मुरैना। मोरों के लिए पहचाना जाने वाला मुरैना अब देश-विदेश में गजक के लिए जाना जाता है. चंबल की गजक दुनियाभर में लोगों के मुंह में मिठास घोल रही है. मुरैना की गजक की सप्लाई देश से लेकर विदेशों तक है. यही वजह है कि महज 4 महीनों के लिए ही सही पर सर्दियों के सीजन में गजक का करोड़ों का कारोबार होता है. मुरैना में बनने वाली गजक का इतिहास लगभग 80 साल पुराना है. आज गजक का व्यापर बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. मुरैना में लगभग छोटे-बड़े 200 से ज्यादा लोग हैं, जो गजक बनाने का काम करते हैं और औसतन 100 किलो गजक हर व्यापारी एक दिन में तैयार कर बेच लेता है. मुरैना की गजक न सिर्फ अंचल में बल्कि पूरे देश भर से तैयार होकर जाती है. जानकारों की मानें तो गजक सर्दियों में स्वाद के साथ-साथ औषधि का काम भी करती है. मुरैना इलाके में अधिक सर्दी के समय ये शरीर को गर्म भी रखती है.
वैसे तो गजक कई शहरों में बनती है, लेकिन मुरैना के पानी की जो तासीर है, उसकी वजह से यहां के गजक का स्वाद ही अलग होता है. कई शहरों में मुरैना के कारीगरों को ले जाकर गजक का काम करवाया जाता है, लेकिन जो स्वाद यहां बनने वाली गडक का आता है, वो कहीं भी बनाई गई गजक में नहीं आता. गजक के समोसे, गजक की पट्टी, शुगर फ्री गजक भी बाजार में मिलने लगी है, जिससे शुगर की बीमारी वाले भी इसका मजा ले सकें.
कारीगर की मानें तो हर रोज 1 से 2 क्विंटल गजक की खपत एक बड़ा दुकानदार कर लेता है, वहीं छोटे-छोटे दुकानकारों की अलग खपत होती है. मुरैना से कई बडे़ शहरों में ट्रेनों और बसों के जरिए लगभग हर रोज 10 क्विंटल गजक की सप्लाई भी होती है. इलाके के लोग जो बाहर देश के अन्य जगहों पर रह रहे हैं या विदेशों में भी हैं, वहां के लिए भी अलग से विशेष पैकिंग कर गजक की सप्लाई हेाती है.