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लोकसभा चुनावः खंडवा में आसान नहीं नंदकुमार और अरुण यादव की राह, इस मुद्दे पर मचा है बवाल - नंदकुमार सिंह चौहान

खंडवा लोकसभा सीट पर मुकाबला जोरादार होने की उम्मीद जताई जा रही है. लेकिन, यहां के लोगों का मानना है कि दोनों ही दलों ने स्थानीय प्रत्याशी को मौका नहीं दिया है.

अरुण यादव और नंदकुमार सिंह चौहान
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Published : Apr 5, 2019, 8:55 PM IST

खंडवा। प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार का शहर खंडवा, निमाड़ अंचल की सियासत का केंद्र माना जाता है. जहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों की निगाहे टिकी रहती है. लेकिन, चुनावी समर में इस बार यहां स्थानीय प्रत्याशी का मुद्दा जोर पकड़ता नजर आ रहा है. खंडवा के लोगों का कहना है कि बीजेपी और कांग्रेस हर बार खंडवा में स्थानीय नेतृत्व के बजाए बाहरी प्रत्याशी पर दाव लगाते है.

वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद सिन्हा कहते हैं खंडवा से कालीचरण सकरगाएं के बाद स्थानीय सांसद नहीं रहा, इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि जिस भी बाहरी नेता को यहा मौका मिला उसने स्थानीय प्रत्याशी को कभी उभरने का मौका ही नहीं दिया. चैम्बर आफ कामर्स के अध्यक्ष गुरमीत सिंह उबेजा कहते हैं कि खंडवा में विकास की अनेक संभावनाएं है. लेकिन, यहां स्थानीय नेतृत्व को प्रतिनिधित्व न मिलना खंडवा के विकास में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है.

खंडवा में आसान नहीं बीजेपी-कांग्रेस की राह।

बात अगर प्रत्याशियों की जाए तो बीजेपी ने खंडवा में वर्तमान सांसद नंदुकमार सिंह चौहान को फिर से टिकट दिया है. जबकि कांग्रेस ने यहां से एक बार फिर अरुण यादव को मैदान में उतारा है. स्थानीय नेतृत्व को मौका न दिए जाने पर बीजेपी नेता कहते हैं कि नंदकुमार सिंह बुरहानपुर जिले के हैं जो खंडवा से लगा है ऐसे में वे स्थानीय प्रत्याशी है, बाहरी तो अरूण यादव है जो खरगोन जिले से आते है.

बीजेपी पर पलटवार करते हुए कांग्रेस नेता कहते हैं कि सांसद का टिकट समझदार प्रतिनिधि को मिलता है. अरूण यादव ने सांसद रहते हुए खंडवा में बहुत काम किया है. वे बाहरी नहीं है. स्थानीय नेतृत्व पर बीजेपी-कांग्रेस कुछ भी कहे. लेकिन, खंडवा में नंदकुमार सिंह और अरुण यादव की राह आसान नहीं है. क्योंकि स्थानीय न होने के चलते उनका यहां विरोध हो सकता है.

खंडवा। प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार का शहर खंडवा, निमाड़ अंचल की सियासत का केंद्र माना जाता है. जहां बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों की निगाहे टिकी रहती है. लेकिन, चुनावी समर में इस बार यहां स्थानीय प्रत्याशी का मुद्दा जोर पकड़ता नजर आ रहा है. खंडवा के लोगों का कहना है कि बीजेपी और कांग्रेस हर बार खंडवा में स्थानीय नेतृत्व के बजाए बाहरी प्रत्याशी पर दाव लगाते है.

वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद सिन्हा कहते हैं खंडवा से कालीचरण सकरगाएं के बाद स्थानीय सांसद नहीं रहा, इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि जिस भी बाहरी नेता को यहा मौका मिला उसने स्थानीय प्रत्याशी को कभी उभरने का मौका ही नहीं दिया. चैम्बर आफ कामर्स के अध्यक्ष गुरमीत सिंह उबेजा कहते हैं कि खंडवा में विकास की अनेक संभावनाएं है. लेकिन, यहां स्थानीय नेतृत्व को प्रतिनिधित्व न मिलना खंडवा के विकास में सबसे बड़ी बाधा बना हुआ है.

खंडवा में आसान नहीं बीजेपी-कांग्रेस की राह।

बात अगर प्रत्याशियों की जाए तो बीजेपी ने खंडवा में वर्तमान सांसद नंदुकमार सिंह चौहान को फिर से टिकट दिया है. जबकि कांग्रेस ने यहां से एक बार फिर अरुण यादव को मैदान में उतारा है. स्थानीय नेतृत्व को मौका न दिए जाने पर बीजेपी नेता कहते हैं कि नंदकुमार सिंह बुरहानपुर जिले के हैं जो खंडवा से लगा है ऐसे में वे स्थानीय प्रत्याशी है, बाहरी तो अरूण यादव है जो खरगोन जिले से आते है.

बीजेपी पर पलटवार करते हुए कांग्रेस नेता कहते हैं कि सांसद का टिकट समझदार प्रतिनिधि को मिलता है. अरूण यादव ने सांसद रहते हुए खंडवा में बहुत काम किया है. वे बाहरी नहीं है. स्थानीय नेतृत्व पर बीजेपी-कांग्रेस कुछ भी कहे. लेकिन, खंडवा में नंदकुमार सिंह और अरुण यादव की राह आसान नहीं है. क्योंकि स्थानीय न होने के चलते उनका यहां विरोध हो सकता है.

Intro:खंडवा - खंडवा लोकसभा क्षेत्र का गठन साल 1952 से हुआ था पहली बार 1952 में खंडवा से बाबूलाल तिवारी सांसद के रूप में निर्वाचित हुए थे। जिसके बाद लंबे समय तक खंडवा लोकसभा क्षेत्र में दोनों दलों ने खंडवा से किसी को भी उम्मीदवार नहीं बनाया। जिसके बाद एक बार फिर साल 1984 में पंडित कालीचरण सकरगाएँ खंडवा लोकसभा से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में सांसद निर्वाचित हुए। इसके बाद से अब तक खंडवा से किसी स्थानीय व्यक्ति को राष्ट्रीय दल कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने ही अपना उम्मीदवार नही बनाया। शायद यही वजह हैं स्थानीय उम्मीदवार को मौका नही मिलने से खंडवा जिले का विकास कई मायनों में अवरुद्ध होता रहा हैं।


Body:गौरतलब हैं कि 1952 में बनी खंडवा लोकसभा क्षेत्र में सबसे पहले मूलतः खंडवा के बाबूलाल तिवारी सांसद बने। वे लगातार 10 साल तक सांसद रहे। लेकिन उसके बाद से 22 साल तक बुरहानपुर से सांसद चुनते रहे हैं। इस दौरान 1984 में एक बार फिर खंडवा को प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला और यहां से पंडित कालीचरण सकरगाएँ सांसद चुने गये। उसके बाद स्थिति पहले से ओर भी बदतर हो गई जो आज तक कायम हैं। लगभग 30 साल हो गये हैं जब खंडवा लोकसभा क्षेत्र में खंडवा का सांसद था। 1984 के बाद से जितने भी सांसद चुने गये उनमें बुरहानपुर या अन्य जिलों से सांसद से चुनते रहे हैं। बात की जाए वर्तमान सांसद की तो नंदकुमार सिंह चौहान 1996 से लेकर 2014 तक पांच बार से सांसद रह चुके हैं। हालांकि इस बीच 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्हें अरुण यादव से हार का सामना करना पड़ा था लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर वे मोदी लहर में जीत दर्ज करने में सफल रहे। और पार्टी ने इस बार भी उनपर भरोसा जताया हैं। लेकिन इन सब के बीच कुछ नही हुआ तो वो हैं खंडवा का विकास जी हां आज भी खंडवा जिले पिछड़े जिले में शुमार होता हैं। यहां न तो उद्योग हैं और ना ही खेती किसानी के लिए किसानों को पर्याप्त पानी। जबकि यह क्षेत्र कृषि पर निर्भर रहने वाला क्षेत्र हैं। यहां सबसे बड़ा मुद्दा रोजगार अधोसंरचना विकास और कई क्षेत्रों में जल संकट का होना है। हालांकि वर्तमान सांसद ने क्षेत्र में सिंचाई के लिए कुछ परियोजनाएं स्वीकृत कराई हैं लेकिन वह भी पर्याप्त हैं। इन सबके बीच राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं। दोनों राष्ट्रीय दलों के नेताओं ने अपने अपने समय में दूसरी लाइन ही नही खड़ी होने दी। जिससे यहां कोई नेतृत्व नही उभर पाया। वही एक ओर विकास ना हो पाने की मुख्य वजह नेताओं में विजन की कमी रही हैं। जब यहां कृषि आधारित उद्योग स्थापित होने की बात कही जा रही तब अधिक मंडी कर के कारण वे भी महाराष्ट्र के शहरों में चले गये। 1984 में स्थानीय सांसद रहे कालीचरण सकरगाएँ के पुत्र सुनील सकरगाएँ का कहना हैं पिताजी ने उस समय खंडवा के विकास के लिए अनेक कार्य किये उन्होंने खंडवा को रेलवे में अनेक सौगातें दिलाने में अहम भूमिका निभाई। लेकिन फिलहाल स्थानीय स्तर पर दोनों ही दलों में मजबूत इच्छशक्ति वाला कोई नेता नही हैं। लोग सांसद बनने की इच्छा तो रखते हैं लेकिन उनमें जनता के बीच काम करने की इच्छशक्ति नही हैं। यही वजह हैं कि खंडवा को प्रतिनिधित्व नही मिल पाया। वही वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद सिन्हा ने बताया कि निश्चित तौर से 30 साल एक लंबा गेप होता हैं जब यहां खंडवा का सांसद था। लेकिन कालीचरण सकरगाएँ के बाद से कोई स्थानीय प्रतिनिधि दोनों ही राष्ट्रीय दल नही दे पाए। इसकी मुख्य वजह यह हैं दोनों दलों के नेताओं ने यहां स्वयं के बाद कोई दूसरा नेता खड़ा नहीं होने दिया। जिस वजह से खंडवा आज भी विकास को तरस रहा हैं। विकास की बात हो तो कृषि क्षेत्र हो चाहे रोजगार की बात हो यहां विजनलेस जनप्रतिनिधियों के कारण क्षेत्र का विकास नही हो पाया। वही चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष गुरमीत सिंह उबेजा ने कहा कि स्थानीय व्यक्ति को प्रतिनिधित्व नही मिलना इस क्षेत्र के विकास में रुकावट का सबसे बड़ा कारण हैं क्योंकि अधिकतर समय अन्य जिले के लोग यहां से सांसद बने और जाहिर हैं वो अपने क्षेत्र को विकसित करने का प्रयास करेंगे। इसलिए खंडवा को जिस विकास की आवश्यकता थी वह खंडवा को नही मिला।


Conclusion:यह दुर्भाग्य ही कहा जाये कि इस क्षेत्र में जातिवाद जैसा राष्ट्रीय मुद्दा कोई मसला नही है। हालांकि सांप्रदायिक सौहार्द की दृष्टि से यह क्षेत्र थोड़ा संवेदनशील माना जाता रहा हैं जिसका फायदा राजनैतिक दल समय समय पर उठाते रहे हैं। और यहां जनता धर्म के नाम पर गुमराह करके वोट लेने की राजनीति चलती रही हैं इस सबके बीच विकास का मुद्दा गौण होता रहा हैं। byte - प्रमोद सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार byte - सुनील सकरगाएँ, पुत्र , पूर्व सांसद कालीचरण सकरगाएँ byte - गुरमीत सिंह उबेजा, अध्यक्ष चैम्बर आफ कामर्स खंडवा byte - सुनील जैन प्रवक्ता बीजेपी byte - कुंदन मालवीय , नेता कांग्रेस byte - चंद्रकांत सांड, नागरिक खंडवा

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