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मिसाल: दिव्यांग ने 'अपनी आंखों' से दोस्त को दिखाया कलेक्टर ऑफिस

दो दिव्यांग दोस्त अपनी समस्या को लेकर कलेक्टर कार्यालय पहुंचे. कलेक्टर कार्यालय में दोनों दोस्त ने मदद की गुहार लगाई. पैर से दिव्यांग दोस्त अपने नेत्रहीन दोस्त की आंखें बन उसे कलेक्टर कार्यालय लेकर पहुंचा.

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Published : Feb 10, 2021, 6:39 PM IST

Updated : Feb 10, 2021, 7:56 PM IST

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दिव्यांग दोस्त

खरगोन। बचपन में अंधे और लंगड़े की कहानी आप सब ने पढ़ी और सुनी होगी. इस कहानी में अंधे लड़के की आंखें उसका पैर से दिव्यांग दोस्त बनता है और पैर से दिव्यांग दोस्त का पैर उसका अंधा दोस्त बनता है. यह कहानी किताब से बाहर आकर समाज के सामने चरितार्थ हो गई है. कलेक्टर कार्यालय में ऐसे ही दो दोस्त मदद की गुहार लगाने पहुंचे.

दिव्यांग दोस्त

आंखें बनकर दोस्त को पहुंचाया कलेक्टोरेट

दरअसल खरगोन के कलेक्टर कार्यालय में दो दिव्यांग युवक अपनी समस्या को लेकर पहुंचे. यह दोनों युवक कसरावद विकासखंड के पीपलगोन के रहने वाले है. दोनों दोस्तों में से सुनील नेत्रहीन है और उसका दोस्त सुनील गांगले जो की पैर से दिव्यांग है. यह दोनों दोस्त एक ही गांव में रहते है. सुनील नेत्रहीन होने के कारण जिला कलेक्टर कार्यालय नहीं पहुंच सकता था, इसलिए उसके पैर से दिव्यांग दोस्त उसकी आंखें बनकर उसे कलेक्टर कार्यालय लेकर आया.

यह है पूरा मामला

नेत्रहिन सुनील कसरावद के पीपलगोन का रहने वाला है. सुनील की मां अर्धविक्षिप्त है. वहीं उसका भाई बहरा है. तीनों एक छोटे से झोपड़े में रहते है. लेकिन कसरावद तहसीलदार ने झोपड़ा तोड़ने का नोटिस सुनील को दिया है. जिसकी शिकायत करने दिव्यांग सुनील खरगोन कलेक्टोरेट पहुंचा.

झोपड़ी टूटी तो करेंगे समुहिक आत्महत्या

ईटीवी भारत से बात करते हुए सुनील ने बताया कि वर्ष 1997 में झोपड़ी बनाकर रह रहे है. जिसका पट्टा भी पंचायत द्वारा दिया गया है. अब प्रशासन ने नोटिस दिया है. जिसमें झोपड़ी तोड़ने की बात कही गई है. सुनील कहना है कि प्रशासन या तो अन्य जगह जमीन दें. या रहने का साधन दें. अगर हमारा झोपड़ा टूटा तो हम तीनों सामूहिक आत्म हत्या कर लेंगे. सुनील ने बताया कि मैं, मां और भाई दिव्यांग है. हमारी आजीविका भिक्षा मांगकर चलती है.

दोनों दोस्तों का नाम सुनील

संयोग से दोनों दोस्तों का नाम सुनील ही है. पैरों से अपाहिज सुनील का कहना है कि सुनील और मैं हमेशा साथ में रहते है. जब भी जरूरत होती है तो सुनील मेरा साथ देता है और जब सुनील को जरूरत होती है तो मैं सुनील का साथ देता हुं.

खरगोन। बचपन में अंधे और लंगड़े की कहानी आप सब ने पढ़ी और सुनी होगी. इस कहानी में अंधे लड़के की आंखें उसका पैर से दिव्यांग दोस्त बनता है और पैर से दिव्यांग दोस्त का पैर उसका अंधा दोस्त बनता है. यह कहानी किताब से बाहर आकर समाज के सामने चरितार्थ हो गई है. कलेक्टर कार्यालय में ऐसे ही दो दोस्त मदद की गुहार लगाने पहुंचे.

दिव्यांग दोस्त

आंखें बनकर दोस्त को पहुंचाया कलेक्टोरेट

दरअसल खरगोन के कलेक्टर कार्यालय में दो दिव्यांग युवक अपनी समस्या को लेकर पहुंचे. यह दोनों युवक कसरावद विकासखंड के पीपलगोन के रहने वाले है. दोनों दोस्तों में से सुनील नेत्रहीन है और उसका दोस्त सुनील गांगले जो की पैर से दिव्यांग है. यह दोनों दोस्त एक ही गांव में रहते है. सुनील नेत्रहीन होने के कारण जिला कलेक्टर कार्यालय नहीं पहुंच सकता था, इसलिए उसके पैर से दिव्यांग दोस्त उसकी आंखें बनकर उसे कलेक्टर कार्यालय लेकर आया.

यह है पूरा मामला

नेत्रहिन सुनील कसरावद के पीपलगोन का रहने वाला है. सुनील की मां अर्धविक्षिप्त है. वहीं उसका भाई बहरा है. तीनों एक छोटे से झोपड़े में रहते है. लेकिन कसरावद तहसीलदार ने झोपड़ा तोड़ने का नोटिस सुनील को दिया है. जिसकी शिकायत करने दिव्यांग सुनील खरगोन कलेक्टोरेट पहुंचा.

झोपड़ी टूटी तो करेंगे समुहिक आत्महत्या

ईटीवी भारत से बात करते हुए सुनील ने बताया कि वर्ष 1997 में झोपड़ी बनाकर रह रहे है. जिसका पट्टा भी पंचायत द्वारा दिया गया है. अब प्रशासन ने नोटिस दिया है. जिसमें झोपड़ी तोड़ने की बात कही गई है. सुनील कहना है कि प्रशासन या तो अन्य जगह जमीन दें. या रहने का साधन दें. अगर हमारा झोपड़ा टूटा तो हम तीनों सामूहिक आत्म हत्या कर लेंगे. सुनील ने बताया कि मैं, मां और भाई दिव्यांग है. हमारी आजीविका भिक्षा मांगकर चलती है.

दोनों दोस्तों का नाम सुनील

संयोग से दोनों दोस्तों का नाम सुनील ही है. पैरों से अपाहिज सुनील का कहना है कि सुनील और मैं हमेशा साथ में रहते है. जब भी जरूरत होती है तो सुनील मेरा साथ देता है और जब सुनील को जरूरत होती है तो मैं सुनील का साथ देता हुं.

Last Updated : Feb 10, 2021, 7:56 PM IST
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