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सुनहरे इतिहास से रू-ब-रू करा रहा नैनपुर नैरोगेज म्यूजियम, संजोई गई हैं छोटी लाइन की यादें

नैनपुर में म्यूजियम के जरिये छोटी लाइन की यादों को सहेजा जा रहा है. यहां स्टीम इंजन से लेकर डीजल इंजन तक का इतिहास संजोया गया है.

छोटी लाइन का इतिहास
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Published : Jul 30, 2019, 3:26 PM IST

मण्डला। जिले की छोटी छुकछुक गाड़ी का इतिहास एक सदी से ज्यादा पुराना है. यहां का नैनपुर रेल जंक्शन एशिया के सबसे बड़े नैरोगेज के रूप में जाना जाता है. 1903 में अंग्रेजों ने वन संपदाओं के दोहन और खुद की यात्रा के लिए छोटी रेल लाइन की शुरुआत की थी. बाद में आम लोगों के यातायात का ये साधन बनी और नैनपुर को जबलपुर, बालाघाट, गोंदिया, सिवनी होते हुए छिंदवाड़ा से जोड़ने का काम करती रही, लेकिन 3 सालों पहले इसे बंद कर दिया गया.
अब यहां जबलपुर से चिरईडोंगरी तक ब्रॉडगेज पर ट्रेनें चल रही हैं, लेकिन स्टीम इंजन से लेकर छोटी लाइन के डीजल इंजन तक के इतिहास को नैनपुर में म्यूजियम के जरिए सहेजने का काम किया जा रहा है. यहां आकर लोग छोटी रेलगाड़ी की यादों से रूबरू हो सकते हैं, साथ ही छोटी लाइन का सफर भी कर सकते हैं.

नैनपुर में म्यूजियम के जरिये छोटी लाइन की यादों को सहेजा जा रहा है


छोटी लाइन का इतिहास
छोटी लाइन की शुरुआत गोंदिया से नैनपुर रेल 13 अप्रेल 1903 में हुई. फिर1904 में नैनपुर से छिंदवाड़ा, 1905 में छिंदवाड़ा-नैनपुर-जबलपुर लाइन,1906-1907 छिंदवाड़ा-पेंच कोल्डफील्ड लाइन,1909 में नैनपुर-मण्डला फोर्ट लिंक बनाई गई. और आज यह छोटी लाइन एक सदी से अधिक वक्त तक अपनी सेवाएं देने के बाद हमेशा के लिए इतिहास बन गई है.

म्यूजियम का आकर्षण
म्यूजियम में पुराने रेल के डिब्बे, इंग्लैंड से लाई गई लेंथ मशीन, वजनी सामान की धुलाई के कंपार्टमेंट, पुरानी सिग्नल तकनीक से लेकर हरेक चीज रखी गई है, वहीं पुराने ब्रिज और रेलवे स्टेशनों को भी छायाचित्रों के माध्यम से दिखाया गया है, जिसे 10 रुपए का टिकट लेकर देखा जा सकता है. साथ ही इतनी ही टिकट से छुकछुक गाड़ी पर सवार होकर घूमा भी जा सकता है.
एशिया के सबसे बड़े नैरोगेज जंक्शन के साथ ही बंगाल नागपुर रेलवे का फोकल पॉइंट होने के चलते नैनपुर में न केवल म्यूजियम बनाया जा रहा है, बल्कि जबलपुर, नैनपुर, कान्हा (चिरई डोंगरी) तक सप्ताह में एक बार हैरिटेज नैरोगेज ट्रेन संचालन की भी योजना है.

मण्डला। जिले की छोटी छुकछुक गाड़ी का इतिहास एक सदी से ज्यादा पुराना है. यहां का नैनपुर रेल जंक्शन एशिया के सबसे बड़े नैरोगेज के रूप में जाना जाता है. 1903 में अंग्रेजों ने वन संपदाओं के दोहन और खुद की यात्रा के लिए छोटी रेल लाइन की शुरुआत की थी. बाद में आम लोगों के यातायात का ये साधन बनी और नैनपुर को जबलपुर, बालाघाट, गोंदिया, सिवनी होते हुए छिंदवाड़ा से जोड़ने का काम करती रही, लेकिन 3 सालों पहले इसे बंद कर दिया गया.
अब यहां जबलपुर से चिरईडोंगरी तक ब्रॉडगेज पर ट्रेनें चल रही हैं, लेकिन स्टीम इंजन से लेकर छोटी लाइन के डीजल इंजन तक के इतिहास को नैनपुर में म्यूजियम के जरिए सहेजने का काम किया जा रहा है. यहां आकर लोग छोटी रेलगाड़ी की यादों से रूबरू हो सकते हैं, साथ ही छोटी लाइन का सफर भी कर सकते हैं.

नैनपुर में म्यूजियम के जरिये छोटी लाइन की यादों को सहेजा जा रहा है


छोटी लाइन का इतिहास
छोटी लाइन की शुरुआत गोंदिया से नैनपुर रेल 13 अप्रेल 1903 में हुई. फिर1904 में नैनपुर से छिंदवाड़ा, 1905 में छिंदवाड़ा-नैनपुर-जबलपुर लाइन,1906-1907 छिंदवाड़ा-पेंच कोल्डफील्ड लाइन,1909 में नैनपुर-मण्डला फोर्ट लिंक बनाई गई. और आज यह छोटी लाइन एक सदी से अधिक वक्त तक अपनी सेवाएं देने के बाद हमेशा के लिए इतिहास बन गई है.

म्यूजियम का आकर्षण
म्यूजियम में पुराने रेल के डिब्बे, इंग्लैंड से लाई गई लेंथ मशीन, वजनी सामान की धुलाई के कंपार्टमेंट, पुरानी सिग्नल तकनीक से लेकर हरेक चीज रखी गई है, वहीं पुराने ब्रिज और रेलवे स्टेशनों को भी छायाचित्रों के माध्यम से दिखाया गया है, जिसे 10 रुपए का टिकट लेकर देखा जा सकता है. साथ ही इतनी ही टिकट से छुकछुक गाड़ी पर सवार होकर घूमा भी जा सकता है.
एशिया के सबसे बड़े नैरोगेज जंक्शन के साथ ही बंगाल नागपुर रेलवे का फोकल पॉइंट होने के चलते नैनपुर में न केवल म्यूजियम बनाया जा रहा है, बल्कि जबलपुर, नैनपुर, कान्हा (चिरई डोंगरी) तक सप्ताह में एक बार हैरिटेज नैरोगेज ट्रेन संचालन की भी योजना है.

Intro:मण्डला जिले में छोटी छुकछुक गाड़ी का इतिहास एक सदी से ज्यादा पुराना है यहाँ अंग्रेजी हुकूमत ने 1903 में अपनी सुविधा के साथ ही वन संपदा के दोहन के लिए छोटी लाइन बिछाई थी जो बीते तीन सालों से अमान परिवर्तन के चलते हमेसा के लिए बंद हो गयी,यहाँ अब जबलपुर से चिरई डोंगरी तक बड़ी रेल गाड़ी चल रही लेकिन स्टीम इंजन से लेकर छोटी लाइन के डीजल इंजन तक के इतिहास को नैनपुर में म्यूजियम के जरिये सहेजा जा रहा है


Body:मण्डला जिले का नैनपुर रेल जंक्शन एशिया के सबसे बड़े नैरोगेज के रूप में जाना जाता है जहां 1903 में अंग्रेजों ने वन संपदाओं के दोहन और खुद की यात्रा के लिए छोटी रेल लाइन की शुरुआत की थी जो बाद में जनता के आवागमन का साधन बनी और नैनपुर को जबलपुर,बालाघाट होते हुए गोंदिया,सिवनी होते हुए छिंदवाड़ा से जोड़ने का काम करती रही जिसे विगत तीन सालों से बंद कर दिया गया और इसके अमान परिवर्तन का काम जारी है लेकिन छोटी लाइन की यादों को नैनपुर में बनाए गए एक म्यूजियम के द्वारा संजोया गया है और यहाँ आकर छोटी रेलगाड़ी को चाहने वाले न केवल इन यादों से रूबरू हो सकते हैं बल्कि छोटी लाइन का सफर भी कर सकते हैं,यहाँ बात करें यदी छोटी लाइन की शुरुआत की तो गोंदिया से नैनपुर रेल 13 अप्रेल 1903,नैनपुर से छिंदवाड़ा 1904,,छिंदवाड़ा से नैनपुर,जबलपुर 1905,छिंदवाड़ा, पेंच,कोल्डफील्ड लाइन1906-1907,नैनपुर-मण्डला फोर्ट लिंक 1909 में शुरू हुई थी जो एक सदी से अधिक वक्त तक अपनी सेवाएं देने के बाद छोटी लाइन हमेसा के लिए इतिहास बन गईं।लेकिन नैनपुर के इस म्यूजियम में पहुँच कर स्टीम से लेकर डीजल इंजन और इसके साथ ही उस हर एक चीज से रूबरू हुआ जा सकता है जिन से छोटी लाइन की छुकछुक जुड़ी हुई थी,यहाँ पुराने रेल के डिब्बे,इंग्लैंड से लाई गई लेथ मशीन,बजनी समान धुलाई के कंपार्टमेंट, पुरानी सिग्नल तकनीक से लेकर हर एक चीज रखी गयी हैं वही,पुराने ब्रिज और रेलवे के स्टेशनों को भी छाया चित्रों के माद्यम से दिखया गया है,जिसे 10 रुपए की टिकट लेकर देखा जा सकता है साथ ही इतनी ही टिकट से छुक छुक गाड़ी पर सवार होकर घूमा भी जा सकता है


Conclusion:एशिया के सबसे बड़े नैरोगेज जंक्शन के साथ ही बंगाल नागपुर रेल्वे का फोकल पॉइंट होने के चलते नैनपुर में न केवल म्यूजियम बनाया जा रहा बल्कि, जबलपुर,नैनपुर,कान्हा(चिरई डोंगरी) तक सप्ताह में एक बार हैरिटेज नैरोगेज ट्रेन संचालन की भी योजना है जिसमे इतिहास से जुडी सभी चीजें इस ट्रेन में होंगी बहरहाल नैनपुर का यह म्यूजियम हर उम्र के शैलानियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है।
बाईट--तेजस्विनी तिवारी,नन्ही दर्शक
बाईट--नितिन नेमा,दर्शक
बाईट--अनुराग उपाध्याय, लोको पायलट,रेल्वे
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