मण्डला। जिले की छोटी छुकछुक गाड़ी का इतिहास एक सदी से ज्यादा पुराना है. यहां का नैनपुर रेल जंक्शन एशिया के सबसे बड़े नैरोगेज के रूप में जाना जाता है. 1903 में अंग्रेजों ने वन संपदाओं के दोहन और खुद की यात्रा के लिए छोटी रेल लाइन की शुरुआत की थी. बाद में आम लोगों के यातायात का ये साधन बनी और नैनपुर को जबलपुर, बालाघाट, गोंदिया, सिवनी होते हुए छिंदवाड़ा से जोड़ने का काम करती रही, लेकिन 3 सालों पहले इसे बंद कर दिया गया.
अब यहां जबलपुर से चिरईडोंगरी तक ब्रॉडगेज पर ट्रेनें चल रही हैं, लेकिन स्टीम इंजन से लेकर छोटी लाइन के डीजल इंजन तक के इतिहास को नैनपुर में म्यूजियम के जरिए सहेजने का काम किया जा रहा है. यहां आकर लोग छोटी रेलगाड़ी की यादों से रूबरू हो सकते हैं, साथ ही छोटी लाइन का सफर भी कर सकते हैं.
छोटी लाइन का इतिहास
छोटी लाइन की शुरुआत गोंदिया से नैनपुर रेल 13 अप्रेल 1903 में हुई. फिर1904 में नैनपुर से छिंदवाड़ा, 1905 में छिंदवाड़ा-नैनपुर-जबलपुर लाइन,1906-1907 छिंदवाड़ा-पेंच कोल्डफील्ड लाइन,1909 में नैनपुर-मण्डला फोर्ट लिंक बनाई गई. और आज यह छोटी लाइन एक सदी से अधिक वक्त तक अपनी सेवाएं देने के बाद हमेशा के लिए इतिहास बन गई है.
म्यूजियम का आकर्षण
म्यूजियम में पुराने रेल के डिब्बे, इंग्लैंड से लाई गई लेंथ मशीन, वजनी सामान की धुलाई के कंपार्टमेंट, पुरानी सिग्नल तकनीक से लेकर हरेक चीज रखी गई है, वहीं पुराने ब्रिज और रेलवे स्टेशनों को भी छायाचित्रों के माध्यम से दिखाया गया है, जिसे 10 रुपए का टिकट लेकर देखा जा सकता है. साथ ही इतनी ही टिकट से छुकछुक गाड़ी पर सवार होकर घूमा भी जा सकता है.
एशिया के सबसे बड़े नैरोगेज जंक्शन के साथ ही बंगाल नागपुर रेलवे का फोकल पॉइंट होने के चलते नैनपुर में न केवल म्यूजियम बनाया जा रहा है, बल्कि जबलपुर, नैनपुर, कान्हा (चिरई डोंगरी) तक सप्ताह में एक बार हैरिटेज नैरोगेज ट्रेन संचालन की भी योजना है.