मुरैना। कहते हैं जहां चाह होती है वहां राह होती है. रास्ते कितने भी कठिन हो, अगर हौसला और जुनून हो तो मंजिल पाने में कोई नहीं रोक सकता. मुरैना जिले की आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र के जलालपुर गांव की रहने वाली रेखा त्यागी ने ऐसी कामयाबी की इबारत लिखी है, जो बेहद खास और दूसरों के लिए मिसाल है.
रेखा के पति की 17 साल पहले मौत हो गई थी. पति की मौत के बाद रेखा पर 3 बच्चों के साथ-साथ परिवार की पूरी जिम्मेदारी आ गई. रेखा के पास आय का साधन सिर्फ खेतीबाड़ी थी. उससे भी आय सीमित होती थी, लेकिन रेखा हार नहीं मानी उसने अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए खुद खेती करने का फैसला किया. कृषि विभाग की मदद से रेखा ने उन्नत खेती के नए-नए तरीके बताए, जिससे खेती उसके लिए लाभ का धंधा साबित हुआ.
कृषि विभाग के अधिकारी रेह गए आश्चर्यचकित
साल 2015-16 में खरीफ की फसल में रेखा त्यागी ने वैज्ञानिक तरीके से बाजरे की फसल लगाई, जिसमें उसे रिकॉर्ड उत्पादन प्राप्त हुआ. सामान्य किसानों को जहां 5 से 6 क्विंटल प्रति बीघा उत्पादन प्राप्त होता है, वहीं रेखा त्यागी को 10 से 12 क्विंटल प्रति बीघा बाजरे का उत्पादन मिला. जिसे देखकर कृषि विभाग के अधिकारी रेखा त्यागी की मेहनत से आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने रेखा के खेत में बाजरे के उत्पादन को एक मॉडल के तौर पर जिले और संभाग के किसानों के लिए रखा.
कृषि कर्मण पुरस्कार से किया गया रेखा को सम्मानित
कृषि विभाग ने रेखा त्यागी का नाम सफलतम किसानों की सूची में दर्ज कर शासन को भेजा. 2016 में भारत सरकार ने रेखा त्यागी को कृषि कर्मण पुरस्कार से नवाजा, जिसके तहत प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री ने दिल्ली में एक समारोह के दौरान रेखा त्यागी को दो लाख रुपए और प्रशस्ति पत्र भेंट कर सम्मानित किया. आज रेखा त्यागी का जीवन खुशियों से भरा है, रेखा ने अपनी दोनों बेटियों की शादी बड़ी धूमधाम से की. वही उनका बेटा ग्वालियर में रहकर उच्च शिक्षा हासिल कर रहा है.