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डर के साये में भय मुक्ति का वादा! जनता को निडर रहने की सीख दे रहे नेताजी

उपचुनाव के लिए तीन नवंबर को वोट डाले जाने हैं. इससे पहले भी नेताओं ने दमखम से चुनाव प्रचार भी किया है. लेकिन दूसरी तरफ राजनेता खुद भी भय के साए में जी रहे हैं और उन्हें हमेशा खुद की और अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता सताती रहती है. जिसके कारण नेता एक नहीं, बल्कि दो से तीन लाइसेंसी हथियार अपने पास रखते हैं. जो नेता चुनाव प्रचार में अक्सर जनता को भय मुक्त वातावरण देने का वादा करते नजर आ जाते हैं. दरअसल, उन्हें खुद इतना भय रहता है कि उन्हें संभावित को टालने के लिए गनमैन और खुद के लाइसेंसी हथियार रखने पड़ते हैं.

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Published : Nov 3, 2020, 3:33 PM IST

मुरैना। देश के चुनाव में हथियारों के उपयोग की बात कोई नई है. अमूमन सभी दलों के नेता अपने पास लाइसेंसी हथियार रखते हैं. राजनीतिक मनोवैज्ञानिक बढ़त और रुतबा कामय रखने के लिए भी नेता लाइसेंसी हथियार अपने पास रखते हैं. इसके साथ ही दूसरी तरफ राजनेता खुद भी भय के साए में जी रहे हैं और उन्हें हमेशा खुद की और अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता सताती रहती है. जिसके कारण नेता एक नहीं, बल्कि दो से तीन लाइसेंसी हथियार अपने पास रखते हैं. जो नेता चुनाव प्रचार में अक्सर जनता को भय मुक्त वातावरण देने का वादा करते नजर आ जाते हैं. दरअसल, उन्हें खुद इतना भय रहता है कि उन्हें संभावित को टालने के लिए गनमैन और खुद के लाइसेंसी हथियार रखने पड़ते हैं. एक रिपोर्टस के मुताबिक राजनेता अकेले ही हथियार नहीं रखते बल्कि उनकी पत्नी और बच्चों के अलावा अन्य परिजनों के पास भी लाइसेंस हथियार रहते हैं जो इस बात को दर्शाते हैं कि कहीं ना कहीं इन राजनेताओं को अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता सताती रहती है. इसलिए वह खुद सुरक्षा के इंतजाम आप करने में जुटे रहते हैं.

Arms seized from miscreants
बदमाशों से जब्त हथियार

हथियारों से लैस कांग्रेस- बीजेपी प्रत्याशी

मध्यप्रदेश उप चुनाव में प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, जिसमें मुरैना जिले की पांच विधानसभा सीटों से अलग-अलग दलों के उम्मीदवार चुनावी मैदान उतरे हैं. वह सभी सशस्त्र हथियार रखते हैं. जौरा विधानसभा क्षेत्र चार में कांग्रेस उम्मीदवार पंकज उपाध्याय के पास 315 बोर एक राइफल है तो भाजपा उम्मीदवार सूबेदार सिंह रजोधा के पास तीन लायसेंसी हथियार उनके खुद के नाम हैं, जिसमें बीजेपी प्रत्याशी के पास एक 32 एमएम पिस्टल, 12 बोर राइफल और 315 बोर राइफल है.

जनता को निडर रहने की सीख दे रहे नेताजी

सुमावली से बीजेपी के प्रत्याशी एदल सिंह कंसाना के पास 200 शस्त्र लाइसेंस हैं. एक 32 एमएम पिस्टल और एक 315 बोर राइफल है तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवार अजब सिंह कुशवाह के पास खुद ता तो कोई लाइसेंस नहीं हैं. लेकिन परिजनों के पास लाइसेंसी हथियार जरुर हैं. इसके साथ ही मुरैना विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी रघुराज सिंह कंसाना के पास 32 एमएम पिस्टल है तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवार राकेश मावई के पास 315 बोर राइफल और 32 एमएम पिस्टल खुद के लाइसेंसी हथियार नाम है.

दिमनी विधानसभा से बीजेपी के उम्मीदवार गिर्राज दंडौतिया के पास 315 बोर राइफल तो वहीं कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार रविंद्र सिंह तोमर के पास 32 एमएम लाइसेंसी पिस्टल है. मुरैना जिले के अंबाह विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार सत्यप्रकाश सकवार के पास दो लाइसेंसी हथियार हैं, जिसमें 32 एमएम पिस्टल और 315 बोर राइफल है.

रुतबे के लिए हथियारों का सहारा

निर्वाचन आयोग को दिए गए घोषणा पत्र की डिटेल में जिस तरह उम्मीदवारों ने अपने और अपने परिजनों के शस्त्र लाइसेंस का ब्यौरा भरा है. उसे यह तो स्पष्ट है कि चाहे राजनीतिक दल का उम्मीदवार कितना भी भला और शांत स्वभाव का व्यक्ति हो क्यों ना बनने की कोशिश करें लेकिन कहीं ना कहीं प्रत्याशी को अपनी और अपने परिजनों की सुरक्षा की चिंता जरूर सता रही है. हालांकि इसका दूसरा कारण यह भी है कि चंबल अंचल में लोग राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वाले अपना रुतबा और दबदबा कायम करना चाहते हैं, जिसमें लाइसेंस हथियार रुतबा और स्टेटस बनाने में सहयोगी होते हैं.

चंबल में रही है हथियार रखने की परंपरा

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शर्मा ने कहा कि चंबल क्षेत्र में हथियार रखने की परंपरा काफी पुरानी है. पुराने समय में भी गरीब से गरीब किसान वो भी कोशिश करते हैं कि उसके पास लाइसेंसी हथियार हो. चंबल क्षेत्र में हथियारों रखने वाले लोग हथियार को स्मवॉल और स्टेटस मानते हैं. इस क्षेत्र के राजनेता हथियारों का राजनैतिक स्टेटस के रुप में प्रयोग करते हैं.

रसूक के दम पर बनते हैं हथियार

वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शर्मा के मुताबिक लाइसेंसी हथियार बनने की एक जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें बंदूक का लाइसेंसी जिला स्तर पर बनता है जबकि रिवॉल्वर और पिस्टल का लाइसेंसी मध्यप्रदेश शासन से बनता है. इन सब लाइसेंसी हथियारों के लिए एक लंबा अप्रोच की जरुरत होती है. इसलिए राजनेता अपने रसूक के दम पर एक एक ही बल्कि दो दो लाइसेंसी हथियार बनवा लेते हैं. इसलिए यहां पर हथियारों का प्रचलन बढ़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि जहां तक भय मुक्त होने का सवाल है. जो अपराध मुरैना और चंबल क्षेत्र में घटित हो रहे हैं, उनमें अधिकांश गैर लाइसेंसी हथियारों की भूमिका ज्यादा रही है.

धीरे-धीरे डकैतों से मुक्त होते चंबल अंचल में लोगों को सुरक्षा के लिए तो नहीं लेकिन अपना समाज में एक रुतबा और दबदबा बनाने के लिए लाइसेंसी शस्त्र सहायक होने लगे हैं. आज भी यह ट्रेंड खासतौर पर राजनीतिक क्षेत्र में चलता है. इसके लिए नेताओं के पास दो से चार शस्त्र लाइसेंस लेकर उनके आगे पीछे चले हैं, जिससे लोगों में उनकी छवि दमदार और वजनदार नेता के रूप में बने.

मुरैना। देश के चुनाव में हथियारों के उपयोग की बात कोई नई है. अमूमन सभी दलों के नेता अपने पास लाइसेंसी हथियार रखते हैं. राजनीतिक मनोवैज्ञानिक बढ़त और रुतबा कामय रखने के लिए भी नेता लाइसेंसी हथियार अपने पास रखते हैं. इसके साथ ही दूसरी तरफ राजनेता खुद भी भय के साए में जी रहे हैं और उन्हें हमेशा खुद की और अपने परिवार की सुरक्षा की चिंता सताती रहती है. जिसके कारण नेता एक नहीं, बल्कि दो से तीन लाइसेंसी हथियार अपने पास रखते हैं. जो नेता चुनाव प्रचार में अक्सर जनता को भय मुक्त वातावरण देने का वादा करते नजर आ जाते हैं. दरअसल, उन्हें खुद इतना भय रहता है कि उन्हें संभावित को टालने के लिए गनमैन और खुद के लाइसेंसी हथियार रखने पड़ते हैं. एक रिपोर्टस के मुताबिक राजनेता अकेले ही हथियार नहीं रखते बल्कि उनकी पत्नी और बच्चों के अलावा अन्य परिजनों के पास भी लाइसेंस हथियार रहते हैं जो इस बात को दर्शाते हैं कि कहीं ना कहीं इन राजनेताओं को अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता सताती रहती है. इसलिए वह खुद सुरक्षा के इंतजाम आप करने में जुटे रहते हैं.

Arms seized from miscreants
बदमाशों से जब्त हथियार

हथियारों से लैस कांग्रेस- बीजेपी प्रत्याशी

मध्यप्रदेश उप चुनाव में प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, जिसमें मुरैना जिले की पांच विधानसभा सीटों से अलग-अलग दलों के उम्मीदवार चुनावी मैदान उतरे हैं. वह सभी सशस्त्र हथियार रखते हैं. जौरा विधानसभा क्षेत्र चार में कांग्रेस उम्मीदवार पंकज उपाध्याय के पास 315 बोर एक राइफल है तो भाजपा उम्मीदवार सूबेदार सिंह रजोधा के पास तीन लायसेंसी हथियार उनके खुद के नाम हैं, जिसमें बीजेपी प्रत्याशी के पास एक 32 एमएम पिस्टल, 12 बोर राइफल और 315 बोर राइफल है.

जनता को निडर रहने की सीख दे रहे नेताजी

सुमावली से बीजेपी के प्रत्याशी एदल सिंह कंसाना के पास 200 शस्त्र लाइसेंस हैं. एक 32 एमएम पिस्टल और एक 315 बोर राइफल है तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवार अजब सिंह कुशवाह के पास खुद ता तो कोई लाइसेंस नहीं हैं. लेकिन परिजनों के पास लाइसेंसी हथियार जरुर हैं. इसके साथ ही मुरैना विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी रघुराज सिंह कंसाना के पास 32 एमएम पिस्टल है तो वहीं कांग्रेस उम्मीदवार राकेश मावई के पास 315 बोर राइफल और 32 एमएम पिस्टल खुद के लाइसेंसी हथियार नाम है.

दिमनी विधानसभा से बीजेपी के उम्मीदवार गिर्राज दंडौतिया के पास 315 बोर राइफल तो वहीं कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार रविंद्र सिंह तोमर के पास 32 एमएम लाइसेंसी पिस्टल है. मुरैना जिले के अंबाह विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार सत्यप्रकाश सकवार के पास दो लाइसेंसी हथियार हैं, जिसमें 32 एमएम पिस्टल और 315 बोर राइफल है.

रुतबे के लिए हथियारों का सहारा

निर्वाचन आयोग को दिए गए घोषणा पत्र की डिटेल में जिस तरह उम्मीदवारों ने अपने और अपने परिजनों के शस्त्र लाइसेंस का ब्यौरा भरा है. उसे यह तो स्पष्ट है कि चाहे राजनीतिक दल का उम्मीदवार कितना भी भला और शांत स्वभाव का व्यक्ति हो क्यों ना बनने की कोशिश करें लेकिन कहीं ना कहीं प्रत्याशी को अपनी और अपने परिजनों की सुरक्षा की चिंता जरूर सता रही है. हालांकि इसका दूसरा कारण यह भी है कि चंबल अंचल में लोग राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वाले अपना रुतबा और दबदबा कायम करना चाहते हैं, जिसमें लाइसेंस हथियार रुतबा और स्टेटस बनाने में सहयोगी होते हैं.

चंबल में रही है हथियार रखने की परंपरा

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शर्मा ने कहा कि चंबल क्षेत्र में हथियार रखने की परंपरा काफी पुरानी है. पुराने समय में भी गरीब से गरीब किसान वो भी कोशिश करते हैं कि उसके पास लाइसेंसी हथियार हो. चंबल क्षेत्र में हथियारों रखने वाले लोग हथियार को स्मवॉल और स्टेटस मानते हैं. इस क्षेत्र के राजनेता हथियारों का राजनैतिक स्टेटस के रुप में प्रयोग करते हैं.

रसूक के दम पर बनते हैं हथियार

वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शर्मा के मुताबिक लाइसेंसी हथियार बनने की एक जटिल प्रक्रिया होती है, जिसमें बंदूक का लाइसेंसी जिला स्तर पर बनता है जबकि रिवॉल्वर और पिस्टल का लाइसेंसी मध्यप्रदेश शासन से बनता है. इन सब लाइसेंसी हथियारों के लिए एक लंबा अप्रोच की जरुरत होती है. इसलिए राजनेता अपने रसूक के दम पर एक एक ही बल्कि दो दो लाइसेंसी हथियार बनवा लेते हैं. इसलिए यहां पर हथियारों का प्रचलन बढ़ा हुआ है. उन्होंने कहा कि जहां तक भय मुक्त होने का सवाल है. जो अपराध मुरैना और चंबल क्षेत्र में घटित हो रहे हैं, उनमें अधिकांश गैर लाइसेंसी हथियारों की भूमिका ज्यादा रही है.

धीरे-धीरे डकैतों से मुक्त होते चंबल अंचल में लोगों को सुरक्षा के लिए तो नहीं लेकिन अपना समाज में एक रुतबा और दबदबा बनाने के लिए लाइसेंसी शस्त्र सहायक होने लगे हैं. आज भी यह ट्रेंड खासतौर पर राजनीतिक क्षेत्र में चलता है. इसके लिए नेताओं के पास दो से चार शस्त्र लाइसेंस लेकर उनके आगे पीछे चले हैं, जिससे लोगों में उनकी छवि दमदार और वजनदार नेता के रूप में बने.

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