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मालवा इलाके में अफीम की फसल से काला सोना निकलना शुरू, किसानों ने की दाम बढ़ाने की मांग - काला सोना

मलावा इलाके में अफीम की फसल से काला सोना निकलना शुरू हो गया है. इधर किसानों ने केंद्र सरकार से दाम बढ़ाने की मांग की है.

अफीम की फसल से खुश किसान
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Published : Feb 26, 2019, 3:30 PM IST

मंदसौर। प्रदेश के मालवा इलाके में अफीम की फसल से काला सोना निकलना शुरू हो गया है. करीब 5 फीट हाइट वाली इस फसल के सबसे ऊपर बिजली के बल्ब के आकार का अफीम फल लगते हैं. जिसमें किसान चीरा लगाते है फिर उसमें से निकलने वाली अफीम को एकत्र किया जाता है.

अक्टूबर महीने में बोई जाने वाली फसल लगभग 6 महीने की होती है.4 महीने बाद फसल पर कलियां और फूल आने शुरू हो जाते हैं. टयूलिप के आकार जैसे दिखने वाले फूलों की पंखुड़ियों के ठीक बीच अफीम का फल यानी डोडा होता है. फल पकने के बाद उसमे चीरा लगाकर निकाला जाता है.चीरे के दौरान जो दूध निकलता है वो अफीम में तब्दील होता है.

मालवा इलाके में अफीम की फसल


इस फल के छिलके से ही निकलने वाला दूध अफीम में तब्दील होता है .फसल के फलों में तीन-चार दिनों के अंतराल में तीन- चार बार ही चीरा लगाया जाता है यानी करीब डेढ़ हफ्ते तक इस फसल से रोजाना थोड़ा-थोड़ा अफीम निकालने का दौर जारी रहता है. पिछले 15 सालों से केंद्र सरकार ने अफीम के दामों में बढ़ोतरी नहीं की है. लिहाजा किसानों ने अब इसके दाम 5 हजार रुपये किलो करने की भी मांग उठाई है.

मंदसौर। प्रदेश के मालवा इलाके में अफीम की फसल से काला सोना निकलना शुरू हो गया है. करीब 5 फीट हाइट वाली इस फसल के सबसे ऊपर बिजली के बल्ब के आकार का अफीम फल लगते हैं. जिसमें किसान चीरा लगाते है फिर उसमें से निकलने वाली अफीम को एकत्र किया जाता है.

अक्टूबर महीने में बोई जाने वाली फसल लगभग 6 महीने की होती है.4 महीने बाद फसल पर कलियां और फूल आने शुरू हो जाते हैं. टयूलिप के आकार जैसे दिखने वाले फूलों की पंखुड़ियों के ठीक बीच अफीम का फल यानी डोडा होता है. फल पकने के बाद उसमे चीरा लगाकर निकाला जाता है.चीरे के दौरान जो दूध निकलता है वो अफीम में तब्दील होता है.

मालवा इलाके में अफीम की फसल


इस फल के छिलके से ही निकलने वाला दूध अफीम में तब्दील होता है .फसल के फलों में तीन-चार दिनों के अंतराल में तीन- चार बार ही चीरा लगाया जाता है यानी करीब डेढ़ हफ्ते तक इस फसल से रोजाना थोड़ा-थोड़ा अफीम निकालने का दौर जारी रहता है. पिछले 15 सालों से केंद्र सरकार ने अफीम के दामों में बढ़ोतरी नहीं की है. लिहाजा किसानों ने अब इसके दाम 5 हजार रुपये किलो करने की भी मांग उठाई है.

Intro:मंदसौर ।देश-विदेश में मशहूर और प्रदेश के मालवा इलाके की श में शान की खेती माने जाने वाली अफीम की फसल से, चालू सीजन का काला सोना निकलना शुरू हो गया है। बदलते मौसम के बावजूद इलाके में इस साल यह फसल बहार पर है। आमतौर पर दर्शकों के लिए यह फसल और इससे निकलने वाली अफीम एक जिज्ञासा का ही विषय है ।लेकिन आज हम आपको बताते हैं कि क्या है.... अफीम...। और किस तरह से इसे फसल से निकाला जाता है ।एक रिपोर्ट


Body:हरे भरे खेतों में बिजली के बल्ब के आकार के फलों को चुन चुन कर विशेष औजारों से काम करने का जो नजारा आप देख रहे हैं, यह अफीम की फसल से काला सोना यानी असल अफीम को एकत्र करने की कास्तकारी का सीन है। करीब 5 फीट हाइट वाली इस फसल के सबसे ऊपर बिजली के बल्ब आकार का अफीम का फल होता है जिसे डोडा कहा जाता है। एक विशेष उम्र के बाद यह फल पक जाता है और इसके बाद इसमें विशेष औजार के द्वारा चीरा लगाया जाता है ।चीरा लगाने वाले औजार का नाम नाणा होता है। इस औजार के मुंह पर नुंकली आकार की चार ब्लेड होती है। किसान इसे पेन की तरह पकड़ कर, फल पर रगड़ते हुए चीरा लगाता है। इसे चिराई कहते हैं ।चीरे से पहले हर पके हुए फल की पहचान करना बहुत जरूरी होती है ,इसके बाद ही उसमें चीरा लगाया जाता है ।खास बात यह है कि फलों में चीरा लगाने के लिए तेज धूप यानी सुबह 11:00 से 3:00 बजे का समय तय होता है। जब फल में चीरा लग जाता है तो उसमें दूध निकल आता है। यह दूध रात भर के दौरान फल की सतह पर ब्राउन कलर के गाढ़े द्रव( मलाई जैसे पदार्थ) में तब्दील हो जाता है। यही है काला सोना याने.... अफीम....। अगले दिन पौ फटने से पहले किसान उस गाढ़े द्रव को दूसरे विशेष औजार से सूतकर एकत्र कर लेते हैं। इस औजार का नाम लुवा है ।सुबह सुबह सभी किसान और मजदूर लुवा लेकर एक एक फल से उनको सुतना शुरू कर देते हैं ।इससे लुनाई कहते हैं। लुनाई के दौरान जब इस औजार पर धीरे-धीरे अफीम इकट्ठी हो जाती है तो किसान उसे एक चाकू के सहारे अलग बर्तन में उतार कर खाली कर लेते हैं। लुनाई के लिए भी किसान को सुबह 6:00 बजे से 9:00 बजे तक ही फसल के बीच काम करना होता है। और यदि फलों पर तेज धूप गिरना शुरू हुई तो फिर अफीम, फल पर ही चिपकी रह जाती है ।इन हालातों में किसान इस फसल के बीच एक मशीन की तरह काम करता नजर आता है ।
byte 1:कोमल राम माली, किसान
byte 2:जगदीश पाटीदार ,किसान
अक्टूबर महीने में बोई जाने वाली फसल की उम्र लगभग 6 माह होती है ।4 महीने बाद फसल पर कलियां और फूल आना शुरू हो जाते हैं ।टयूलिप के आकार जैसे दिखने वाले फूलों की पंखुड़ियों के ठीक बीच अफीम का फल यानी डोडा होता है। इस फल के छिलके से ही निकलने वाला दूध अफीम में तब्दील होता है ।फसल के फलों में तीन-चार दिनों के अंतराल में तीन चार बार ही चीरा लगाया जाता है। यानी करीब डेढ़ हफ्ते तक इस फसल से रोजाना थोड़ा-थोड़ा अफीम निकालने का दौर जारी रहता है। जाहिर सी बात है कि सुबह 6:00 से लगाकर शाम 4:00 बजे तक लगातार डेढ़ हफ्ते तक लुनाई और चिरई के इस दौर में किसान काफी थक जाते हैं ।इन हालातों में उनकी मदद के लिए महिलाएं भी इस काम में उनका हाथ बँटाती है। इस काम को किसान की कारीगरी के रूप में भी माना जाता है ।लिहाजा अफीम के खेत में पारंगत मजदूर ही काम करते हैं। ऐसे में उन्हें भुगतान भी दुगना किया जाता है ।जब फसल से अफीम निकल जाती है और डोडा सूख जाता है तो इसके अंदर भरा बीज भी पक जाता है ।यही खसखस कहलाती है ।जिसे करीब1000 किलो वाला ड्राई फ्रूट कहा जाता है ।कुल मिलाकर मालवा इलाके का किसान इस फसल को बेटी की तरफ पालकर बड़ा करता है और इसके बाद इससे निकली अफीम को नारकोटिक्स विभाग को तुलवा कर घर से रवाना करने के बाद ही पूरी तरह शांति में आता है ।पिछले 15 सालों से केंद्र सरकार ने अफीम के दामों में बढ़ोतरी नहीं की है। लिहाजा किसानों ने अब इसके दाम 5000 रुपये किलो करने की भी मांग उठाई है।
byte 3: कलाबाई, मजदूर महिला
byte 4: प्रमिला कुमारी, मजदूर महिला

ptc: विनोद गौड़ ,मंदसौर


Conclusion:

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