मंडला। देश के ज्यादातर राज्यों में रोज सुबह जब कचरा लेने कचरा गाड़ी आती है तो एक ही गाना सुनाई देता है, 'गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल' यह गाना हर वर्ग की जुबां पर चढ़ा हुआ है. पूरे देश में सुने जाने वाले इस गीत के लेखक और संगीतकार और गायक के बारे में कम ही लोग जानते हैं. तो आईये हम आपको उस कलाकार से मिलवाते हैं जो पूरे देश में छाया है लेकिन फिर भी गुमनाम है.
बात कर रहे हैं श्याम बैरागी की, जिन्होंने 'गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल' वाले गीत से अपनी पहचान बनायी है. वह जिले के वनांचल में बसे बहेरी गांव में जन्मे हैं. श्याम एक अच्छे लेखक कवि के साथ ही एक बेहतरीन गायक भी हैं, जिनकी 2 दर्जन से ज्यादा सीडी निकल चुकी हैं. जिनमें इस कलाकार ने कैशलैश इंडिया, बेटी बचाओ अभियान, कुपोषण के खिलाफ लड़ाई, खेती किसानी, शुद्ध जल के साथ ही समाज की हर बुराई से लड़ने को गीतों के माद्यम से पेश किया है.
सरकार ने वो सम्मान नहीं दिया जिसके वे हकदार!
लोकसभा चुनाव के दौरान जागरूकता रथ में 300 से ज्यादा गांव तक मतदाता को जागरूक करने उनके बीच भी गए. पेशे से शिक्षक आचार्य सम्मान से सम्मनित श्याम बैरागी की प्रतिभा को सबसे पहले नैनपुर के परसराम श्रीवत्री ने देखा, समझा और उसे निखारा भी. जिसके बाद प्रशासन ने उन्हें जिला स्तर पर भरपूर मौका दिया. हालांकि सरकार ने उनको वो सम्मान नहीं दिया जिसके वह हकदार हैं. श्याम बैरागी का गरीबी से कलाकार तक का सफर मुश्किल भरा रहा है. माता पिता के निरक्षर होने के बावजूद श्याम ने वो कर दिखाया जिसकी उन्होंने खुद कल्पना नहीं की थी.
इस बात से पत्नि रहती थी परेशान
श्याम की पत्नी भी शादी के बाद इस बात को लेकर परेशान रहतीं थी कि उनके पति रात को उठ कर पता नहीं क्या लिखते पढ़ते रहते हैं और कभी भी गाने लगते हैं, लेकिन आज जब गली गली में उनके गाने गूंजते हैं तो वे भी गर्व का अनुभव करती हैं. श्याम बैरागी को लिखने पढ़ने का शौक शुरू से ही रहा है. पहले कविताएं, लेख अखबारों में भेजते थे, जिन्हें वे एक संग्रह का रूप दे रहे हैं.
चमक-दमक से दूर रहना करते हैं पसंद
श्याम बैरागी को गाड़ी वाला आया घर से कचरा निकाल गाने ने एक पहचान तो दिलाई छालीवुड ने भी इन्हें हाथों हाथ लिया और अपने सम्मान से भी नवाजा. वहीं महाराष्ट्र के बीड इनके गाने की शूटिंग हुई, जिसके बाद गार्बेज क्लीनिक नोएडा कंपनी इस गीत को पूरे महाराष्ट्र में कचरा गाड़ी में चलाएगी. इस अचीवमेंट पर श्याम कहते हैं कि मेरी अपेक्षा केंद्र सरकार से है जो चाहे तो हर एक योजनाओं पर लिखे उनके गीत का उपयोग अभियान चलाने में कर सकती है. श्याम ऊपरी चमक-दमक से दूर आज भी निरन्तर स्थानीय बोली का सृजन करते चले आ रहे हैं और उन्हें पता है कि सफलता की राह मुश्किल तो जरूर है, लेकिन नामुमकिन नहीं.