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खुले में शौच जाने को मजबूर बैगा आदिवासी, कागजों में एक साल पहले ही ओडीएफ घोषित है जिला

मंडला जिले के ऐसे कई गांव है जहां आज भी बैगा आदिवासी खुले में शौच जाने को मजबूर है, जबकि एक साल पहले जिला कागजों में ओडीएफ घोषित हो चुका है.

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Published : Oct 1, 2019, 11:57 PM IST

Updated : Oct 7, 2019, 11:01 AM IST

खुले में शौच जाने को मजबूर बैगा आदिवासी

मंडला। प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन के तहत खुले में शौच मुक्त भारत बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कोसो दूर है. मंडला जिले के ऐसे कई गांव है जहां बैगा जनजाति और आदिवासी लोग खुले में शौच जाने के लिए मजबूर हैं.

खुले में शौच जाने को मजबूर बैगा आदिवासी

जिला मुख्यालय से बस 20 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत माधोपुर का मारार टोला गांव हो या फिर 8 किलोमीटर दूर जंतीपुर का कुदई टोला गांव, इन सभी गांवों मे एक ही समानता है. कि यहां ग्रामीण आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. क्योंकि यहां सरकार की तरफ से शौचालय का निर्माण नहीं किया गया और जो किया भी गया वो आधा अधूरा है, वहां शौचालय के निर्माण पर सिर्फ लकड़ी, कंडे और भूसा रखा हुआ है. जिसके चलते महिलाएं, बच्चे खुले में शौच के लिए जाते हैं.

ऐसे ही हालात भंवरदा गांव के है. यहां भी ग्रामीण सालों से खुले में शौच के लिए जाते है. इस बीच कितनी बार महिलाओं को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन आधे अधूरे शौचालय की शिकायत ग्रामीणों के द्वारा जिला प्रशासन से लेकर जनपद पंचायत तक भी कई बार की जा चुकी है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा ही रहा.

वहीं जिला पंचायत की अधिकारी अब भी जांच कर कड़ी कार्रवाई की बात कर रही हैं. खास बात तो ये है कि कि मंडला जिले को ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त जिला एक साल पहले घोषित किया जा चुका है.

क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े-
स्वच्छ एमपी पोर्टल के द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक जिले के 46,292 शौचालय अनुपयोगी पाए गए हैं. जिनका निर्माण अधूरा है और इनमें लकड़ी, कंडे रखे हुए है.
सर्वे के अनुसार अगर बात करें तो

⦁ जिले में कुल घरों की संख्या 2 लाख 2 हजार 639 है. जिनमें से 1 लाख 77 हज़ार 51 घरों का सत्यापन किया गया, जबकि 25 हजार 588 घरों का सत्यापन किया जाना बाकी है, लेकिन1 लाख 77 हजार 51 घरों के सत्यापन में ही 46 हजार 292 शौचालय अनुपयोगी या किसी भी काम के नहीं पाए गए.

क्या हैं कमियां-
बहुत से शौचालय में सीट गायब है, तो किसी में टंकी है ही नहीं, या नहीं लगाई गई. इतना ही नहीं किसी में दरवाजे नहीं है, शौचालय इस हाल में ही नहीं है, कि उनका उपयोग किया जा सके. दूसरी तरफ अगर शौचालय पूरी तरह बन भी गये, तो उनका कनेक्शन ही नहीं हुआ है.

मंडला। प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत मिशन के तहत खुले में शौच मुक्त भारत बनाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही हो, लेकिन जमीनी हकीकत कोसो दूर है. मंडला जिले के ऐसे कई गांव है जहां बैगा जनजाति और आदिवासी लोग खुले में शौच जाने के लिए मजबूर हैं.

खुले में शौच जाने को मजबूर बैगा आदिवासी

जिला मुख्यालय से बस 20 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत माधोपुर का मारार टोला गांव हो या फिर 8 किलोमीटर दूर जंतीपुर का कुदई टोला गांव, इन सभी गांवों मे एक ही समानता है. कि यहां ग्रामीण आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. क्योंकि यहां सरकार की तरफ से शौचालय का निर्माण नहीं किया गया और जो किया भी गया वो आधा अधूरा है, वहां शौचालय के निर्माण पर सिर्फ लकड़ी, कंडे और भूसा रखा हुआ है. जिसके चलते महिलाएं, बच्चे खुले में शौच के लिए जाते हैं.

ऐसे ही हालात भंवरदा गांव के है. यहां भी ग्रामीण सालों से खुले में शौच के लिए जाते है. इस बीच कितनी बार महिलाओं को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन आधे अधूरे शौचालय की शिकायत ग्रामीणों के द्वारा जिला प्रशासन से लेकर जनपद पंचायत तक भी कई बार की जा चुकी है, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा ही रहा.

वहीं जिला पंचायत की अधिकारी अब भी जांच कर कड़ी कार्रवाई की बात कर रही हैं. खास बात तो ये है कि कि मंडला जिले को ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त जिला एक साल पहले घोषित किया जा चुका है.

क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े-
स्वच्छ एमपी पोर्टल के द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक जिले के 46,292 शौचालय अनुपयोगी पाए गए हैं. जिनका निर्माण अधूरा है और इनमें लकड़ी, कंडे रखे हुए है.
सर्वे के अनुसार अगर बात करें तो

⦁ जिले में कुल घरों की संख्या 2 लाख 2 हजार 639 है. जिनमें से 1 लाख 77 हज़ार 51 घरों का सत्यापन किया गया, जबकि 25 हजार 588 घरों का सत्यापन किया जाना बाकी है, लेकिन1 लाख 77 हजार 51 घरों के सत्यापन में ही 46 हजार 292 शौचालय अनुपयोगी या किसी भी काम के नहीं पाए गए.

क्या हैं कमियां-
बहुत से शौचालय में सीट गायब है, तो किसी में टंकी है ही नहीं, या नहीं लगाई गई. इतना ही नहीं किसी में दरवाजे नहीं है, शौचालय इस हाल में ही नहीं है, कि उनका उपयोग किया जा सके. दूसरी तरफ अगर शौचालय पूरी तरह बन भी गये, तो उनका कनेक्शन ही नहीं हुआ है.

Intro:मण्डला जिला मुख्यालय से महज 8 किलोमीटर दूर ग्रामपंचायत जंतीपुर का कूदई टोला जहाँ बैगा जनजाति और आदिवासी निवास करते है लेकिन यहाँ के सभी परिवार आज तक खुले में सौच को जाने के लिए मजबूर है,यहाँ लगभग 2 से 3 साल पहले स्वच्छ भारत मिशन के तहत ग्राम पंचायत के द्वारा लाखों खर्च कर सौचालय बनवाने के दाबे तो किये गए थे लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि इन सौचालय में लकड़ी,कंडे या फिर,भूसा पैरा रखा जा रहा है,ठीक इसी तरह के हालात जंतीपुर ग्रामपंचायत और भँवरदा के भी हैं


Body:मण्डला जिला मुख्यालय से बस 20 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत माधोपुर का गाँव मारार टोला हो या फिर 8 किलोमीटर दूर जंतीपुर का कुदई टोला,या फिर सिवनी रोड पर पड़ने वाला भँवरदा इन सभी गाँवों मे एक ही समानता है कि यहाँ के परिवार आज भी लोटा लेकर खुले में सौच को जाने को मजबूर है,क्योंकि यहाँ सरकार की मदद से बनने वाले सौचालय बने ही नहीं हैं और बने भी हैं तो ये उपयोगी नहीं है जिसके चलते सभी लोग खुले खेत खलिहान या फिर सड़क किनारे सौच को जाने मजबूर हैं जिनमें सबसे ज्यादा फजीहत झेलनी पड़ती है उस आधी आबादी को जो शर्म के बीच लोटा या डब्बा उठाए बीच गाँव से निकलती है और घूँघट से मुँह ढाँक कर खुले में ही सौच को जाती है,जो एक साल पहले मण्डला जिले को मिले ओडीएफ की हकीकत को बयाँ करने के लिए काफी हैं

क्या कहते हैं जिले के सरकारी आँकड़े--

स्वच्छ एम पी पोर्टल के द्वारा कराए गए सर्वे के अनुसार मण्डला जिले के 46292 सौचालय अनुपयोगी पाए गए हैं जो पूर्ण नहीं है या फिर अधूरे हैं और इनमे लोग लकड़ी कंडे रख रहे हैं

सर्वे के अनुसार अगर बात करें तो
* जिले में कुल घरों की संख्या 2 लाख 2हज़ार 639 है,
* जिनमें से 1 लाख 77 हज़ार 51 घरों का सत्यापन किया गया जबकि
* 25 हजार 588 घरों का सत्यापन किया जाना शेष है लेकिन
*1 लाख 77 हज़ार 51 घरों के सत्यापन में ही 46 हजार 292 शौचालय अनुपयोगी या किसी भी काम के नहीं पाए गए।

क्या हैं कमियां--
बहुत से सौचालय में सीट गायब है तो किसी ने टंकी है ही नहीं, या नहीं लगाई गई,तो कहीं दरवाजे नहीं है,छत नहीं या फिर शौचालय इस हाल में ही नहीं है कि उनका उपयोग किया जा सके दूसरी तरफ यदि सौचालय पूरी तरह बन भी गये तो उनका टैंक कम्प्लीट नहीं या फिर कनेक्शन ही नही हुआ है।

कैसे होता है सत्यापन--

बता दें कि शौचालय के सत्यापन की प्रक्रिया शासन के द्वारा काफी कड़ी रखी गई है बनाए गए शौचालयों को पोर्टल में अपडेट करने के लिए हितग्राही की तस्वीर नाम के साथ पोर्टल पर अपडेट की जाती है इसके साथ ही सेटेलाइट से जियो टैगिंग होती है एक शौचालय के निर्माण की पुष्टि के लिए हितग्राही के बाद सरपंच,सचिव, रोजगार सहायक से लेकर सीओ तक के हस्ताक्षर और पुष्टि की जरूरत पड़ती है ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कैसे जिले में इतनी बड़ी संख्या में शौचालयों में गड़बड़ी कर दी गई इसके लिए कहीं न कहीं पूरा सिस्टम ही जिम्मेदार कहा जा सकता है जिसे शायद शौचालय के निर्माण का सत्यापन से ज्यादा जरूरी ओडीएफ का प्रमाण पत्र पाना जरूरी था।


Conclusion:इन आधे अधूरे सौचालय की शिकायत ग्रामीणों के द्वारा जिला प्रशासन से लेकर जनपद पंचायत तक भी कई बार की जा चुकी है लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा ही रहा,कुछ समय समय पर होती भी हैं लेकिन उन सब का नतीजा यही निकला कि आज भी लोग पुरानी परम्परा से बाहर निकल कर सौचालय में सौच की बाट जोह रहे हैं,वहीं जिला पंचायत की अधिकारी अब भी जाँच कर कड़ी कार्यवाही की बात कर रही हैं बता दें कि मण्डला को ओडीएफ याने खुले में सौच मुक्त जिला एक साल पहले घोषित किया जा चुका है।

(बाईट अलग अलग गाँव के ग्रामीणों की है नाम न भी लिखें तो ग्रामीण लिख सकते है)

बाईट--1 वीर सिंह 2 छोटे लाला 3 हल्केराम भारती,4 गणेश 5 पार्वती,ग्रामीण
बाईट-- बल्देव सिंह मार्को,पूर्व सरपंच जंतीपुर
बाईट--तन्वी हुड्डा,जिला पंचायत सीईओ मण्डला
Last Updated : Oct 7, 2019, 11:01 AM IST
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