मंडला। भारत में जब भी गौड़ साम्राज्य की बात की जाती है, तो मंडला का जिक्र आना जरूरी है. यह वही गण मंडला है, जिसे रानी दुर्गावती के वंशजों ने बनाया था. वे जबलपुर से मंडला गए थे और मंडला को उन्होंने राजधानी बनाया था. किसी समय में गढ़ मंडला पूरे मध्य भारत की राजधानी बन गया था. हालांकि आज यह प्रदेश के कुछ अपेक्षित जिलों में शामिल है.
मंडला विधानसभा का सियासी समीकरण: 2018 के चुनाव में मंडला विधानसभा बीजेपी के देव सिंह सैयाम ने जीती थी. देव सिंह ने कांग्रेस के डॉ संजीव ऊईके को 12000 वोट से हराया था. इस बार भी ऐसा लग रहा है की विधानसभा चुनाव 2023 के लिए भी कांग्रेस और भाजपा से इन दोनों के बीच ही मुकाबला होगा. लेकिन कांग्रेस से रिटायर्ड डीआईजी नर्मदा वरकडे भी तैयारी कर रहे हैं. रंजीत उईके भी प्रचार प्रसार में लगे हुए हैं, लेकिन सबसे मजबूत दावेदारी संजीव ऊईके की ही नजर आ रही है.
वहीं भारतीय जनता पार्टी में भी देव सिंह सैयाम के अलावा शिवराज शाह भी तैयारी कर रहे हैं. शिवराज शाह एक जनवादी नेता हैं और जनता की जरूरत के लिए अपनी ही सरकार के खिलाफ आंदोलन करने के लिए मशहूर थे, लेकिन देव सिंह अपनी ठेठ आदिवासी ग्रामीण छवि की वजह से चुनाव जीतते रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के अलावा मंडला विधानसभा से गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी पूरी तैयारी में है. उनके उम्मीदवार इंजीनियर कमलेश तेकाम तैयारी कर रहे हैं. कमलेश तेकाम इस समय मंडला जिला पंचायत के उपाध्यक्ष हैं. वह मंडल की राजनीति में खासा दखल रखते हैं. हालांकि 2018 की विधानसभा में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के विधायक को मात्र 16000 वोट ही मिले थे.
फगगन सिंह कुलस्ते: मंडल की राजनीति बिना फग्गन सिंह कुलस्ते की पूरी नहीं होती. फग्गन सिंह कुलस्ते मंडला लोकसभा से बीते 35 सालों से नेतृत्व कर रहे हैं. इसलिए उनका कद भारतीय जनता पार्टी में काफी ऊंचा है. इसी के चलते बीते दिनों देश के गृहमंत्री अमित शाह को जन आशीर्वाद यात्रा की शुरुआत करने के लिए मंडल को चुना गया था, लेकिन मंडला की जनता अब धीरे-धीरे फगन सिंह कुलस्ते से भी बोर हो गई है, क्योंकि मंडला में इस बात की चर्चा भी जोर शोर से है कि फगगन सिंह ने अपने अलावा मंडला का कोई विकास नहीं किया.
मंडला का आर्थिक समीकरण: मंडला जिला कान्हा राष्ट्रीय उद्यान की वजह से पूरे भारत में जाना जाता है. यहां के बाघ देखने के लिए भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बड़े पैमाने पर पर्यटक मंडल पहुंचते हैं. लेकिन सरकार की ओर से इस व्यापार का पैमाना बड़ा करने कोई ओर खास कदम नहीं उठाए गए. मंडला में 9 महीने खुद ब खुद पर्यटक जंगल घूमने आते हैं. इसकी वजह से मंडला के आसपास होटल इंडस्ट्री से जुड़े हुए कामकाज में लोगों को रोजगार मिला है, लेकिन यह कारोबार केवल 9 महीने चलता है. बरसात के तीन महीने में जब कोर एरिया में पर्यटकों की एंट्री बंद कर दी जाती है. तो पर्यटन उद्योग से जुड़े हुए हजारों लोग मंडला में बेरोजगार हो जाते हैं. इसको लेकर सरकार ने कोई बहुत प्रयास नहीं किया.
सामान्य सीट करने की मांग: यूं तो मंडला विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, लेकिन मंडला विधानसभा में आदिवासियों से ज्यादा सामान्य लोग वर्ग के लोगों की आबादी ज्यादा है. इसलिए बीच में इस विधानसभा को सामान्य करने की मांग भी तेजी से उठी थी, लेकिन यह मांग नहीं मानी गई. यहां सामान्य जाति के वोटरों की संख्या ज्यादा होने के साथ ही बड़े संख्या में मुसलमान वोटर भी रहते हैं.
कोई इंडस्ट्री नहीं: मंडला का आम नागरिक रोजगार और व्यापार के लिए खुद को ठगा हुआ महसूस करता है. मंडला में कोई इंडस्ट्री नहीं है. मंडला की आर्थिक गतिविधि आसपास के इलाकों में होने वाले कृषि उत्पादों और उन किसानों की खरीद फरोख्त पर निर्भर है. खेती के अलावा यहां डोलोमाइट की बड़ी खदानें हैं या डोलोमाइट मध्य प्रदेश के बाहर भी निर्यात किया जाता है. इन खदानों की वजह से भी लोगों को रोजगार मिला हुआ है. मंडला के लोगों का कहना है कि यदि डोलोमाइट के इस्तेमाल से कुछ उद्योग व्यापार विकसित किए जाएं तो लोगों को रोजगार मिल सकता है. वहीं मंडला की नर्मदा और बंजारा नदी में रेत की कई बड़ी खदानें हैं. रेट का वैध और अवैध कारोबार बड़े पैमाने पर होता है इससे भी मंडल की आर्थिक गतिविधि चलती है.
पलायन की समस्या: आदिवासियों के पलायन की समस्या मंडला में साल भर लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता. इस वजह से मंडला के आदिवासी केरल, नागपुर और बड़े शहरों का रुख करते हैं. एक अनुमान के अनुसार मंडला में एक लाख से ज्यादा लोग पलायन करते हैं. कुछ साल पहले ही मंडला को रेलवे लाइन से जोड़ा गया था, लेकिन अभी तक मंडला के लिए दो पैसेंजर और एक एक्सप्रेस ट्रेन ही मिल पाई हैं.
सिंचाई स्वास्थ्य जैसी बुनियादी समस्याएं: मंडला विधानसभा के विकास के लिए सरकार को सिंचाई परियोजनाओं पर ध्यान देना होगा. कृषि आधारित उद्योगों को विकसित किया जाए, तो मंडला के आदिवासियों के पलायन की समस्या को रोका जा सकता है. वहीं मंडला में स्वास्थ्य की स्थिति भी बहुत गड़बड़ है. यहां मेडिकल कॉलेज खोलने की चर्चा है, लेकिन अभी सरकारी अस्पताल में ही 27 डॉक्टरों की पोस्ट होने के बाद भी मात्र 12 डॉक्टर ही सेवाएं दे रहे हैं. उनमें से ड्यूटी पर एक दो ही मिल पाते हैं. इस आदिवासी इलाके में भी भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर बहुत तेजी से काम कर रहा है. 2023 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को यह सीट दोबारा से निकलना बहुत आसान नजर नहीं आ रहा है.