खरगोन। कोरोना संक्रमण काल के गहरे संकट के बीच अनलॉक- 2 से जिंदगी आहिस्ता-आहिस्ता पटरी पर लौट रही है, लेकिन तमाम कारोबार की हिल चुकी जड़ें अवध क्षेत्र में अब भी नहीं जम पा रही हैं. ऐसा ही हाल खरगोन में हैंडलूम बाजार का है, जो तकरीबन खत्म हो गया है. कोरोना के कहर से धागों की कारीगरी फीकी पड़ गई है. आज हैंडलूम इंडस्ट्री के धागों में उलझे बुनकरों के आगे रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है.
350 बुनकरों के आगे रोजी-रोटी का संकट
खरगोन जिले के कसरावद क्षेत्र में लगभग 350 से ज्यादा बुनकर काम करते थे, लेकिन हैंडलूम बंद होने के चलते परेशान हैं. बुनकर वीरेंद्र बताते हैं कि, आर्थिक संकट खड़ा हो गया है. हालत ये है कि राशन लाने के लिए भी पैसे नहीं है और जो कर्ज लिया हुआ है, अब कर्जदार भी परेशान कर रहे हैं.
हैंडलूम में पसरा सन्नाटा
लॉकडाउन के पहले यहां दिल्ली, मुंबई, भोपाल और इंदौर से व्यापारी आकर बुनकरों के यहां से साड़ी और ड्रेस मटेरियल ले जाते थे. लेकिन अब व्यापारी भी नहीं आ रहे और कच्चा माल भी नहीं मिल रहा. हैंडलूम में भी सन्नाटा पसरा हुआ है और बुनकर भी बेरोजगार हो गए हैं. जिससे बुनकरों की आर्थिक हालात खराब हो गई है. रोजी- रोटी के लिए या तो कोई मजबूरन मनरेगा में काम कर रहा है या किसान के पास खेती. बुनकर सीताराम चौबे का कहना है कि, कोरोना महामारी के बाद लॉकडाउन के बाद से धागे भी मिलने बंद हो गए. जिससे बुनकरों की आर्थिक हालत और ज्यादा खराब हो गई. अपनी रोजी- रोटी के लिए कोई खेत में तो, कोई मनरेगा में मजदूरी करने जा रहा है.
बुनकर हृदयराम अपना दर्द बयां करते हुए कहते है कि, उनके पास 25 से तीस हजार की साड़ियां रखी हैं, जिनमें सात से आठ साड़ियां चूहें कुतर गए हैं. जिनकी लागत 40 हजार रुपए है. हृदयराम ने सरकार से मदद के लिए कुछ राहत पैकेज की गुहर लगाई है. जिससे बुनकरों की रोजी रोटी चल सके.