मंदसौर। मैं तोता-मैं तोता, हरे रंग का हूं दिखता, खेत से अफीम खाकर मैं उड़ जाता. कहते हैं नशा हर गम को भुला देता है और ये राज शायद इन तोतों को अच्छी तरह पता चल गया है. इसलिए अपना गम भुलाने के लिए तोतों ने डोडा के पेड़ों को सहारा बनाया है. लेकिन, तोतों की इस करतूत से मंदसौर के किसान परेशान हैं.
डोडा वो पेड़ है जिससे अफीम निकलती है. मालवांचल में अफीम मुख्य व्यापारिक फसलों में आती है, यहां किसान लाइसेंस लेकर अफीम की खेती करते हैं. लेकिन, तोतों की वजह से अफीम की खेती करने वाले किसान परेशान हैं. यहां तोतों को अफीम की ऐसी लत लगी है, जैसे वे अफीमची हो गए हों. तोतों के झुंड के झुंड खेतों में लगी अफीम खा जाते हैं. कुछ तोते तो पेड़ से डोडा लेकर उड़ भी जाते हैं. तोतों की ये कारगुजारी किसानों पर भारी पड़ रही है.
काला सोना कहलाने वाली अफीम की तोतों को ऐसी लत लगी है कि डोडा के खेतों के आस-पास सैकड़ों तोते जुटे रहते हैं और मौका मिलते ही पेड़ से डोडा लेकर उड़ जाते हैं. किसानों ने इन तोतों से बचने के लिए खेत में पुतले खड़े किये हैं. इसके अलावा अन्य पारंपरिक साधनों से भी वे इन्हें भगाने की कोशिश करते हैं. किसान वन विभाग से भी मदद मांग चुके हैं, लेकिन विभाग ने भी किसानों को ताकीद की है कि तोतों पर हमला ना किया जाए
मंदसौर में 17 हजार किसानों को अफीम की खेती का लाइसेंस मिला हुआ है. ये किसान तोतों से इस कदर परेशान हैं कि नारकोटिक्स विभाग से कम टैक्स वसूलने की अपील की है. किसानों की गुहार पर प्रशासन क्या फैसला लेता है ये तो वक्त ही बतायेगा, लेकिन तोतों की अफीम की लत का यही आलम रहा तो कहीं ऐसा न हो कि इंसानों जैसी आवाज निकालने में माहिर माने जाने वाले तोते ये गाते न सुने जाएं कि मुझे पीने का शौक नहीं, पीता हूं गम भुलाने के लिए