद उसके दिलो-दिमाग पर छा जाता है.

इस गजक का इतिहास लगभग 80 साल पुराना है, जिसे सर्दियों का टॉनिक भी कहा जाता है. क्योंकि गजक स्वाद के साथ-साथ औषधि का काम भी करती है. जानकारों की माने तो यह सर्दियों में शरीर को गर्म रखती है. जिसके चलते सर्दियों में गजक की डिंमाड सबसे ज्यादा रहती है.

लेकिन, खास बात यह है कि गजक खाने में जितनी स्वादिष्ट होती है. इसको बनाने में उससे कही ज्यादा मेहनत लगती है. जमीन पर बैठकर हथौड़े से तिल को कूटते ये हलवाई गजक बना रहे हैं. जिन्हें देखकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि गजक की मिठास काफी मेहनत के बाद हमे मिलती है. खास बात यह कि आखिर गजक मुरैना के लिये ही क्यों प्रसिद्ध है. गजक बनाने वाले इसके लिये चंबल नदी के पानी की खासियत बताते है, कहा जाता है कि चंबल के पानी में कुछ खास तत्व पाए जाते हैं, जिससे गजक स्वादिष्ट बनती है.

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कभी एमपी-यूपी तक ही फेमस मानी जाने वाली गजक आज पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ रही है. भारत के अलावा अन्य देशों में भी गजक की अच्छी खासी डिंमाड है. मुरैना में लगभग छोटे-बड़े 200 से अधिक लोग है जो गजक बनाने का काम करते है और औसतन100 किलो गजक हर व्यापारी एक दिन में तैयार करता है, जो देशभर में स्वाद के शौकीनों के लिए पहुंचती है.

अपनी खासियत से चंबल की यह गजक धीरे-धीरे दुनियाभर के लोगों के मुंह में मिठास घोल रही है. हालांकि गजक का कारोबार सिर्फ सर्दियों के दिनों में ही होता है, लेकिन इस शानदार स्वाद का इंतजार लोग साल भर करते हैं. मुरैना की गजक पूरे देश में केवल मुरैना की नहीं बल्कि चंबल और मध्यप्रदेश की भी एक बड़ी पहचान बनकर उभरी है.

मुरैना। चंबल संभाग के मुरैना जिले का नाम सुनते ही लोगों के जहन में वैसे तो बीहड़ और बागियों की तस्वीर उभर आती है, लेकिन इस सब के बावजूद मुरैना अपनी एक नायाब और बेहद खास चीज के लिये भी मशहूर है. जी हां हम बात कर रहे हैं मुरैना की बेहद लजीज गजक की, जिसका नाम सुनते ही स्वाद के शौकीनों के मुंह में पानी आ जाता है. क्योंकि जो भी इस गजक को एक बार खा लेता है, इसका स्वाद उसके दिलो-दिमाग पर छा जाता है.

इस गजक का इतिहास लगभग 80 साल पुराना है, जिसे सर्दियों का टॉनिक भी कहा जाता है. क्योंकि गजक स्वाद के साथ-साथ औषधि का काम भी करती है. जानकारों की माने तो यह सर्दियों में शरीर को गर्म रखती है. जिसके चलते सर्दियों में गजक की डिंमाड सबसे ज्यादा रहती है.

लेकिन, खास बात यह है कि गजक खाने में जितनी स्वादिष्ट होती है. इसको बनाने में उससे कही ज्यादा मेहनत लगती है. जमीन पर बैठकर हथौड़े से तिल को कूटते ये हलवाई गजक बना रहे हैं. जिन्हें देखकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि गजक की मिठास काफी मेहनत के बाद हमे मिलती है. खास बात यह कि आखिर गजक मुरैना के लिये ही क्यों प्रसिद्ध है. गजक बनाने वाले इसके लिये चंबल नदी के पानी की खासियत बताते है, कहा जाता है कि चंबल के पानी में कुछ खास तत्व पाए जाते हैं, जिससे गजक स्वादिष्ट बनती है.

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कभी एमपी-यूपी तक ही फेमस मानी जाने वाली गजक आज पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ रही है. भारत के अलावा अन्य देशों में भी गजक की अच्छी खासी डिंमाड है. मुरैना में लगभग छोटे-बड़े 200 से अधिक लोग है जो गजक बनाने का काम करते है और औसतन100 किलो गजक हर व्यापारी एक दिन में तैयार करता है, जो देशभर में स्वाद के शौकीनों के लिए पहुंचती है.

अपनी खासियत से चंबल की यह गजक धीरे-धीरे दुनियाभर के लोगों के मुंह में मिठास घोल रही है. हालांकि गजक का कारोबार सिर्फ सर्दियों के दिनों में ही होता है, लेकिन इस शानदार स्वाद का इंतजार लोग साल भर करते हैं. मुरैना की गजक पूरे देश में केवल मुरैना की नहीं बल्कि चंबल और मध्यप्रदेश की भी एक बड़ी पहचान बनकर उभरी है.

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चंबल के डाकू ही नहीं मिठास भी है प्रसिद्ध, देश भर में मशहूर है मुरैना की गजक का स्वाद





मुरैना। चंबल संभाग के मुरैना जिले का नाम सुनते ही लोगों के जहन में वैसे तो बीहड़ और बागियों की तस्वीर उभर आती है, लेकिन इस सब के बावजूद मुरैना अपनी एक नायाब और बेहद खास चीज के लिये भी मशहूर है. जी हां हम बात कर रहे हैं मुरैना की बेहद लजीज गजक की, जिसका नाम सुनते ही स्वाद के शौकीनों के मुंह में पानी आ जाता है. क्योंकि जो भी इस गजक को एक बार खा लेता है, इसका स्वाद उसके दिलो-दिमाग पर छा जाता है.



इस गजक का इतिहास लगभग 80 साल पुराना है, जिसे सर्दियों का टॉनिक भी कहा जाता है. क्योंकि गजक स्वाद के साथ-साथ औषधि का काम भी करती है. जानकारों की माने तो यह सर्दियों में शरीर को गर्म रखती है. जिसके चलते सर्दियों में गजक की डिंमाड सबसे ज्यादा रहती है.



लेकिन, खास बात यह है कि गजक खाने में जितनी स्वादिष्ट होती है. इसको बनाने में उससे कही ज्यादा मेहनत लगती है. जमीन पर बैठकर हथौड़े से तिल को कूटते ये हलवाई गजक बना रहे हैं. जिन्हें देखकर इतना तो कहा ही जा सकता है कि गजक की मिठास काफी मेहनत के बाद हमे मिलती है. खास बात यह कि आखिर गजक मुरैना के लिये ही क्यों प्रसिद्ध है. गजक बनाने वाले इसके लिये चंबल नदी के पानी की खासियत बताते है, कहा जाता है कि चंबल के पानी में कुछ खास तत्व पाए जाते हैं, जिससे गजक स्वादिष्ट बनती है.  



कभी एमपी-यूपी तक ही फेमस मानी जाने वाली गजक आज पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ रही है. भारत के अलावा अन्य देशों में भी गजक की अच्छी खासी डिंमाड है. मुरैना में लगभग छोटे-बड़े 200 से अधिक लोग है जो गजक बनाने का काम करते है और औसतन100 किलो गजक हर व्यापारी एक दिन में तैयार करता है, जो देशभर में स्वाद के शौकीनों के लिए पहुंचती है.  



अपनी खासियत से चंबल की यह गजक धीरे-धीरे दुनियाभर के लोगों के मुंह में मिठास घोल रही है. हालांकि गजक का कारोबार सिर्फ सर्दियों के दिनों में ही होता है, लेकिन इस शानदार स्वाद का इंतजार लोग साल भर करते हैं. मुरैना की गजक पूरे देश में केवल मुरैना की नहीं बल्कि चंबल और मध्यप्रदेश की भी एक बड़ी पहचान बनकर उभरी है.

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मुरैना की लजीज गजक का नाम सुनते ही स्वाद के शौकीनों के मुंह में पानी आ जाता है. क्योंकि जो भी इस गजक को एक बार खा लेता है, इसका स्वाद उसके दिलो-दिमाग पर छा जाता है.




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