मण्डला। जब तक कुपोषण रहेगा देश आगे नहीं बढ़ेगा, ऐसे में अगर देश का दिल मध्य प्रदेश ही कुपोषण का शिकार हो तो देश कैसे कुपोषण मुक्त होगा. मध्य प्रदेश के लिए कुपोषण आज भी एक कलंक बना हुआ है, प्रदेश की मौजूदा कमलनाथ सरकार कुपोषण दूर करने के लिए अभियान चलाना का दावा कर रही है, लेकिन मण्डला जिले में कुपोषण की स्थिति सरकार के इस दावे की पोल खोल रही है. जिले में अब भी सौ में से 17 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.
मण्डला जिले में कुल 2304 आंगनवाड़ी हैं. जिनमें 4608 कार्यकर्ता और सहायिकाएं काम करती हैं. जिनकी निगरानी के लिए 78 सुपरवाइजर और 9 ब्लॉक में 9 परियोजना अधिकारी हैं. इन पर जिम्मेदारी है कि 0 से 5 साल के बच्चों को पूरक पोषण आहार खिलाएं. साथ ही उनके स्वास्थ्य की भी नियमित जांच कराई जाए और बीमारियों को लेकर ग्रामीणों को जागरूक करें.
इतने बड़े अमले के बाद भी मण्डला जिले की 17 प्रतिशत आबादी आज भी कुपोषण है, जो की लगातार लाखों रुपये खर्च कर चलाई जा रही सरकारी योजनाओं और जागरूकता अभियान की जमीनी हकीकत को समझाने के लिए काफी है.
कुपोषण के आंकड़े
- जिले में कुल बच्चे--85215 (0-5 साल)
- कुल कुपोषित बच्चे--14489
- अति कुपोषित बच्चे--1170
- कुपोषण का प्रतिशत--17%
- अतिकुपोषित बच्चों का प्रतिशत--1%
जिले में 0-5 साल तक के हर 100 में से कुल 17 बच्चे कुपोषित हैं जबकि 1 बच्चा अतिकुपोषित है, ऐसे में समझा जा सकता है कि सरकारी योजनाओं का जमीनी स्तर पर ठीक से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है.
जब ईटीवी भारत ने स्थिति को लेकर जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी प्रशान्त दीप सिंह ठाकुर से बात की तो उन्होंने इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों तक अवेयरनेस नहीं पहुंचा पाने की बात स्वीकारी. उन्होंने कुपोषण के लिए फ्लोराइड वाले पानी को भी दोषी ठहराया.
विधायक ने माना, नाकाफी है प्रयास
सत्ताधारी दल के विधायक डॉ अशोक मर्सकोले ने तो विभाग की कार्यप्रणाली को ही कटघरे में खड़ा दिया. उन्होंने कहा कि जो भी कार्यक्रम आयोजित होते हैं, वे जिला मुख्यालय में होते हैं, जबकि इन्हें हर गांव की आंगनबाड़ी में किया जाए तो ग्रामीण क्षेत्र में जागरूकता आएगी और कुपोषण कम किया जा सकेगा.