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मजबूरी और सरकारी उदासीनता के चलते बढ़ रही भिक्षावृत्ति, कारगर नहीं सरकारी योजनाएं - एमपी में तेजी से बढ़ रहे भिखारी

बाजार हों या फिर धार्मिक स्थान, चाहे पवित्र नदियों के घाट हों या अन्य कोई स्थान. आज हर जगह बड़ी संख्या में लोग भिक्षावृत्ति करते हुए मिल रहे हैं. लॉकडाउन के बाद से इनकी संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है. बड़ा सवाल यह है कि, जब सरकार ने गरीबों और असहाय लोगों के लिए राशन- पानी से लेकर हर चीज की व्यवस्था की है, तो फिर भिक्षावृत्ति क्यों बढ़ रही है. इसी मुद्दे पर मंडला से देखिए ईटीवी भारत की यह खास रिपोर्ट.

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मंडला न्यूज
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Published : Jul 21, 2020, 12:43 PM IST

मंडला। इसमें कोई शक नहीं कि, कोरोना वायरस दुनिया के लिए काल बनकर आया है. इस वायरस की वजह से हजारों लोग असमय ही काल के गाल में समा गए. कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया. लॉकडाउन से पूरा देश थम सा गया. कामकाज ठप हो गए. जिसका सबसे ज्यादा असर गरीबों पर हुआ. हालांकि सरकार ने गरीबों के लिए राशन- पानी से लेकर हर चीज की व्ययवस्था करने का दावा किया, लेकिन अचानक लगे लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में लोग भुखमरी के शिकार भी हुए. इनमें वो असहाय लोग भी शामिल हैं, जो दिव्यांगता, परिवारिक या सामजिक कारणों से भीख मांगने को मजबूर हो गए. जिसका एक नजारा इन दिनों मंडला में नर्मदा घाटों पर देखने को मिलता है.

मजबूरी और सरकारी उदासीनता के चलते बढ़ रही भिक्षावृत्ति

स्थानीय लोगों का कहना है कि, लॉकडाउन के बाद ही यहां भिक्षावृत्ति करने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है. जिनमें बच्चे तक शामिल हैं. लॉकडाउन के समय जब हर जगह सूनापन था. तब यहां भिखारी कम ही नजर आए. लेकिन अनलॉक के बाद से एक बार फिर से भिक्षावृत्ति करते हुए लोग नज़र आने लगे हैं.

मजबूरी के चलते भीख मांगने को मजबूर बुजुर्ग

नर्मदा के घाटों पर भिक्षा मांगने वालों में सबसे ज्यादा संख्या बुजुर्गों की है. हालांकि उनका कहना है कि, कोई सहारा न होने की वजह से वे मजबूरी में भिक्षा मांगते हैं. लॉकडाउन का वक्त तो उनके लिए मुसीबतों में गुजरा, जहां वे एक-एक पैसे को मोहताज रहे. इनमें से कई बुजुगों के पास सिर छिपाने के लिए छत तक नहीं है. यही वजह है कि, स्याह रात काटने के लिए नर्मदा घाटों के किनारे लगे टीन के शेड इनका घर हैं. दो पोटलियों में सारी जरूरतों का सामान रखकर ये मजबूरी में भीख मांगते हैं.

बड़ा सवाल यह है कि, आखिर भीख मांगने वाले इन बुजुर्गों को शासन की योजनाओं का लाभ क्यों नहीं मिलता. इसकी भी एक बड़ी वजह सरकारी उदासीनता ही है. जहां कई लोगों पेंशन कार्ड नहीं बने, तो किसी का राशन कार्ड नहीं बना, यही वजह है कि, तरह-तरह की परेशानियों में उलझे ये लोग भीख मांगने को मजबूर हैं.

कुछ लोगों ने भीख मांगने को बनाया धंधा

हालांकि कुछ लोगों ने भीख मांगने का धंधा शुरू कर दिया है. पूरे देश मे बड़ी संख्या में इस तरह के गिरोह सक्रिय हैं, जो बच्चों से भीख मंगवाते हैं. जबकि कुछ लोग अपनी छोटी सी कमजोरी जरिए बनाकर भीख मांगते हैं. इसलिए जरुरी है कि, प्रशासन को ऐसे लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए.

प्रशासन के पास नहीं हैं भिखारियों के आंकड़े

समाज में भिखारियों की बड़ी संख्या है, लेकिन कोई क्यों दूसरे के सामने हाथ फैलाता है. इसका जवाब किसी के पास नहीं है. मंडला शहर में भिखारियों की बढ़ती संख्या के मामले में जब समाजिक न्याय विभाग के प्रभारी एसएस मरावी से बात करनी चाही, तो उनके लिए तो भिखारी ऐसी जमात हैं, जिस पर वो चर्चा करना ही नहीं चाहते. उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी कहने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि, अब भिखारियों के लिए कौन सी योजना बना सकते हैं. इनका आंकड़ा रखना आज तक जरूरी ही नहीं लगा. हालांकि सामाजिक कार्यकर्ता अर्चना जैन कहती है कि, भीख मांगने के लिए बुजुर्गों की मजबूरी तो समझ में आती है. लेकिन कुछ लोगों ने भीख मांगना अपना धंधा बना लिया है. इसलिए ऐसे लोगों पर कार्रवाई होनी. जबकि मजबूरों के लिए कोई अच्छा कदम जरुर उठाना चाहिए.

बड़ा सवाल यही है कि, भिक्षावृत्ति कुछ लोगों की मजबूरी जरूर हो सकती है, लेकिन ये समाज के लिए एक काला धब्बा है, तो वहीं सरकारों के लिए उनकी योजनाओं की नाकामी, प्रशासन के लिए उनकी असफलताओं का प्रतीक. जब तक शासन- प्रशासन के साथ आम लोग मिल कर समाज पर लगे इस कलंक को मिटाने के लिए आगे नहीं आएंगे, तब तक ये भिक्षावृत्ति का सिलसिला जारी रहेगा.

मंडला। इसमें कोई शक नहीं कि, कोरोना वायरस दुनिया के लिए काल बनकर आया है. इस वायरस की वजह से हजारों लोग असमय ही काल के गाल में समा गए. कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में लॉकडाउन लगाया गया. लॉकडाउन से पूरा देश थम सा गया. कामकाज ठप हो गए. जिसका सबसे ज्यादा असर गरीबों पर हुआ. हालांकि सरकार ने गरीबों के लिए राशन- पानी से लेकर हर चीज की व्ययवस्था करने का दावा किया, लेकिन अचानक लगे लॉकडाउन की वजह से बड़ी संख्या में लोग भुखमरी के शिकार भी हुए. इनमें वो असहाय लोग भी शामिल हैं, जो दिव्यांगता, परिवारिक या सामजिक कारणों से भीख मांगने को मजबूर हो गए. जिसका एक नजारा इन दिनों मंडला में नर्मदा घाटों पर देखने को मिलता है.

मजबूरी और सरकारी उदासीनता के चलते बढ़ रही भिक्षावृत्ति

स्थानीय लोगों का कहना है कि, लॉकडाउन के बाद ही यहां भिक्षावृत्ति करने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हुआ है. जिनमें बच्चे तक शामिल हैं. लॉकडाउन के समय जब हर जगह सूनापन था. तब यहां भिखारी कम ही नजर आए. लेकिन अनलॉक के बाद से एक बार फिर से भिक्षावृत्ति करते हुए लोग नज़र आने लगे हैं.

मजबूरी के चलते भीख मांगने को मजबूर बुजुर्ग

नर्मदा के घाटों पर भिक्षा मांगने वालों में सबसे ज्यादा संख्या बुजुर्गों की है. हालांकि उनका कहना है कि, कोई सहारा न होने की वजह से वे मजबूरी में भिक्षा मांगते हैं. लॉकडाउन का वक्त तो उनके लिए मुसीबतों में गुजरा, जहां वे एक-एक पैसे को मोहताज रहे. इनमें से कई बुजुगों के पास सिर छिपाने के लिए छत तक नहीं है. यही वजह है कि, स्याह रात काटने के लिए नर्मदा घाटों के किनारे लगे टीन के शेड इनका घर हैं. दो पोटलियों में सारी जरूरतों का सामान रखकर ये मजबूरी में भीख मांगते हैं.

बड़ा सवाल यह है कि, आखिर भीख मांगने वाले इन बुजुर्गों को शासन की योजनाओं का लाभ क्यों नहीं मिलता. इसकी भी एक बड़ी वजह सरकारी उदासीनता ही है. जहां कई लोगों पेंशन कार्ड नहीं बने, तो किसी का राशन कार्ड नहीं बना, यही वजह है कि, तरह-तरह की परेशानियों में उलझे ये लोग भीख मांगने को मजबूर हैं.

कुछ लोगों ने भीख मांगने को बनाया धंधा

हालांकि कुछ लोगों ने भीख मांगने का धंधा शुरू कर दिया है. पूरे देश मे बड़ी संख्या में इस तरह के गिरोह सक्रिय हैं, जो बच्चों से भीख मंगवाते हैं. जबकि कुछ लोग अपनी छोटी सी कमजोरी जरिए बनाकर भीख मांगते हैं. इसलिए जरुरी है कि, प्रशासन को ऐसे लोगों पर कार्रवाई करनी चाहिए.

प्रशासन के पास नहीं हैं भिखारियों के आंकड़े

समाज में भिखारियों की बड़ी संख्या है, लेकिन कोई क्यों दूसरे के सामने हाथ फैलाता है. इसका जवाब किसी के पास नहीं है. मंडला शहर में भिखारियों की बढ़ती संख्या के मामले में जब समाजिक न्याय विभाग के प्रभारी एसएस मरावी से बात करनी चाही, तो उनके लिए तो भिखारी ऐसी जमात हैं, जिस पर वो चर्चा करना ही नहीं चाहते. उन्होंने कैमरे के सामने कुछ भी कहने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि, अब भिखारियों के लिए कौन सी योजना बना सकते हैं. इनका आंकड़ा रखना आज तक जरूरी ही नहीं लगा. हालांकि सामाजिक कार्यकर्ता अर्चना जैन कहती है कि, भीख मांगने के लिए बुजुर्गों की मजबूरी तो समझ में आती है. लेकिन कुछ लोगों ने भीख मांगना अपना धंधा बना लिया है. इसलिए ऐसे लोगों पर कार्रवाई होनी. जबकि मजबूरों के लिए कोई अच्छा कदम जरुर उठाना चाहिए.

बड़ा सवाल यही है कि, भिक्षावृत्ति कुछ लोगों की मजबूरी जरूर हो सकती है, लेकिन ये समाज के लिए एक काला धब्बा है, तो वहीं सरकारों के लिए उनकी योजनाओं की नाकामी, प्रशासन के लिए उनकी असफलताओं का प्रतीक. जब तक शासन- प्रशासन के साथ आम लोग मिल कर समाज पर लगे इस कलंक को मिटाने के लिए आगे नहीं आएंगे, तब तक ये भिक्षावृत्ति का सिलसिला जारी रहेगा.

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