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पीएल डोंगरे की पेटिंग के विदेशों में भी दीवाने हैं लोग, कैनवास पर उकेरते हैं आदिवासी कला का रंग

मण्डला जिले के पीएल डोंगरे की 'कूची' के भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोग दिवाने हैं. जब भी इन्होंने रंगों को कैनवास पर बिखेरा तो एक ऐसी कलाकृति निकली की उसने डोंगरे का नाम देश-विदेश तक मशहूर कर दिया.

पीएल डोंगरे की पेटिंग के विदेशों में भी दीवाने
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Published : May 1, 2019, 5:04 PM IST

मण्डला| जिले के महाराजपुर में रहने वाले पीएल डोंगरे की 'कूची' के भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोग दिवाने हैं. डोंगरे जब केनवास पर आदिवासी कला के रंग उकेरते हैं तो हर कोई इनकी चित्रकारी की तारीफ करता है.

पीएल डोंगरे की पेटिंग के विदेशों में भी दीवाने

स्केच हो, पेंसिल आर्ट हो, फेब्रिक या फिर ऑइल पेंट जब भी इन्होंने रंगों को कैनवास पर बिखेरा तो एक ऐसी कलाकृति निकली की उसने डोंगरे का नाम देश-विदेश तक मशहूर कर दिया. पीएल डोंगरे बताते हैं, कि उन्होंने चित्रकला की शुरुआत घर पर ही की है. डोंगरे ने जो भी सीखा अपने पिताजी से सीखा है. समय के साथ उनकी पेंटिंग पहले राज्य और फिर भारत सरकार के द्वारा लगाई जाने वाली कला दीर्घा में लगने लगीं.

पीएल डोंगरे के मुताबिक कोई भी कला मन की कल्पना के सहारे ही जन्म लेती है जब तक मन में किसी चीज को लेकर विचार नहीं आएंगे तब तक उसे मूर्त रूप नही दिया जा सकता. तकनीक के सहारे कला को सिर्फ जिंदा रखा जा सकता है लेकिन जब तक उनमें मन के भाव न मिलें तब तक कोई भी कला अधूरी सी लगती है.

मण्डला| जिले के महाराजपुर में रहने वाले पीएल डोंगरे की 'कूची' के भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोग दिवाने हैं. डोंगरे जब केनवास पर आदिवासी कला के रंग उकेरते हैं तो हर कोई इनकी चित्रकारी की तारीफ करता है.

पीएल डोंगरे की पेटिंग के विदेशों में भी दीवाने

स्केच हो, पेंसिल आर्ट हो, फेब्रिक या फिर ऑइल पेंट जब भी इन्होंने रंगों को कैनवास पर बिखेरा तो एक ऐसी कलाकृति निकली की उसने डोंगरे का नाम देश-विदेश तक मशहूर कर दिया. पीएल डोंगरे बताते हैं, कि उन्होंने चित्रकला की शुरुआत घर पर ही की है. डोंगरे ने जो भी सीखा अपने पिताजी से सीखा है. समय के साथ उनकी पेंटिंग पहले राज्य और फिर भारत सरकार के द्वारा लगाई जाने वाली कला दीर्घा में लगने लगीं.

पीएल डोंगरे के मुताबिक कोई भी कला मन की कल्पना के सहारे ही जन्म लेती है जब तक मन में किसी चीज को लेकर विचार नहीं आएंगे तब तक उसे मूर्त रूप नही दिया जा सकता. तकनीक के सहारे कला को सिर्फ जिंदा रखा जा सकता है लेकिन जब तक उनमें मन के भाव न मिलें तब तक कोई भी कला अधूरी सी लगती है.

Intro:मण्डला के उपनगरीय क्षेत्र महारापुर में रहने वाले पी एल डोंगरे की कूची के भारत देश के साथ ही विदेशी मेहमान भी कायल हैं जब ये केनवास पर आदिवासी कला के रंग उकेरते हैं तो हर कोई इनकी चित्रकारी की तरीफ करते नहीं थकता


Body:पी एल डोंगरे को देश विदेश में पहचान दिलाई है इनकी चित्रकारी ने स्केच हो पेंसिल आर्ट हो या फिर फेब्रिक या आइल पेंट जब भी इन्होंने रंगों को कैनवास पर बिखेरा तो एक ऐसी कलाकृति निकली की उसने डोंगरे का नाम देश विदेश तक मशहूर कर दिया,पी एल डोंगरे बताते है कि चित्रकला की शुरुआत घर पर ही जब वे आठ साल के थे तब से हुई जो भी सीखा पिताजी ने सिखाया जिसके बाद समय के साथ उनकी पेंटिंग पहले राज्य और फिर भारत सरकार के द्वारा लगाई जाने वाली कला दीर्घा में लगने लगीं जहाँ से उनकी पेंटिंग के करददान विदेशी मेहमान भी बने और अमेरिका ऑस्ट्रेलिया ब्राजील जैसे और भी देशों उनकी इंडियन आर्ट के नाम पर उनकी पेंटिंग खरीदी गयीं


Conclusion:पी एल डोंगरे के अनुसार कोई भी कला मन की कल्पना के सहारे ही जन्म लेती है जब तक मन मे किसी चीज को लेकर विचार नहीं आएंगे तब तक उसे मूर्त रूप नही दिया जा सकता,तकनीक के सहारे कला को सिर्फ जिंदा रखा जा सकता है लेकिन जब तक उनमें मन के भाव न मिलें तब तक कोई भी कला अशूरी सी लगती है,पी एल डोंगरे पेशे से दर्जी भी हैं और इसी पेशे से वो रिटायर्ड भी है जो आज मण्डला की युवा तरुणाई को अपनी कला का दान तो देना चाहते हैं लेकिन मध्यप्रदेश सरकार से हर महीने डेढ़ हजार रुपया वजीफा पाने वाले को वो शागिर्द अब तक न मिला जो उनकी विरासत को आगे ले जाए।

बाईट पी एल डोंगरे,संम्मान प्राप्त चित्रकार
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