मण्डला| जिले के महाराजपुर में रहने वाले पीएल डोंगरे की 'कूची' के भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोग दिवाने हैं. डोंगरे जब केनवास पर आदिवासी कला के रंग उकेरते हैं तो हर कोई इनकी चित्रकारी की तारीफ करता है.
स्केच हो, पेंसिल आर्ट हो, फेब्रिक या फिर ऑइल पेंट जब भी इन्होंने रंगों को कैनवास पर बिखेरा तो एक ऐसी कलाकृति निकली की उसने डोंगरे का नाम देश-विदेश तक मशहूर कर दिया. पीएल डोंगरे बताते हैं, कि उन्होंने चित्रकला की शुरुआत घर पर ही की है. डोंगरे ने जो भी सीखा अपने पिताजी से सीखा है. समय के साथ उनकी पेंटिंग पहले राज्य और फिर भारत सरकार के द्वारा लगाई जाने वाली कला दीर्घा में लगने लगीं.
पीएल डोंगरे के मुताबिक कोई भी कला मन की कल्पना के सहारे ही जन्म लेती है जब तक मन में किसी चीज को लेकर विचार नहीं आएंगे तब तक उसे मूर्त रूप नही दिया जा सकता. तकनीक के सहारे कला को सिर्फ जिंदा रखा जा सकता है लेकिन जब तक उनमें मन के भाव न मिलें तब तक कोई भी कला अधूरी सी लगती है.