मंडला। गोंडवाना साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती का आज बलिदान दिवस है. 24 जून 1564 को अकबर से संघर्ष करते हुए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. गोंडवाना साम्राज्य की शासक रानी दुर्गावती ने पति दलपति शाह की मृत्यु के बाद धैर्य और कुशलता के साथ अपने साम्राज्य को संभाला और सम्पन्न बनाया. मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए. उनके शौर्य और बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया.
शौर्य और पराक्रम की देवी रानी दुर्गावति
गढ़ा राज्य के शासक दलपति शाह की मृत्यु के बाद मुगल शासक अकबर रानी दुर्गावती के साम्राज्य को हड़पना चाहता था. इसके पीछे एक कारण ये भी था कि रानी दुर्गावती के बढ़ते साम्राज्य की कीर्ति चारों तरफ फैल रही थी. जिस पर तत्कालीन मुगल शासकों की नजर गड़ी हुई थी. कई बार दुर्गावती के साम्राज्य पर हमला भी किया गया, लेकिन हर कोई चित्त हो गया.
रानी के मंत्री बीरबल ने की थी गद्दारी
राज्य से बीरबल को निकालने के बाद उसने अपने अपमान का बदला लेने के लिए अकबर से हाथ मिला लिया. अकबर ने रानी को पत्र लिखकर अपनी कुछ मांगें रखीं, जो रानी दुर्गावती को नागवार गुजरी और उन्होंने अकबर के सेनापति आसफ खां की सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया, लेकिन जब वो आसफ खां की सेना से घिर चुकी थी तो उन्होंने विकट परिस्थति में खुद को पाकर अपने ही खंजर से शहीद हो गईं. राजपूत महारानी जब तक रहीं शान से रहीं और बड़े मुगल शासक अकबर को भी नाकों चने चबाने के लिए मजबूर करती रहीं.
रानी दुर्गावती का जन्म
5 अक्टूबर 1524 को कलिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल के महल में दुर्गा अष्टमी के दिन एक बेटी ने जन्म लिया. दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया. नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई.
रानी दुर्गवाती के सम्मान में एक श्वेत पत्थर
जबलपुर से कुछ किलोमीटर दूर गांव बरेना में श्वेत पत्थरों की एक समाधि बनी हुई है. वह समाधि देश की स्वतंत्रता पर बलिदान होने वाली वीर रानी दुर्गावती की है, जो भी उस ओर से निकलता है मस्तक झुकाकर समाधि के पास एक श्वेत पत्थर भी रखकर गुजरता है.