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जब नहीं सुन रहा था प्रशासन, तो पहाड़ी को सड़क बनाने में खुद ही जुटे ग्रामीण

मंडला जिले के ओराघुघरा गांव में सड़क की लड़ाई लड़ रहे ग्रामीणों ने आखिरकार सरकार और जनप्रतिनिधियों की वादाखिलाफी से तंग आकर खुद सड़क का जाल बिछाने का काम अपने हाथ में ले लिया.

The administration was not listening
नहीं सुन रहा था प्रशासन, तो पहाड़ी को सड़क बनाने में जुटे ग्रामीण
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Published : Dec 26, 2019, 12:10 PM IST

मण्डला। जिला मुख्यालय से करीब 115 किलोमीटर दूर ओराघुघरा गांव में सड़क की लड़ाई लड़ रहे ग्रामीणों ने आखिरकार सरकार और जनप्रतिनिधियों की वादाखिलाफी से तंग आकर खुद सड़क का जाल बिछाने का काम अपने हाथ में ले लिया. ग्रामीणों ने हाथों में तसला, फावड़ा, कुदाल और सब्बल उठाकर खुद ही सड़क बनाने के लिए निकल पड़े और पहाड़ को काटकर रास्ता बना रहे हैं.

नहीं सुन रहा था प्रशासन, तो पहाड़ी को सड़क बनाने में जुटे ग्रामीण

मण्डला के मवई ग्राम पंचायत अमवार के जंगल में बसे ओरा घुघरा गांव में आवाजाही के लिए सड़क नहीं है. यहां रहने वाले बैगा जनजाति के परिवारों को सड़क नहीं होने से मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था. इसके लिए ग्रामीणों ने सड़क के लिए प्रशासन से अर्जी लगाई और जब प्रशासन नहीं जागा तो ग्रामीणों ने खुद ही श्रमदान कर रास्ता अपनाने का संकल्प लिया.

इस काम में बुजुर्ग, महिला, पुरुष और बच्चे सभी 'दशरथ मांझी' बन पहाड़ी के पत्थर तोड़ने में जुट गए. वहीं ग्रामीणों की मेहनत भी रंग ला रही है. ग्रामीणों की जिद के आगे कठोर पत्थर भी टूट कर सड़क बनाने में उनकी सहायता कर रहे हैं.

बता दें कि मण्डला के ओराघुघरा में 28 बैगा परिवार निवास करते हैं और यहां तक पहुंचने एक भी रास्ता नहीं है. जिसके कारण ग्रामीणों को पहाड़ी के ऊपर से आना जाना पड़ता था.

मण्डला। जिला मुख्यालय से करीब 115 किलोमीटर दूर ओराघुघरा गांव में सड़क की लड़ाई लड़ रहे ग्रामीणों ने आखिरकार सरकार और जनप्रतिनिधियों की वादाखिलाफी से तंग आकर खुद सड़क का जाल बिछाने का काम अपने हाथ में ले लिया. ग्रामीणों ने हाथों में तसला, फावड़ा, कुदाल और सब्बल उठाकर खुद ही सड़क बनाने के लिए निकल पड़े और पहाड़ को काटकर रास्ता बना रहे हैं.

नहीं सुन रहा था प्रशासन, तो पहाड़ी को सड़क बनाने में जुटे ग्रामीण

मण्डला के मवई ग्राम पंचायत अमवार के जंगल में बसे ओरा घुघरा गांव में आवाजाही के लिए सड़क नहीं है. यहां रहने वाले बैगा जनजाति के परिवारों को सड़क नहीं होने से मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था. इसके लिए ग्रामीणों ने सड़क के लिए प्रशासन से अर्जी लगाई और जब प्रशासन नहीं जागा तो ग्रामीणों ने खुद ही श्रमदान कर रास्ता अपनाने का संकल्प लिया.

इस काम में बुजुर्ग, महिला, पुरुष और बच्चे सभी 'दशरथ मांझी' बन पहाड़ी के पत्थर तोड़ने में जुट गए. वहीं ग्रामीणों की मेहनत भी रंग ला रही है. ग्रामीणों की जिद के आगे कठोर पत्थर भी टूट कर सड़क बनाने में उनकी सहायता कर रहे हैं.

बता दें कि मण्डला के ओराघुघरा में 28 बैगा परिवार निवास करते हैं और यहां तक पहुंचने एक भी रास्ता नहीं है. जिसके कारण ग्रामीणों को पहाड़ी के ऊपर से आना जाना पड़ता था.

Intro:ण्डला जिला मुख्यालय से करीब 115 किलोमीटर दूर
ओराघुघरा ग्राम मैं आजादी के बाद से अब तक एक सड़क की लड़ाई लड़ रहे ग्रामीणों ने आखिरकार सरकार और जनप्रतिनिधियों की वादाखिलाफी से तंग आकर खुद ही हाथों में तसला, फावड़ा,कुदाल और सब्बल उठा कर रास्ता बनाने के लिए आगे आए और पहाड़ी को तोड़ रास्ता बना रहे हैं,खास बात यह कि यहाँ 28 परिवार ऐसे हैं जो राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र हैं


Body:मण्डला जिला मुख्यालय से 115 किलोमीटर दूर मवई की ग्राम पंचायत अमवार के जंगल में बसें ग्राम ओरा घुघरा में आवाजाही के लिए सड़क नहीं है जिसके चलते यहां निवास करने वाले बैगा जनजाति के परिवारों को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है यहाँ एक सड़क की माँग को लेकर अर्जी लगाने के बाद भी जब प्रशासन ने नहीं जागा तो ग्रामीणों ने खुद ही श्रमदान कर रास्ता बनाने का संकल्प लिया और महिला,पुरुष,बच्चे,बुजुर्ग सभी दशरथ माँझी बन पहाड़ी के पत्थर तोड़ने में भिड़ गए वहीं इन ग्रामीणों की मेहनत भी रंग लाती नज़र आ रही है ग्रामीणों की जिद के आगे कठोर पत्थर भी टूट कर मार्ग बनाने में सहयोग कर रहे हैं। औराघुघरा के 28 बैगा परिवार निवास करते हैं यहां तक पहुंच मार्ग नहीं है जिसके कारण ग्रामीण पहाड़ी से आवाजाही करते हैं इस रास्ते में पत्थर हैं जिसके चलते ग्राम औरा घुघरा तक कोई वाहन नहीं पहुंच पाता गाँव में अगर कोई बीमार हो जाता है तो उसे चारपाई पर लेटा कर मुख्य मार्ग तक लाया जाता है,साथ ही किसी भी तरह की चीजों को सर पर रखकर ही घर तक ले जाया जाता है,गांव के ग्रामीण पिछले 8 सालों से सड़क निर्माण की मांग कर रहे हैं इसके लिए ग्राम पंचायत से लेकर जिला प्रशासन को कई बार शिकायत की गई ग्राम पंचायत में आवेदन दिए लेकिन जब सड़क नहीं बनी तो जनपद पंचायत, जिला पंचायत को भी शिकायत की गई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई तब ग्रामीणों ने खुद श्रमदान कर सड़क निर्माण के लिए आगे आए और काम में जुट गए।


Conclusion:समस्या यहां ही खत्म नहीं होती है सड़क ना होने के कारण सरकारी कर्मचारी अधिकारी गांव नहीं आ पाते पिछले एक माह से हैंडपंप खराब है लेकिन रोड ना होने के कारण उनका सुधार कार्य भी नहीं किया जा रहा,गर्भवती महिलाओं और बीमारों चारपाई में बिठा कर ले जाया जाता है जिससे उनकी हालत खराब होने के साथ ही उपचार में भी देरी होती है।

बाईट--ग्रामीण, रत्तू सिंह धुर्वे
बाईट--ग्रामीण
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