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आज है रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस, अकबर से संघर्ष करते हुए हुई थीं शहीद - अकबर से संघर्ष करते हुए हुई थीं शहीद

आज वीरांगना रानी दुर्गावती का 456वां बलिदान दिवस हैं. रानी दुर्गावती ने अपने धैर्य और कुशलता के साथ अपने साम्राज्य को संभाला और सम्पन्न बनाया. मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए.

रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस
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Published : Jun 24, 2019, 1:30 PM IST

मंडला। गोंडवाना साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती का आज बलिदान दिवस है. 24 जून 1564 को अकबर से संघर्ष करते हुए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. गोंडवाना साम्राज्य की शासक रानी दुर्गावती ने पति दलपति शाह की मृत्यु के बाद धैर्य और कुशलता के साथ अपने साम्राज्य को संभाला और सम्पन्न बनाया. मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए. उनके शौर्य और बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया.

शौर्य और पराक्रम की देवी रानी दुर्गावति
गढ़ा राज्य के शासक दलपति शाह की मृत्यु के बाद मुगल शासक अकबर रानी दुर्गावती के साम्राज्य को हड़पना चाहता था. इसके पीछे एक कारण ये भी था कि रानी दुर्गावती के बढ़ते साम्राज्य की कीर्ति चारों तरफ फैल रही थी. जिस पर तत्कालीन मुगल शासकों की नजर गड़ी हुई थी. कई बार दुर्गावती के साम्राज्य पर हमला भी किया गया, लेकिन हर कोई चित्त हो गया.

रानी के मंत्री बीरबल ने की थी गद्दारी
राज्य से बीरबल को निकालने के बाद उसने अपने अपमान का बदला लेने के लिए अकबर से हाथ मिला लिया. अकबर ने रानी को पत्र लिखकर अपनी कुछ मांगें रखीं, जो रानी दुर्गावती को नागवार गुजरी और उन्होंने अकबर के सेनापति आसफ खां की सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया, लेकिन जब वो आसफ खां की सेना से घिर चुकी थी तो उन्होंने विकट परिस्थति में खुद को पाकर अपने ही खंजर से शहीद हो गईं. राजपूत महारानी जब तक रहीं शान से रहीं और बड़े मुगल शासक अकबर को भी नाकों चने चबाने के लिए मजबूर करती रहीं.

रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस

रानी दुर्गावती का जन्म
5 अक्टूबर 1524 को कलिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल के महल में दुर्गा अष्टमी के दिन एक बेटी ने जन्म लिया. दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया. नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई.

रानी दुर्गवाती के सम्मान में एक श्वेत पत्थर
जबलपुर से कुछ किलोमीटर दूर गांव बरेना में श्वेत पत्थरों की एक समाधि बनी हुई है. वह समाधि देश की स्वतंत्रता पर बलिदान होने वाली वीर रानी दुर्गावती की है, जो भी उस ओर से निकलता है मस्तक झुकाकर समाधि के पास एक श्वेत पत्थर भी रखकर गुजरता है.

मंडला। गोंडवाना साम्राज्य की वीरांगना रानी दुर्गावती का आज बलिदान दिवस है. 24 जून 1564 को अकबर से संघर्ष करते हुए उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी. गोंडवाना साम्राज्य की शासक रानी दुर्गावती ने पति दलपति शाह की मृत्यु के बाद धैर्य और कुशलता के साथ अपने साम्राज्य को संभाला और सम्पन्न बनाया. मातृभूमि की रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए. उनके शौर्य और बलिदान ने उन्हें अमर बना दिया.

शौर्य और पराक्रम की देवी रानी दुर्गावति
गढ़ा राज्य के शासक दलपति शाह की मृत्यु के बाद मुगल शासक अकबर रानी दुर्गावती के साम्राज्य को हड़पना चाहता था. इसके पीछे एक कारण ये भी था कि रानी दुर्गावती के बढ़ते साम्राज्य की कीर्ति चारों तरफ फैल रही थी. जिस पर तत्कालीन मुगल शासकों की नजर गड़ी हुई थी. कई बार दुर्गावती के साम्राज्य पर हमला भी किया गया, लेकिन हर कोई चित्त हो गया.

रानी के मंत्री बीरबल ने की थी गद्दारी
राज्य से बीरबल को निकालने के बाद उसने अपने अपमान का बदला लेने के लिए अकबर से हाथ मिला लिया. अकबर ने रानी को पत्र लिखकर अपनी कुछ मांगें रखीं, जो रानी दुर्गावती को नागवार गुजरी और उन्होंने अकबर के सेनापति आसफ खां की सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया, लेकिन जब वो आसफ खां की सेना से घिर चुकी थी तो उन्होंने विकट परिस्थति में खुद को पाकर अपने ही खंजर से शहीद हो गईं. राजपूत महारानी जब तक रहीं शान से रहीं और बड़े मुगल शासक अकबर को भी नाकों चने चबाने के लिए मजबूर करती रहीं.

रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस

रानी दुर्गावती का जन्म
5 अक्टूबर 1524 को कलिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल के महल में दुर्गा अष्टमी के दिन एक बेटी ने जन्म लिया. दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया. नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गई.

रानी दुर्गवाती के सम्मान में एक श्वेत पत्थर
जबलपुर से कुछ किलोमीटर दूर गांव बरेना में श्वेत पत्थरों की एक समाधि बनी हुई है. वह समाधि देश की स्वतंत्रता पर बलिदान होने वाली वीर रानी दुर्गावती की है, जो भी उस ओर से निकलता है मस्तक झुकाकर समाधि के पास एक श्वेत पत्थर भी रखकर गुजरता है.

Intro:रानी दुर्गावती ने देखा कि अब वे आसफखां की सेना से घिर चुकी है तो उन्होंने अपने बजीर आधारसिंग से उनके सर को गर्दन से अलग करने की बात कही बजीर इसके लिए तैयार नहीं हुआ तो उन्होंने अपने ही खँझर को अपने सीने पर उतार लिया,यही इस बहादुर राजपूत महारानी की गाथा है कि जब तक रहीं शान से रहीं और बड़े मुगल शासक अकबर को भी नाकों चने चबाने के लिए मजबूर करते रहीं


Body:5 अक्टूबर 1524 को कलिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल के महल में दुर्गा अष्टमी के दिन एक बेटी ने जन्म लिया जिसका नाम रखा गया दुर्गावती जो अपने नाम के अनुरूप तेज,साहस, शौर्य और सुंदरता के कारण प्रसिद्ध हुई जिससे प्रभावित होकर गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह मंडावी ने अपने पुत्र दलपत शाह मंडावी से इनका विवाह कर दिया लेकिन भाग्य को कुछ और ही मंजूर था और राजा दलपत शाह का विवाह के 4 साल बाद ही निधन हो गया इस समय रानी दुर्गावती की गोद में 3 साल का पुत्र नारायण था इस कारण रानी दुर्गावती ने स्वयं गढ़ा मंडला का शासन संभाल लिया और अपने राज्य की जनता को ऐसी सुख सुविधाएं दी की इस राज्य की कीर्ति सारे देश में फैलने लगी उन्होंने कुएँ,बावड़ी,मठ, मंदिर धर्मशालाएं बनवाएं यहां तक कि उन्होंने अपनी प्रिय दासी के नाम पर जबलपुर में चेरीताल और स्वयं के नाम पर रानीताल के साथ ही विश्वस्त दीवान आधार सिंह के नाम पर आधार ताल का निर्माण कराया रानी दुर्गावती की कीर्ति चारों ओर फैल रही थी इस संपन्न राज्य पर तत्कालीन मुगल शासकों की भी नजर थी बाज बहादुर ने अनेकों बार इस राज्य पर हमला किया लेकिन कभी भी रानी दुर्गावती की सेना से वह जीत नहीं पाया, मुगल शासक अकबर भी दुर्गावती के राज्य को जीतकर रानी दुर्गावती को अपने हरम में डालना चाहता था इसी वक्त एक ऐसी घटना हुई जिसके बाद रानी दुर्गावती के मंत्री बीरबल ने अकबर की मदद की और अकबर की सेना ने रानी दुर्गावती के राज्य को घेरना चालू कर दिया रानी दुर्गावती के मंत्री बीरबल ने बिना रानी की इजाजत से 24 हज़ार रुपए किसी धार्मिक कार्य के लिए राजकोष से दान कर दिए जिसकी खबर जब रानी को लगी तो उन्होंने बीरबल को अपने राज्य से निकाल दिया बीरबल इस अपमान के बदले में जलता हुआ शहंशाह अकबर के पास कुछ खास हाथी लेकर पहुंचा अकबर यह तोहफा पाकर अकबर बहुत खुश हुआ वही बीरबल जो की रानी दुर्गावती के दरबार में पहले काम कर चुके थे उन्हें अपने दरबार पर खास मंत्री पद देकर भी नवाजा अकबर ने रानी दुर्गावती के प्रिय सफेद हाथी सरमन और उनके विश्वस्त वजीर आधार सिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने का संदेशा पहुंचाया लेकिन इस मांग को दुर्गावती ने ठुकरा दिया जिसके बाद अकबर ने अपनी बेगम के भतीजे आसफखां के नेतृत्व में गोंडवाना साम्राज्य पर हमला कर दिया लेकिन रानी दुर्गावती की सेना ने पूरी वीरता से इस हमले का जवाब दिया और आसफखां की सेना को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा उसके हज़ारों सैनिक भी मारे गए लेकिन अकबर के कहने पर कुछ समय के बाद एक बार फिर आसफखां पहले से ज्यादा सेना लेकर और तैयारी के साथ दुर्गावती पर फिर से आक्रमण किया रानी दुर्गावती स्वयं पुरुष के भेष में आसफखां की सेना से लोहा लेने उतरी लेकिन इस बार रानी दुर्गावती की सेना कुछ कम थी और रानी की सेना घिरने लगी तारीख थी 24 जून और सन 1564 का और इस समय बारिश भी बहुत तेज़ थी आसफखां की सेना और दुर्गावती की सेना में जोरों का युद्ध चल रहा था तभी एक तीर रानी दुर्गावती कि बाँह पर आकर चुभा और दूसरा तीर उनकी आंख पर जिन्हें उन्होंने निकाल कर फेंक दिया एक तरफ सामने से दुश्मन की सेना तो दूसरी तरफ नर्मदा नदी में बाढ़ का भीषण बेग होने के चलते इस वीरांगना का अब बच पाना मुश्किल था ऐसे में रानी दुर्गावती ने अपने वजीर आधार सिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे पर वजीर अपनी महारानी की गर्दन को काटने तैयार नहीं हुआ जिसके बाद रानी ने स्वयं अपनी कटार निकाली और सीने पर भौक कर आत्म बलिदान के पथ पर आगे बढ़ गई जिसके बाद कहा जाता है कि उनके वजीर और कुछ सैनिकों ने भी आत्म बलिदान दे दिया था।


Conclusion:महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफखां से लड़कर अपनी जान खुद देने से पहले लगातार 15 वर्षों तक मुगलों से डटकर मुकाबला करते हुए शासन किया बांदा जबलपुर मंडला और डिंडोरी के साथ ही महाराष्ट्र के चंद्रपुर तक हर जगह महारानी के गौरवशाली साम्राज्य और उस समय के सबसे बड़े की निशानियां मिलती है वही इनकी शौर्य गाथा की कहानियां हमेशा लोगों को रोमांचित करती हैं जबलपुर के करीब जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था वह स्थान बरेला के पास नरई कहलाता है जो मण्डला मार्ग पर है जहां रानी की समाधि है और यहां आने जाने वाले लोग हमेशा एक एक पत्थर जहां छोड़ जाते हैं और रानी को अपनी श्रद्धाजंली देते है।

बाईट--गिरजा शंकर अग्रवाल,इतिहासकार

( दर्जनों ऐतिहासिक किताबो के लेखक भी हैं)
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