ETV Bharat / state

रोशनी की उम्मीद में कुम्हारों ने शुरू किया पहिया, घरों को रोशन करने के लिए बना रहे दीये - दिवाली से कु्म्हारों को उम्मीद

इंसानी फितरत है कि मुसीबत लाख रोड़े अटकाए लेकिन वह उम्मीदों का दामन नहीं छोड़ता. ऐसा ही कुछ कर रहे हैं मंडला के माटी पुत्र जिन्हें इस सीजन लॉकडाउन के चलते मटके नहीं बिकने पर लाखों का घाटा सहना पड़ा, फिर भी दिवाली में अच्छी कमाई की उम्मीद पर कुम्हारों ने इस साल बारिश के पहले ही दीये बनाने शुरू कर दिए हैं.

potter
उम्मीद में कुम्हार
author img

By

Published : Jun 14, 2020, 1:17 PM IST

Updated : Jun 14, 2020, 1:36 PM IST

मंडला। कहा जाता है कि उम्मीद पर दुनिया कायम है. यही वजह है कि इंसान के फितरत में होता है कि उसके सामने लाख कोशिशें रोड़ा बनकर आ जाएं, लेकिन वो उम्मीद का दामन नहीं छोड़ता है. इसी उम्मीद पर कायम कुम्हार मटकों पर हुए घाटे के बाद अब दीये बनाने में जुट गए हैं. लॉकडाउन के कारण इस साल कुम्हारों के एक भी मटके नहीं बिके, जिस वजह से पहले उन्हें घाटा हुआ. वहीं फिर बिन मौसम बारिश ने बरसकर उनकी पूरी मेहनत को बहा दिया. जिसके बाद अब उन्हें सिर्फ दिवाली से ही उम्मीद है. इसी उम्मीद के सहारे कुम्हार इस साल बारिश के पहले ही दीये बनाने में जुट गए हैं.

उम्मीद में कुम्हार

दूसरों के घरों में चाहे ठंडे पानी की बात हो या उनके घरों को रोशन करने की, कुम्हार की साल भर की आमदनी बस दो ही चीजों पर निर्भर रहती है. एक तो गर्मी के सीजन में बिकने वाले मटके और दूसरा दिवाली में दूसरों के घरों को जगमग करने वाले दीये. लेकिन इस साल कुम्हारों के गले से न तो ठंडा पानी जा रहा है और न ही उनके घर उजियारा है. इसके बावजूद लाखों का घाटा सहने के बाद भी एक बार फिर कुम्हार दूसरों का घर रोशन करने की तैयारी में जुट गए हैं.

ये भी पढ़ें- 'देसी फ्रिज' पर भी लगा कोरोना का ग्रहण, रोजी-रोटी के लिए परेशान हुआ कुम्हार


दिवाली के लिए बना रहे दीये

साल 2020 में दिवाली 14 नवंबर को है, जिसे महज अब करीब 5 महीने ही बचे हैं. हर साल दीये बनाने के लिए तैयारी कुम्हार बमुश्किल महीने भर पहले से करते हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते ऐसा पहली बार हो रहा है कि इतने पहले से कुम्हार माटी गूंथकर चाक के सहारे टिमटिमाती उम्मीद लेकर दीये बनाने में जुट गया है.

potter
दीपक बनाने में जुटे कुम्हार
बरसात में खराब न हो सामान

कुम्हारों ने चैत्र की नवरात्रि के समय से कलश बनाने के साथ ही गर्मी के लिए घड़े बनाने के लिए मिट्टी खरीदी थी, जिसका दाम 350 रुपए से 500 रुपए ट्रॉली तक होता है. लेकिन इस साल के मुख्य सीजन में ही कोरोना ने दस्तक दे दी और समय के साथ ही उनका पहिया भी थम कर रह गया, जिससे खरीदी गई मिट्टी अब बरसात के कारण बह कर बर्बाद हो रही है. वहीं मिट्टी के बनाए बर्तनों को पकाने के लिए मोल ली गयी लकड़ी, कंडे और भूसा भी खुले में रखे होने के कारण चार महीने की बरसात में किसी काम के नहीं रहेगा. ऐसे में इन सब चीजों की बर्बादी रोकने के पांच महीने पहले से ही कुम्हार पूरे परिवार के साथ एक नई उम्मीद लेकर दीये बनाने बैठ गए हैं.

soil
मिट्टी बहने का सता रहा डर

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन ने मिट्टी के बर्तन बेचने वालों की तोड़ी कमर, पेट पालना हुआ मुश्किल

लाखों का हुआ नुकसान

गर्मी का सीजन इन माटीपुत्रों का मुख्य सीजन होता है और हर एक कुम्हार लाखों के घड़े या दूसरे बर्तन बेच लेता हैं, जिससे कि उनके परिवार का साल भर का खर्च चलता है. वहीं बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर हर जरूरत पूरी करने का जरिया इन कुम्हारों के पास बस यही होता है, लेकिन कोरोना ने इनके सामने भविष्य को अंधकार में धकेल दिया. जिन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि आखिर ये चार महीने कैसे निकलेंगे.

potter
खुले में रखा सामान
ये भी पढ़ें- लॉकडाउन में कुम्हारों पर आर्थिक संकट का खतरा, लाखों के मटकों का नहीं कोई ग्राहक


हिंदुओं के लिए दिवाली की पूजा का काफी महत्व है और माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी खुद ही अपने भक्तों को वैभव प्रदान करती हैं. इसलिए लोग अपने घरों में रोशनी करते हैं जिनमें माटी के दीये का खासा महत्व है. इसी बात का ध्यान कर लॉकडाउन में जबरदस्त नुकसान सह चुके इन कलाकारों को अब दिवाली से उम्मीद है. यही वजह है कि ये कुम्हार सोच रहे हैं कि जितनी तेजी से उनकी माटी को आकार देने वाला पहिया घूम रहा है, उतनी ही जल्दी यह समय का पहिया भी घूम जाए और दिवाली का सीजन उनके घरों को भी रोशन कर देे.

मंडला। कहा जाता है कि उम्मीद पर दुनिया कायम है. यही वजह है कि इंसान के फितरत में होता है कि उसके सामने लाख कोशिशें रोड़ा बनकर आ जाएं, लेकिन वो उम्मीद का दामन नहीं छोड़ता है. इसी उम्मीद पर कायम कुम्हार मटकों पर हुए घाटे के बाद अब दीये बनाने में जुट गए हैं. लॉकडाउन के कारण इस साल कुम्हारों के एक भी मटके नहीं बिके, जिस वजह से पहले उन्हें घाटा हुआ. वहीं फिर बिन मौसम बारिश ने बरसकर उनकी पूरी मेहनत को बहा दिया. जिसके बाद अब उन्हें सिर्फ दिवाली से ही उम्मीद है. इसी उम्मीद के सहारे कुम्हार इस साल बारिश के पहले ही दीये बनाने में जुट गए हैं.

उम्मीद में कुम्हार

दूसरों के घरों में चाहे ठंडे पानी की बात हो या उनके घरों को रोशन करने की, कुम्हार की साल भर की आमदनी बस दो ही चीजों पर निर्भर रहती है. एक तो गर्मी के सीजन में बिकने वाले मटके और दूसरा दिवाली में दूसरों के घरों को जगमग करने वाले दीये. लेकिन इस साल कुम्हारों के गले से न तो ठंडा पानी जा रहा है और न ही उनके घर उजियारा है. इसके बावजूद लाखों का घाटा सहने के बाद भी एक बार फिर कुम्हार दूसरों का घर रोशन करने की तैयारी में जुट गए हैं.

ये भी पढ़ें- 'देसी फ्रिज' पर भी लगा कोरोना का ग्रहण, रोजी-रोटी के लिए परेशान हुआ कुम्हार


दिवाली के लिए बना रहे दीये

साल 2020 में दिवाली 14 नवंबर को है, जिसे महज अब करीब 5 महीने ही बचे हैं. हर साल दीये बनाने के लिए तैयारी कुम्हार बमुश्किल महीने भर पहले से करते हैं, लेकिन लॉकडाउन के चलते ऐसा पहली बार हो रहा है कि इतने पहले से कुम्हार माटी गूंथकर चाक के सहारे टिमटिमाती उम्मीद लेकर दीये बनाने में जुट गया है.

potter
दीपक बनाने में जुटे कुम्हार
बरसात में खराब न हो सामान

कुम्हारों ने चैत्र की नवरात्रि के समय से कलश बनाने के साथ ही गर्मी के लिए घड़े बनाने के लिए मिट्टी खरीदी थी, जिसका दाम 350 रुपए से 500 रुपए ट्रॉली तक होता है. लेकिन इस साल के मुख्य सीजन में ही कोरोना ने दस्तक दे दी और समय के साथ ही उनका पहिया भी थम कर रह गया, जिससे खरीदी गई मिट्टी अब बरसात के कारण बह कर बर्बाद हो रही है. वहीं मिट्टी के बनाए बर्तनों को पकाने के लिए मोल ली गयी लकड़ी, कंडे और भूसा भी खुले में रखे होने के कारण चार महीने की बरसात में किसी काम के नहीं रहेगा. ऐसे में इन सब चीजों की बर्बादी रोकने के पांच महीने पहले से ही कुम्हार पूरे परिवार के साथ एक नई उम्मीद लेकर दीये बनाने बैठ गए हैं.

soil
मिट्टी बहने का सता रहा डर

ये भी पढ़ें- लॉकडाउन ने मिट्टी के बर्तन बेचने वालों की तोड़ी कमर, पेट पालना हुआ मुश्किल

लाखों का हुआ नुकसान

गर्मी का सीजन इन माटीपुत्रों का मुख्य सीजन होता है और हर एक कुम्हार लाखों के घड़े या दूसरे बर्तन बेच लेता हैं, जिससे कि उनके परिवार का साल भर का खर्च चलता है. वहीं बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर हर जरूरत पूरी करने का जरिया इन कुम्हारों के पास बस यही होता है, लेकिन कोरोना ने इनके सामने भविष्य को अंधकार में धकेल दिया. जिन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि आखिर ये चार महीने कैसे निकलेंगे.

potter
खुले में रखा सामान
ये भी पढ़ें- लॉकडाउन में कुम्हारों पर आर्थिक संकट का खतरा, लाखों के मटकों का नहीं कोई ग्राहक


हिंदुओं के लिए दिवाली की पूजा का काफी महत्व है और माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी खुद ही अपने भक्तों को वैभव प्रदान करती हैं. इसलिए लोग अपने घरों में रोशनी करते हैं जिनमें माटी के दीये का खासा महत्व है. इसी बात का ध्यान कर लॉकडाउन में जबरदस्त नुकसान सह चुके इन कलाकारों को अब दिवाली से उम्मीद है. यही वजह है कि ये कुम्हार सोच रहे हैं कि जितनी तेजी से उनकी माटी को आकार देने वाला पहिया घूम रहा है, उतनी ही जल्दी यह समय का पहिया भी घूम जाए और दिवाली का सीजन उनके घरों को भी रोशन कर देे.

Last Updated : Jun 14, 2020, 1:36 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.