मंडला। राखियों से लेकर हरछठ की टोकनियां और नारियल से लेकर पूजा के हर एक सामान पर महंगाई की मार है, चाइना की राखियां बाजारों से गायब हैं और लॉकडाउन में देशी राखी तैयार नहीं हुई हैं. ऐसे में जहां इनके दाम आसमान छू रहे हैं, वहीं सराफा व्यापारियों की उम्मीद रक्षाबंधन, तीजा और संतान सप्तमी से थी, लेकिन अब वो भी महंगाई की भेंट चढ़ गईं. लोगों में त्योहार को लेकर उत्साह तो है, लेकिन बाजार एकदम मंदा है.
बाजारों में रौनक तो लौट आयी है, लेकिन दुकानदारों और ग्राहकों के चेहरे पर नहीं. एक तरफ दुकानदार लॉकडाउन के चलते सीजन के सामान इकठ्ठा नहीं कर पाए हैं. वहीं इस लॉकडाउन ने लोगों की कमाई पर भी गहरा असर डाला है, ऐसे में हर जगह बस भीड़ तो है, लेकिन खरीददारी में भारी गिरावट आई है.
चीनी सामान का विरोध, देशी की सप्लाई नहीं
बात राखियों की करें तो बाजार चाइना की राखियों से भरा रहता था, जिसमें वैरायटी भी रहती थीं और कीमत भी कम होती थी, लेकिन भारत-चाइना में तनाव के चलते चाइना की राखियां बाजार से पूरी तरह गायब हैं. वहीं जबलपुर, नागपुर या दूसरे शहरों के माध्यम से आने वाली राखियां ट्रांसपोर्ट न होने के चलते थोक व्यापारियों तक पहुंची ही नहीं हैं. ऐसे में बीते साल का बचा माल और खुद के साधन से खरीद कर लाई गईं राखियां ही दुकानदार बेच रहे हैं, जो बीते साल के मुकाबले काफी महंगी हैं. पाट या रेशम की राखियां जो 5 रूपए में दर्जन भर आ जाती थीं, अब 10 रुपए में 10 ही आ रहीं हैं. वहीं चमकीले कंकड़ और डिजाइन वाली जो राखियां बीते साल 10 से 15 रुपए में बिकती थीं, इस साल 30 से 40 रुपए में बिक रही हैं.
हरछठ पर महंगाई का साया
अपने बच्चों के स्वस्थ के लिए बड़ी संख्या में माताएं हरछठ या हलशष्टी का व्रत रखती हैं, जिसमें बांस की 6 टोकनी में महुआ, 7 प्रकार के अनाज की लाई और दूसरी चीजें चढ़ाई जाती हैं. ये बांस की टोकनियां बीते साल 30 से 40 रुपए की आधा दर्जन मिलती थीं जो इस साल 70 से 80 रुपए में बिक रहीं हैं. वहीं इस त्योहार में लगने वाला पसई का चावल जो 50 रुपए किलो था, इस साल 100 रुपए किलो मिल रहा है. साथ ही हर त्यौहार में लगने वाला जो नारियल 10 रुपए का था, इस साल 20 रुपए का एक बिक रहा है.
सराफा व्यापारियों की टूटी उम्मीद
कोरोना के चलते शादी का सीजन पूरा खाली गया. अब सोने चांदी के व्यापारियों को रक्षाबंधन से उम्मीद थी, जिसमें भाई के लिए बहन चांदी की राखियों की खरीददारी करती थीं, जिनका दाम 100 रुपये से शुरू होता था, लेकिन बीती साल 35 हजार प्रतिकिलो चांदी का भाव इस साल 65 हजार है. जिससे ये राखियां डेढ़ गुनी महंगी हो गयी हैं. वहीं राखी के उपहार में भाई-बहन को पायल, चेन या फिर दूसरे तरह के आभूषण गिफ्ट करता था, उनका भी दाम आसमान छू रहा है. इसके अलावा, संतान सप्तमी और तीजा में भी जेबर की जो बिक्री होती थी, अब वो भी भाव में आई तेजी के चलते नहीं हो रही है और सराफा व्यापार पूरी तरह से ठप पड़ा हुआ है.
कोरोना ने जहां व्यापारियों को पूरी तरह से निराश किया है, वहीं ग्राहक भी ऊंचे दामों के चलते मन मारकर बाजार से जा रहे हैं, क्योंकि 3 महीने के लॉकडाउन में वो वर्ग जो सरकारी नौकरी, पेशा वाला नहीं है, वो हर तरह से प्रभावित हुआ है. ऐसे में उनके सामने परिवार चलाने का खर्च निकाल पाना मुश्किल हो रहा है, तो वो त्योहार के लिए कहां से इंतजाम करेंगे. दुकानदारों का कहना है कि जब माल ही नहीं मिल रहा तो फिर ग्राहकों को कम कीमत में सामान बेचना सम्भव ही नहीं है. ऐसे में बस यही कहा जा सकता है कि इस साल त्योहारों पर कोरोना पूरी तरह से हावी है.