मंडला। कान्हा टाइगर रिजर्व में अगस्त 2018 से अगस्त 2020 यानि 2 साल में 12 बाघों की मौत हो चुकी है. बाघों की मौत के जो भी कारण हो, लेकिन चिंता की बात ये है कि मध्यप्रदेश को मिला टाइगर स्टेट का दर्जा कैसे कायम रहेगा. कान्हा को बाघों के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता है. ऐसे में ये आंकड़े कहीं न कहीं टाइगर को संरक्षित करने के प्रयास पर सवाल खड़े कर रहे हैं.
टाइगर अपने क्षेत्र या टैरेटरी में किसी अन्य बाघ को बर्दाश्त नहीं करता और ऐसे में होती है अस्तित्व की लड़ाई, जिसमें बाघों के बीच खूनी संघर्ष होता है, जो एक या दोनों बाघों को गम्भीर रूप से घायल कर देता है. ऐसे में दोनों बाघों की घायल होने से मौत भी हो जाती है. दूसरी तरफ एक वयस्क बाघ अपनी ही प्रजाति के शावकों को अपने लिए असुरक्षित मानता है और बाघों के शावकों को बाघ ही खत्म कर देते हैं. ऐसे में इन्हें संरक्षण देने के प्रयास विफल प्रतीत होते हैं.
जरा इन आंकड़ों में गौर करें-
- 23 अगस्त 2018- एक बाघ की मौत
- 21 नवंबर 2018- एक बाघ की मौत
- 5 जनवरी 2019- एक बाघ की मौत
- 19 जनवरी 2019- एक बाघ की मौत
- 26 फरवरी 2019- एक बाघ की मौत
- 23 मार्च 2019- एक बाघ की मौत
- 8 नवंबर 2019- एक बाघ की मौत
- 5 दिसंबर 2019- एक बाघ की मौत
- 10 दिसंबर 2019- एक बाघ की मौत
- 2 अप्रैल 2020- एक बाघ की मौत
- 11 अप्रैल 2020- एक बाघ की मौत
अगस्त 2020 में भी एक बाघ की मौत की सूचना है. ये कान्हा टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर का कहना है कि एक बाघ की मौत शिकार के कारण हुई, जबकि सभी बाघ आपसी संघर्ष के कारण मारे गए, जो नैचुरल डेथ कहलाता है.
क्यों नहीं सुरक्षित बाघ
2184 वर्ग किलोमीटर का अभ्यारण भू-भाग, जो राष्ट्रीय धरोहर है, जहां पूरी तरह से जंगली जानवरों के रहने के लिहाज से अनुकूल वातावरण, उनके भोजन के लिए पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं और इन प्राकृतिक संसाधनों के अतिरिक्त राज्य और केंद्र सरकार के द्वारा पूरी आधुनिक तकनीक की सुविधाएं, आर्थिक मदद दी जाती है. जिससे कि संरक्षित प्रजाति के जीव-जंतुओं को बचाया जा सके, लेकिन बाघों की बात करें तो इतने बड़े भू-भाग में सिर्फ 88 बाघ ही हैं. जिनकी संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही और बाघों की मौत भी हो रही है, जो बाघों को बचाने की दिशा में उठाए जा रहे कदमों के विपरीत ही कही जाएगी.
क्या कहते हैं जिम्मेदार-
फील्ड डायरेक्टर एल कृष्णमूर्ति जिनके कार्यकाल में ही बाघों की मौत का आंकड़ा एक दर्जन पहुंचा है, उनका कहना है कि ये सभी बाघ नैचुरल मौत मरे हैं और इन्हें रोकने के लिए भी कुछ नहीं किया जा सकता, क्योंकि बाघों की प्रकृति आपसी लड़ाई के साथ ही शावकों को भी खत्म कर देने की होती है, लेकिन एक बात ये कि ऐसे में आखिर कान्हा नेशनल पार्क के इतने बड़े एरिया के साथ ही उन इंतजामों की आखिर जरूरत ही क्या जो बाघों को बचाने के लिए किए जा रहे हैं. मौत की वजह जो भी हो, लेकिन चिंता बाघों को बचाने की वजह तलाशने की है, न कि उनकी मृत्यु के बाद के कारणों पर चिंतन करने की.
मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिला हुआ है, लेकिन बाघों के अगर हर महीने मौत के ऐसे आंकड़े और कारण सामने आते रहेंगे तो न ये बाघ बचेंगे न टाइगर स्टेट का तमगा. अवश्यकता इस बात की है कि बाघ जिस तरह और जिन कारणों से बच सकते हैं, उन पर चिंतन मनन और विचार के साथ ही विशेषज्ञ से सलाह ली जाए और कान्हा टाइगर रिजर्व बाघों की संख्या के लिहाज से भी टाइगर बने.