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दुनियाभर के लोगों के मुंह में मिठास घोल रही मुरैना की गजक, देश-विदेश में है भारी डिमांड - मुरैना

मुरैना में बनने वाली गजक का इतिहास लगभग 80 साल पुराना है. आज गजक का व्यापर बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. मुरैना में लगभग छोटे-बड़े 200 से ज्यादा लोग हैं, जो गजक बनाने का काम करते हैं और औसतन 100 किलो गजक हर व्यापारी एक दिन में तैयार कर बेच लेता है.

मुरैना की गजक
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Published : Feb 11, 2019, 1:59 PM IST

मुरैना। मोरों के लिए पहचाना जाने वाला मुरैना अब देश-विदेश में गजक के लिए जाना जाता है. चंबल की गजक दुनियाभर में लोगों के मुंह में मिठास घोल रही है. मुरैना की गजक की सप्लाई देश से लेकर विदेशों तक है. यही वजह है कि महज 4 महीनों के लिए ही सही पर सर्दियों के सीजन में गजक का करोड़ों का कारोबार होता है. मुरैना में बनने वाली गजक का इतिहास लगभग 80 साल पुराना है. आज गजक का व्यापर बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. मुरैना में लगभग छोटे-बड़े 200 से ज्यादा लोग हैं, जो गजक बनाने का काम करते हैं और औसतन 100 किलो गजक हर व्यापारी एक दिन में तैयार कर बेच लेता है. मुरैना की गजक न सिर्फ अंचल में बल्कि पूरे देश भर से तैयार होकर जाती है. जानकारों की मानें तो गजक सर्दियों में स्वाद के साथ-साथ औषधि का काम भी करती है. मुरैना इलाके में अधिक सर्दी के समय ये शरीर को गर्म भी रखती है.

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मुरैना की गजक

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वैसे तो गजक कई शहरों में बनती है, लेकिन मुरैना के पानी की जो तासीर है, उसकी वजह से यहां के गजक का स्वाद ही अलग होता है. कई शहरों में मुरैना के कारीगरों को ले जाकर गजक का काम करवाया जाता है, लेकिन जो स्वाद यहां बनने वाली गडक का आता है, वो कहीं भी बनाई गई गजक में नहीं आता. गजक के समोसे, गजक की पट्टी, शुगर फ्री गजक भी बाजार में मिलने लगी है, जिससे शुगर की बीमारी वाले भी इसका मजा ले सकें.

कारीगर की मानें तो हर रोज 1 से 2 क्विंटल गजक की खपत एक बड़ा दुकानदार कर लेता है, वहीं छोटे-छोटे दुकानकारों की अलग खपत होती है. मुरैना से कई बडे़ शहरों में ट्रेनों और बसों के जरिए लगभग हर रोज 10 क्विंटल गजक की सप्लाई भी होती है. इलाके के लोग जो बाहर देश के अन्य जगहों पर रह रहे हैं या विदेशों में भी हैं, वहां के लिए भी अलग से विशेष पैकिंग कर गजक की सप्लाई हेाती है.

मुरैना। मोरों के लिए पहचाना जाने वाला मुरैना अब देश-विदेश में गजक के लिए जाना जाता है. चंबल की गजक दुनियाभर में लोगों के मुंह में मिठास घोल रही है. मुरैना की गजक की सप्लाई देश से लेकर विदेशों तक है. यही वजह है कि महज 4 महीनों के लिए ही सही पर सर्दियों के सीजन में गजक का करोड़ों का कारोबार होता है. मुरैना में बनने वाली गजक का इतिहास लगभग 80 साल पुराना है. आज गजक का व्यापर बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. मुरैना में लगभग छोटे-बड़े 200 से ज्यादा लोग हैं, जो गजक बनाने का काम करते हैं और औसतन 100 किलो गजक हर व्यापारी एक दिन में तैयार कर बेच लेता है. मुरैना की गजक न सिर्फ अंचल में बल्कि पूरे देश भर से तैयार होकर जाती है. जानकारों की मानें तो गजक सर्दियों में स्वाद के साथ-साथ औषधि का काम भी करती है. मुरैना इलाके में अधिक सर्दी के समय ये शरीर को गर्म भी रखती है.

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मुरैना की गजक

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वैसे तो गजक कई शहरों में बनती है, लेकिन मुरैना के पानी की जो तासीर है, उसकी वजह से यहां के गजक का स्वाद ही अलग होता है. कई शहरों में मुरैना के कारीगरों को ले जाकर गजक का काम करवाया जाता है, लेकिन जो स्वाद यहां बनने वाली गडक का आता है, वो कहीं भी बनाई गई गजक में नहीं आता. गजक के समोसे, गजक की पट्टी, शुगर फ्री गजक भी बाजार में मिलने लगी है, जिससे शुगर की बीमारी वाले भी इसका मजा ले सकें.

कारीगर की मानें तो हर रोज 1 से 2 क्विंटल गजक की खपत एक बड़ा दुकानदार कर लेता है, वहीं छोटे-छोटे दुकानकारों की अलग खपत होती है. मुरैना से कई बडे़ शहरों में ट्रेनों और बसों के जरिए लगभग हर रोज 10 क्विंटल गजक की सप्लाई भी होती है. इलाके के लोग जो बाहर देश के अन्य जगहों पर रह रहे हैं या विदेशों में भी हैं, वहां के लिए भी अलग से विशेष पैकिंग कर गजक की सप्लाई हेाती है.
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(स्पेशल स्टोरी) 
 
एंकर - मुरैना को पुराने समय में मयूर वन के नाम से जाना जाता था,,मोरो से पहचाना जाने वाला मुरैना अब देश विदेश में गजक के लिए जाना जाता है। चम्बल का नाम आते ही लोगो के जहन में सिर्फ बाघी और डाकुओ की छवि सामने आती है लोग चम्बल अंचल को डाकुओं के नाम से भी जानते है लेकिन अब लोग डाकू और बाघी नही मुरैना की गजब के नाम से जानते है । चम्बल की गजब दुनियाभर में लोगो के मुँह में मिठास घोल रही है जी हां मुरैना की गजक की सप्लाई देश से लेकर विदेशों तक है। जो भी इस गजक को एक बार खा लेता है वो इसके स्वाद का दीवाना हो जाता है। यही बजह है कि महज 4 महीनों के लिए ही सही पर सर्दियों के सीजन में गजक का करोडो का कारोबार होता है। आखिर क्या है इसके पीछे का राज ये जानते है इस खास रिपोर्ट में।

वीओ 1- मुरैना में बनने वाली गजक का इतिहास लगभग 80 साल पुराना है। आज गजक का व्यापर बड़े पैमाने पर किया जा रहा है ,मुरैना में लगभग छोटे बड़े 200 से अधिक लोग है जो गजक बनाने का काम करते है और औसतन 100 किलो गजक हर व्यापारी एक दिन में तैयार कर बेच लेता है। मुरैना की गजक न अंचल में बल्कि पूरे देश भर यहाँ से तैयार होकर जाती है और तो कई लोग ऐसे भी जो विदेश जाकर बस गए हैं....सर्दियों के समय में गजक बनने का काम शुरू होता है,तिल से बनने वाली गजक में शक्कर और गुड की गजक बनाई जाती है जिसमें से सबसे अधिक डिमांड गुड की गजक की रहती है। जानकारों की माने तो गजक सर्दियों में स्वाद के साथ साथ औषिधी का काम भी करती है। मुरैना इलाके में अधिक सर्दी के समय ये शरीर को गर्म भी रखती है। और स्वाद तो ऐसा कि हर किसी को मुरैना की ही गजक चाहिए।

बाइट 1 - राजेश शर्मा , ग्राहक

वीओ 2- वैसे तो गजक कई शहरों में बनती है पर मुरैना के पानी की जो तासीर है उसकी बजह से यहां की गजक का स्वाद ही अलग होता है।कई शहरों में मुरैना के कारीगरों को ले जाकर गजक का काम करवाया जाता है पर जो स्वाद यहां के पानी की बजह से आता है वो कही भी बनाई गई गजक में नही आता ,पहले गजक सादा बनाई जाती थी लेकिन अब गजक कही प्रकार की बनाई जाती हैं। गजक की अलग अलग क्वालिटी भी अब बनने लगी है। गजक क समोसे,गजक की पट्टी ,शुगर फ्री गजक भी बाजार में मिलने लगी है। जिससे कि शुगर की बीमारी वाले भी इसका मजा ले सके।

बाइट 2  - पिंकी पचौरी , दुकानदार 

वीओ 3 - कारीगर की माने तो हर रोज 1 से 2 क्विंटल गजक की खपत एक बडा दुकानदार कर लेता है वहीं छोटे छोटे दुकानकारों की अलग खपत होती है। मुरैना से कई बडै शहरों में ट्रेनों और बसों के जरिए लगभग हर रोज 10 क्विंटल गजक की सप्लाई भी होती है। इलाके के लोग जो बाहर देश के अन्य जगहो पर रह रहे है या विदेशों में भी है वहां के लिए भी अलग से विशेष पैकिंग कर गजक की सप्लाई हेाती हैं

 बाइट - 3 राजू ,कारीगर 

NOTE--- सभी फाइल GAJAK के नाम से FTP पर भेज दी है
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