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पंचायत का 'तुगलकी फरमान', परिवार ने जुर्माना नहीं भरा तो कर दिया सामाजिक बहिष्कार

मंडला जिले के बीजेगांव में रहने वाले एक परिवार का सामाजिक बहिष्कार केवल इसलिए कर दिया गया. क्योंकि परिवार ने पंचायत के तुगलकी फरमान की नफरमानी कर दी. जिससे नाराज पंचायक ने परिवार का गांव से बहिष्कार कर दिया. मामला पुलिस और जनप्रतिनिधियों के सामने आने के बाद जांच की बात कही जा रही है.

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Published : Dec 28, 2019, 12:00 AM IST

social boycott of a family
परिवार का किया सामाजिक बहिष्कार

मंडला। तस्वीरों में दिख रही यह मासूम सी लड़की न तो अपने दोस्तों के साथ खेल पाती है. न स्कूल में उसके साथ कोई बैठता है और न ही उसका कोई दोस्त है. क्योंकि उसके परिवार का पंचायत ने सामाजिक बहिष्कार कर दिया. जिसकी सजा अब ये मासूम भुगत रही है.

पंचायत का तुगलकी फरमान

कहने को तो हम डिजिटल इंडिया के जमाने में जी रहे हैं, दावा करते है सामाजिक कुरीतियों को भी पीछे छोड़ चुके हैं. लेकिन ये बाते शहरों तक तो अच्छी लगती है. क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में तो आज भी स्थितियां वहीं के वहीं है. तस्वीरों में दिख रहा यह परिवार मंडला जिले के बीजे गांव का रहने वाला है. जहां की सामाजिक पंचायत ने परिवार का हुक्का पानी इसलिए बंद कर दिया, क्योंकि परिवार ने पंचायत से लगाया जुर्माना नहीं भरा.

मामला दो परिवारों के आपसी विवाद का था. जो गांव की सामाजिक पंचायत में पहुंचा, पंचायत ने दोनों परिवारों पर एक-एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया. लेकिन जब राजेश तेकाम ने जुर्माना भरने से इंकार किया, तो पंचायत ने तुगलकी फरमान सुनाते हुए गांव में मुनादी कराकर राजेश के परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया. मामले में जब पुलिस और जनप्रतिनिधियों से बात की गई तो रटा-रटाया जवाब मिला जांच की जाएगी, दोषियों पर कार्रवाई होगी.

पंचायत के इस फैसले से आज परिवार अपने ही गांव में पराया हो गया है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि एक तरफ दावा किया जाता है कि देश बदल रहा है, सामाजिक कुरीतियां दूर हो चुकी हैं. जाति वर्गों में भेदभाव नहीं बचा. लेकिन जब बिना किसी कसूर के एक परिवार का समाजिक तौर पर बहिष्कार कर दिया जाता है तब ये दावे ढकोसले से ज्यादा कुछ और नजर नहीं आते. ऐसे में जरुरत है कि सिर्फ दावे न किए जाए तो अच्छा है. इन दावों को हकीकत में बदला जाए तो और ज्यादा बेहतर होगा.

मंडला। तस्वीरों में दिख रही यह मासूम सी लड़की न तो अपने दोस्तों के साथ खेल पाती है. न स्कूल में उसके साथ कोई बैठता है और न ही उसका कोई दोस्त है. क्योंकि उसके परिवार का पंचायत ने सामाजिक बहिष्कार कर दिया. जिसकी सजा अब ये मासूम भुगत रही है.

पंचायत का तुगलकी फरमान

कहने को तो हम डिजिटल इंडिया के जमाने में जी रहे हैं, दावा करते है सामाजिक कुरीतियों को भी पीछे छोड़ चुके हैं. लेकिन ये बाते शहरों तक तो अच्छी लगती है. क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में तो आज भी स्थितियां वहीं के वहीं है. तस्वीरों में दिख रहा यह परिवार मंडला जिले के बीजे गांव का रहने वाला है. जहां की सामाजिक पंचायत ने परिवार का हुक्का पानी इसलिए बंद कर दिया, क्योंकि परिवार ने पंचायत से लगाया जुर्माना नहीं भरा.

मामला दो परिवारों के आपसी विवाद का था. जो गांव की सामाजिक पंचायत में पहुंचा, पंचायत ने दोनों परिवारों पर एक-एक हजार रुपए का जुर्माना लगाया. लेकिन जब राजेश तेकाम ने जुर्माना भरने से इंकार किया, तो पंचायत ने तुगलकी फरमान सुनाते हुए गांव में मुनादी कराकर राजेश के परिवार का हुक्का पानी बंद कर दिया. मामले में जब पुलिस और जनप्रतिनिधियों से बात की गई तो रटा-रटाया जवाब मिला जांच की जाएगी, दोषियों पर कार्रवाई होगी.

पंचायत के इस फैसले से आज परिवार अपने ही गांव में पराया हो गया है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि एक तरफ दावा किया जाता है कि देश बदल रहा है, सामाजिक कुरीतियां दूर हो चुकी हैं. जाति वर्गों में भेदभाव नहीं बचा. लेकिन जब बिना किसी कसूर के एक परिवार का समाजिक तौर पर बहिष्कार कर दिया जाता है तब ये दावे ढकोसले से ज्यादा कुछ और नजर नहीं आते. ऐसे में जरुरत है कि सिर्फ दावे न किए जाए तो अच्छा है. इन दावों को हकीकत में बदला जाए तो और ज्यादा बेहतर होगा.

Intro:बीजेगाँव में रहने वाली नवमीं कक्षा की छात्रा खुश्बू तेकाम के साथ गाँव की कोई लड़कियाँ साथ मे न खेलना चाहती न ही कोई उसके साथ स्कूल आता जाता,खुश्बू की कोई सहेली भी नहीं जिसका कारण है समाज की वो कुरीति जिसके चलते स्वजातीय समाज की पंचायत ने इसके माता पिता और अन्य तीन परिवारों का हुक्का पानी मुनादी कर बंद करा दिया हैं


Body:परिवार के बीच आपसी विवाद हुआ और एक पक्ष ने सामाजिक पंचायत से मामले को सुलझाना चाहा,स्वजातीय सामाजिक पंचायत भी बैठी लेकिन जो निर्णय आया वो बीजेगाँव के तीन परिवारों के लिए किसी नासूर से कम नहीं,बम्हनी थाना अंतर्गत राजेश तेकाम का रिश्ते के भाई अशोक तेकाम और भाभी से किसी बात को लेकर विवाद हुआ जिसके बाद मामला सामाजिक पंचायत तक पहुंचा जिसमें इन पर एक हज़ार रुपये का अर्थ दंड लगाया गया लेकिन जब राजेश तेकाम के द्वारा बिना किसी गलती के अर्थदंड देने से इनकार कर दिया गया तो पंचायत के कुछ लोगों के द्वारा गांव में मुनादी कर इन्हें समाज से अलग कर दिया गया है,अब इनके साथ कोई बोलता है न घर आता जाता न ही किसी सामाजिक कार्यक्रमो में इन्हें बुलाया जाता,इस परिवार का यह भी कहना है कि इनके बच्चों के साथ कोई खेलना या स्कूल आना जाना भी पसंद नहीं करता,जिसके चलते पूरा परिवार बहुत परेशान है,इस परिवार के द्वारा बह्मनी थाने और पुलिस अधीक्षक को लिखित आवेदन देकर कुछ लोगों की नामजद शिकायत की गई है जो इन्हें आदिवासी समाज के होते हुए भी अपने समाज से अलग कर चुके है,बसन्त तेकाम,शिव प्रसाद मर्सकोले,अशोक तेकाम,गीताराम परते, सुनील बरकड़े और बाजारी लाल तेकाम जिनमे से मुख्य हैं


Conclusion:इस मामले पर बिछिया क्षेत्र के विधायक नारायण सिंह पट्टा का कहना है कि समाज की इस बुराई को दूर करना होगा वहीं मामला संज्ञान में आने के बाद उनसे बात की जाएगी वहीं अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक विक्रम सिंह कुशवाहा ने बताया कि आवेदन पत्र प्राप्त हुआ है जिस पर फरयादी के कथन लिए जाने के बाद मामले की जाँच कर दोषियों पर कार्यवाही की जाएगी।बता दें कि जिन लोगों के नाम आवेदन में दिए गए हैं उनके द्वारा दो अन्य राजकुमार धुर्वे और रामू मरकाम के पूरे परिवार को भी समाज से वहिष्कृत कर रखा है।
बाईट--खुश्बू तेकाम
बाईट--राजेश तेकाम
बाईट--संगीता तेकाम
बाईट--नारायण सिंह पट्टा, विधायक,बिछिया
बाईट--विक्रम सिंह कुशवाहा,एडिशनल एसपी
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