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इस वजह से खफा है खजुराहो का वोटर, बीजेपी के लिए आसान नहीं सियासी सिक्सर लगाना

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Published : Apr 23, 2019, 7:57 PM IST

खजुराहो क्षेत्र में आयातित प्रत्याशी को लेकर कटनी जिले के अलावा पन्ना और खजुराहो के मतदाता भी खफा हैं, जबकि बीजेपी ने इस बार राजपूत के बदले ब्राह्मण प्रत्याशी पर दांव लगाया है. ऐसे में बीजेपी के लिए ये चुनावी डगर आसान नहीं रहने वाली है, हालांकि, सियासी ऊंट किस करवट बैठता है, ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा.

कटनी

कटनी। मध्यप्रदेश की खजुराहो संसदीय सीट हाई प्रोफाइल बनती जा रही है क्योंकि पिछले 15 सालों से यहां बीजेपी का कब्जा है और इस बार बीजेपी ने यहां पैराशूट प्रत्याशी उतारा है, जबकि कांग्रेस ने विधायक विक्रम सिंह नातीराजा की पत्नी कविता सिंह को मैदान में उतारा है. लिहाजा स्थानीय प्रत्याशी की गूंज ज्यादा सुनाई पड़ रही है. हालांकि, बीजेपी ने प्रत्याशी घोषित करने में काफी वक्त लगाया और जैसे कयास लगाये जा रहे थे, वैसा ही हुआ भी. बीजेपी ने मुरैना निवासी बीडी शर्मा को उम्मीदवार बनाया है.

खजुराहो क्षेत्र में करीब 18 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 57 प्रतिशत मतदाता कटनी जिले के हैं, कटनी जिले की 3 विधानसभा क्षेत्रों के मतदाता ही तय करते हैं कि किस पार्टी का या कौन प्रत्याशी सांसद बनेगा. अलग-अलग काल खंडों में अलग अलग लोकसभा क्षेत्रों में कटनी की अहम भूमिका रही है, लेकिन कटनी का नाम कभी लोकसभा सीट के नाम पर तय नहीं हो पाया. शुरुआती दौर में जबलपुर उसके बाद सतना और फिर शहडोल, अब परिसीमन के बाद ये खजुराहो क्षेत्र में शामिल हो गया.

खजुराहो संसदीय क्षेत्र का नाम बदलने के लिए कटनी के जनप्रतिनिधियों ने खासा प्रयास किया था, लेकिन उसका कुछ खास असर नजर नहीं पड़ा. खजुराहो संसदीय क्षेत्र का सबसे अहम जिला कटनी एक व्यवसायिक नगरी के तौर पर जाना जाता है, जहां पर जातिगत समीकरण नजर नहीं आता है, यहां के लोग व्यापार-व्यवसाय पर निर्भर हैं. लिहाजा बाहर से आए हुए लोगों की तादाद ज्यादा है, कटनी के शहरी क्षेत्र से सिंधी वोटर्स की तादात काफी है, जिसका असर चुनावों पर पड़ता है.

वरिष्ठ पत्रकार व समाज सेवी नंदलाल सिंह ने बताया कि 1978 में कटनी को जिला बनाने के लिए एक आंदोलन हुआ, जिसका मकसद कटनी को जबलपुर से अलग किया जाना था, ताकि कटनी का विकास हो सके. तकरीबन 20 साल के आंदोलन के बाद 1998 में कटनी जिला बना दिया गया, लेकिन नेतृत्व की कमी के चलते कटनी का विकास कुछ खास हो नहीं पाया. हाल ही में कटनी में स्थानीय सांसद को लेकर जनांदोलन भी किया गया, पर राजनीतिक पार्टियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. नतीजतन यहां से बीजेपी-कांग्रेस दोनों ने ही किसी उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया.

इस बात को लेकर कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी में दरार नजर आती है, आलम ये है कि कटनी से विधायक रहे राजकिशोर पोद्दार ने पार्टी से इस्तीफा देकर अलग से चुनाव लड़ने का मन बनाया. जाहिर तौर पर बीजेपी प्रत्याशी के मामले में बीजेपी में भी दो फाड़ नजर आ रहा है, ऐसे में इस बार का चुनाव बीजेपी के लिए जीतना आसान नहीं नजर आ रहा है.

कटनी में नेताओं की कमी हमेशा रही है, लिहाजा व्यवसाय घरानों ने ही कटनी का नेतृत्व किया, जिसके चलते कटनी के विकास पर कई तरह के सवाल उठते हैं. मामला रिंग रोड का हो या सिटी बस का या फिर ट्रांसपोर्ट नगर का. सभी मामले दशकों से लटके हैं, इन्हें आगे बढ़ाने की पहल अब तक नहीं हुई और चुनाव के दौरान पार्टी-प्रत्याशी बड़े-बड़े वादे कर देते हैं, लेकिन चुनाव बाद अपने व्यवसाय को चमकाने में लग जाते हैं. यही वजह है कि कटनी में विकास के नाम पर कुछ खास नजर नहीं आता है.

पिछले दो चुनावों में यहां से बीजेपी ने ठाकुर प्रत्याशियों पर दांव खेला और खास बात ये रही कि पिछले दो चुनावों में कांग्रेस ने ब्राह्मण प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाया है. जिसके चलते कांग्रेस को शिकस्त झेलनी पड़ी. इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने ठाकुर प्रत्याशी पर दांव लगाया है, जबकि बीजेपी ने बीडी शर्मा के तौर पर ब्राह्मण प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. ये भी दिलचस्प है कि क्षेत्र से पहली बार ब्राह्मण प्रत्याशी पर दांव लगाया है, जबकि इस बार प्रदेश में बीजेपी की सरकार भी नहीं है.

पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देकर कांग्रेस ने सूबे में सरकार बना ली. ऐसे में ये चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं है. ऊपर से पार्टी में चल रही अंदरूनी कलह और बाहरी प्रत्याशी भी बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. खास तौर पर जिस तरह से स्थानीय प्रत्याशी को लेकर बगावत दिख रही है, वह अपने आप में चौंकाने वाली है.

खजुराहो क्षेत्र में आयातित प्रत्याशी को लेकर कटनी जिले के अलावा पन्ना और खजुराहो के मतदाता भी खफा हैं, ऐसे में बीजेपी के लिए ये चुनावी डगर आसान नहीं रहने वाली है, हालांकि, सियासी ऊंट किस करवट बैठता है, ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा.

कटनी। मध्यप्रदेश की खजुराहो संसदीय सीट हाई प्रोफाइल बनती जा रही है क्योंकि पिछले 15 सालों से यहां बीजेपी का कब्जा है और इस बार बीजेपी ने यहां पैराशूट प्रत्याशी उतारा है, जबकि कांग्रेस ने विधायक विक्रम सिंह नातीराजा की पत्नी कविता सिंह को मैदान में उतारा है. लिहाजा स्थानीय प्रत्याशी की गूंज ज्यादा सुनाई पड़ रही है. हालांकि, बीजेपी ने प्रत्याशी घोषित करने में काफी वक्त लगाया और जैसे कयास लगाये जा रहे थे, वैसा ही हुआ भी. बीजेपी ने मुरैना निवासी बीडी शर्मा को उम्मीदवार बनाया है.

खजुराहो क्षेत्र में करीब 18 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 57 प्रतिशत मतदाता कटनी जिले के हैं, कटनी जिले की 3 विधानसभा क्षेत्रों के मतदाता ही तय करते हैं कि किस पार्टी का या कौन प्रत्याशी सांसद बनेगा. अलग-अलग काल खंडों में अलग अलग लोकसभा क्षेत्रों में कटनी की अहम भूमिका रही है, लेकिन कटनी का नाम कभी लोकसभा सीट के नाम पर तय नहीं हो पाया. शुरुआती दौर में जबलपुर उसके बाद सतना और फिर शहडोल, अब परिसीमन के बाद ये खजुराहो क्षेत्र में शामिल हो गया.

खजुराहो संसदीय क्षेत्र का नाम बदलने के लिए कटनी के जनप्रतिनिधियों ने खासा प्रयास किया था, लेकिन उसका कुछ खास असर नजर नहीं पड़ा. खजुराहो संसदीय क्षेत्र का सबसे अहम जिला कटनी एक व्यवसायिक नगरी के तौर पर जाना जाता है, जहां पर जातिगत समीकरण नजर नहीं आता है, यहां के लोग व्यापार-व्यवसाय पर निर्भर हैं. लिहाजा बाहर से आए हुए लोगों की तादाद ज्यादा है, कटनी के शहरी क्षेत्र से सिंधी वोटर्स की तादात काफी है, जिसका असर चुनावों पर पड़ता है.

वरिष्ठ पत्रकार व समाज सेवी नंदलाल सिंह ने बताया कि 1978 में कटनी को जिला बनाने के लिए एक आंदोलन हुआ, जिसका मकसद कटनी को जबलपुर से अलग किया जाना था, ताकि कटनी का विकास हो सके. तकरीबन 20 साल के आंदोलन के बाद 1998 में कटनी जिला बना दिया गया, लेकिन नेतृत्व की कमी के चलते कटनी का विकास कुछ खास हो नहीं पाया. हाल ही में कटनी में स्थानीय सांसद को लेकर जनांदोलन भी किया गया, पर राजनीतिक पार्टियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. नतीजतन यहां से बीजेपी-कांग्रेस दोनों ने ही किसी उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया.

इस बात को लेकर कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी में दरार नजर आती है, आलम ये है कि कटनी से विधायक रहे राजकिशोर पोद्दार ने पार्टी से इस्तीफा देकर अलग से चुनाव लड़ने का मन बनाया. जाहिर तौर पर बीजेपी प्रत्याशी के मामले में बीजेपी में भी दो फाड़ नजर आ रहा है, ऐसे में इस बार का चुनाव बीजेपी के लिए जीतना आसान नहीं नजर आ रहा है.

कटनी में नेताओं की कमी हमेशा रही है, लिहाजा व्यवसाय घरानों ने ही कटनी का नेतृत्व किया, जिसके चलते कटनी के विकास पर कई तरह के सवाल उठते हैं. मामला रिंग रोड का हो या सिटी बस का या फिर ट्रांसपोर्ट नगर का. सभी मामले दशकों से लटके हैं, इन्हें आगे बढ़ाने की पहल अब तक नहीं हुई और चुनाव के दौरान पार्टी-प्रत्याशी बड़े-बड़े वादे कर देते हैं, लेकिन चुनाव बाद अपने व्यवसाय को चमकाने में लग जाते हैं. यही वजह है कि कटनी में विकास के नाम पर कुछ खास नजर नहीं आता है.

पिछले दो चुनावों में यहां से बीजेपी ने ठाकुर प्रत्याशियों पर दांव खेला और खास बात ये रही कि पिछले दो चुनावों में कांग्रेस ने ब्राह्मण प्रत्याशी को उम्मीदवार बनाया है. जिसके चलते कांग्रेस को शिकस्त झेलनी पड़ी. इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने ठाकुर प्रत्याशी पर दांव लगाया है, जबकि बीजेपी ने बीडी शर्मा के तौर पर ब्राह्मण प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. ये भी दिलचस्प है कि क्षेत्र से पहली बार ब्राह्मण प्रत्याशी पर दांव लगाया है, जबकि इस बार प्रदेश में बीजेपी की सरकार भी नहीं है.

पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देकर कांग्रेस ने सूबे में सरकार बना ली. ऐसे में ये चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं है. ऊपर से पार्टी में चल रही अंदरूनी कलह और बाहरी प्रत्याशी भी बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं. खास तौर पर जिस तरह से स्थानीय प्रत्याशी को लेकर बगावत दिख रही है, वह अपने आप में चौंकाने वाली है.

खजुराहो क्षेत्र में आयातित प्रत्याशी को लेकर कटनी जिले के अलावा पन्ना और खजुराहो के मतदाता भी खफा हैं, ऐसे में बीजेपी के लिए ये चुनावी डगर आसान नहीं रहने वाली है, हालांकि, सियासी ऊंट किस करवट बैठता है, ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा.

Intro:कटनी । मध्यप्रदेश में खजुराहो संसदीय क्षेत्र आज कल सबसे हाई प्रोफाइल सीट नजर आ रहे हैं । इसकी खास वजह भी है कि क्षेत्र में पिछले 15 सालों से भारतीय जनता पार्टी का कब्जा जा रहा है । खास बात यह है कि हर बार भारतीय जनता पार्टी ने एक नए उम्मीदवार का चेहरा क्षेत्र में उतारा है । जिसका फायदा यह मिला है कि हर बार भारतीय जनता पार्टी को यहां की जनता ने जनादेश दिया है । लेकिन इस चुनाव में स्थानीय प्रत्यासी का मुद्दा कुछ ज्यादा ही गर्म है । जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी का नाम घोषित करने में कुछ ज्यादा ही वक्त लगा है । हालांकि जैसा कयास लगाए जा रहा था ठीक वैसा ही हुआ भारतीय जनता पार्टी ने एक पैराशूट प्रत्याशी संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतार दिया है । क्षेत्र से मुरैना के रहने वाले बीड़ी शर्मा को भाजपा ने अपने प्रत्याशी के तौर पर उतारा है ।और वही कांग्रेस पार्टी ने कविता सिंह पर दांव खेला है ।


Body:वीओ - आपको बता दें कि खजुराहो संसदीय क्षेत्र में तकरीबन 1800000 मतदाता है । जिनमें से 57 प्रतिशत मतदाता कटनी जिले के हैं । क्षेत्र में कटनी के 3 विधानसभा क्षेत्र शामिल है जिसके मतदाता ही तय करते हैं कि उनके लोकसभा क्षेत्र में किसका कब्जा होगा । कटनी जिले की बात करें तो यह अलग अलग काल खंडों में अलग अलग लोकसभा में इस की अहम भूमिका रही है । लेकिन कटनी का नाम कभी लोकसभा सीट के नाम पर पता नहीं हो पाया है । शुरुआती दौर में जबलपुर लोकसभा उसके बाद सतना आया और फिर शहडोल परिसीमन के बाद यह खजुराहो सांसदीय क्षेत्र में शामिल हो गया । खजुराहो संसदीय क्षेत्र का नाम बदलने के लिए कटनी के जनप्रतिनिधियों ने खासा विरोध किया था । लेकिन उसका कुछ खास असर नजर नहीं आया । खजुराहो संसदीय क्षेत्र का सबसे अहम जिला कटनी एक व्यवसायिक नगरी के तौर पर जाना जाता है ।जहां पर जातिगत समीकरण नजर नहीं आता है । यहां के लोग व्यापार व्यवसाय पर निर्भर है । लिहाजा बाहर से आए हुए लोगों की तादाद ज्यादा है । कटनी के शहरी क्षेत्र से सिंधी वोट्स की तादात भी काफी है जिसका एक बड़ा असर चुनावों पर नजर आता है।

वीओ 2 - वरिष्ठ पत्रकार व समाज सेवी नंदलाल सिंह ने ईटीवी भारत से खास चर्चा के दौरान बोले कि --- 1978 में कटनी को जिला बनाने के लिए एक आंदोलन शुरू हुआ । इस आंदोलन का मकसद था की कटनी को जबलपुर से अलग किया जाए ताकि कटनी में विकास हो सकें । तकरीबन 20 साल के आंदोलन के बाद 1998 में कटनी जिला बना दिया गया । लेकिन नेतृत्व की कमी होने के चलते कटनी का विकास कुछ खास हो नहीं पाया । हाल ही में कटनी में स्थानीय सांसद को लेकर जना आंदोलन भी किया गया लेकिन राजनीतिक पार्टियों पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा । नतीजतन यहां से भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ने ही किसी उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया । हालांकि इस बात को लेकर कांग्रेस से ज्यादा भारतीय जनता पार्टी में दरार नजर आती है । आलम यह है कि कटनी से विधायक रहे राजकिशोर पोदार ने पार्टी को इस्तीफा देकर अलग से चुनाव लड़ने का मन बना लिया है । जाहिर तौर पर भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी के मामले पर जनांदोलन के साथ इस लिहाज से भाजपा भी दो फाड़ नजर आ रही है । ऐसे में इस बार के चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए जितना आसान नहीं नजर आ रहा है।

वीओ 3- कटनी जिले में नेताओं की कमी हमेशा से नजर आती रही है । यही वजह है कि व्यवसाय घराने के लोगों ने ही कटनी का नेतृत्व किया है । जिसके चलते कटनी के विकास पर कई तरह के सवाल नजर आते हैं । मामला रिंग रोड का हो या सिटी बस का या फिर ट्रांसपोर्ट नगर का यह तमाम मामले लगभग दसकों से लटके हुए हैं । लेकिन इन पर किसी तरह की कोई कार्यवाही नजर नहीं आती है । व्यवसाई घराने आने से आने वाले चुनाव के दौरान बड़े बड़े वादे कर देते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद अपने व्यवसाय को चमकाने के काम में आते हैं । यही वजह है कि कटनी में विकास के नाम पर कुछ खास नजर नहीं आते हैं । बात रेलवे की हो या फिर स्थानीय विकास की सब कुछ हासिये पर नजर आता है ।

वीओ 4- पिछले दो चुनावों की बात करें तो यहां से भारतीय जनता पार्टी ने दोनों ही बार ठाकुर प्रत्याशियों पर दांव खेला और खास बात यह रही कि पिछले दो चुनावों में कांग्रेस ने ब्राह्मण प्रत्याशी को अपना कैंडिडेट बनाया इसमें कांग्रेश को शिकस्त खानी पड़ी । इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने ठाकुर प्रत्याशी पर अपनी किस्मत आजमाई है । वहीं भारतीय जनता पार्टी बीडी शर्मा के तौर पर ब्राह्मण प्रत्याशी को मैदान में उतारा है । यह भी बेहद दिलचस्प है कि क्षेत्र से पहली बार ब्राह्मण प्रत्याशी पर भाजपा किस्मत आजमा रही है । इस बार के चुनाव में एक और अहम मुद्दा भी सामने नजर आ रहा है वह है पावर लेंस भाजपा का इसके पहले के दोनों चुनाव प्रदेश सरकार भारतीय जनता पार्टी की थी । लिहाजा चुनाव बेहद आसान था लेकिन हाल ही के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त देकर कांग्रेस ने सूबे पर कब्जा कर लिया है । ऐसे में यह चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान नहीं नजर आ रहा है । खासतौर पर मौजूदा हालात में पार्टी में चल रही अंदरूनी कलह और स्थानीय प्रत्यासी का मुद्दा भी भारतीय जनता पार्टी को शिकस्त देने के लिए काफी है । खासतौर पर जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी में स्थानीय प्रत्याशी को लेकर बगावत नजर आ रही है वह अपने आप में बेहद चौंकाने वाली है जो भारतीय जनता पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी करती हुई नजर आ रही है ।


Conclusion:फाईनल - खजुराहो संसदीय क्षेत्र में आयातित प्रत्याशी को लेकर कटनी जिले के अलावा पन्ना और खजुराहो के मतदाता भी खा से नाराज हैं ऐसे में यह चुनाव भारतीय जनता पार्टी के लिए आसान नहीं नजर आ रहा है । अब यह देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है ।
बाईट - वरिष्ठ पत्रकार व समाज सेवी नंदलाल सिंह

कटनी से जय प्रकाश पटेल की रिपोर्ट
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