कटनी। जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर एक ऐतिहासिक नगरी है, जिसका कालांतर में नाम पुष्पावती था. जो आज बिलहरी के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि 914 इसवी में कलचुरी शासक राजा कर्ण ने इसे अपने राज्य की राजधानी बनाया था. यहां कलचुरी शासन में निर्मित कई मूर्तियों मिलती हैं. अब यह देखरेख और विभाग की अनदेखी के चलते अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. यह एक बेहतर पर्यटन स्थल बन सकता है, लेकिन प्रशासन की लापरवाही और अनदेखी के चलते यहां का विकास रुका हुआ है.
पुष्पावती की नींव रखने वाले कलचुरी शासक राजा कर्ण के बारे में ऐसी मान्यता है कि वे सवा मन सोना रोज दान करते थे या फिर उसी सोने से इस इलाके का विकास करते थे. राजा कर्ण के समय इस इलाके में काफी विकास हुआ. जिसमें पत्थर की नक्काशी और मूर्तियों के निर्माण प्रमुख रूप से देखे जाते हैं. राजा कर्ण के महल पर नजर डालें, तो उस वक्त की बारीक नक्काशी पत्थरों पर साफ नजर आती है. यही वजह है कि इस इलाके में तस्करों की चहलकदमी बढ़ गई. यहां से भारी तादाद में बेशकीमती मूर्तियां चोरी कर बेच दी गईं. हालांकि मुर्तियां चोरी होने के बाद प्रशासन की नींद खुली और पूरे इलाके पर पुरातत्व विभाग नजर रखे हुए है. साथ ही मूर्तियों की चोरी को रोकने के लिए प्रशासन ने कुछ खास बदलाव भी किए हैं.
चोरी हो चुकी हैं कई मूर्तियां
बिलहरी (पुष्पावती) के लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में पहले भी मूर्तियों की चोरी हो चुकी हैं. यह ऐतिहासिक धरोहर उपेक्षित हालत में है, कई पुराने मंदिर और इमारतें नष्ट होती जा रही हैं. यहां स्थित विष्णु वराह तक पहुंचने के लिए अच्छा रास्ता नहीं है. संरक्षित स्मारकों में शामिल तपसी मठ के संरक्षण का काम भी काफी समय से बंद है. यहां शिव मंदिर, परिक्रमा स्थल और बावड़ी है. साथ ही आस पास एकत्र की गई मूर्तियां सहित अन्य धरोहर परिक्रमा स्थल में कैद करके रखी गई है. हालांकि इन्हें पर्यटकों को इन्हें देखने की अनुमति नहीं है.
कुंड में हमेशा रहता है पानी
बारडोली क्षेत्र की ऐतिहासिक धरा बिलहरी जिसे इतिहास में पुष्पवती के नाम से भी जाना जाता है, बिलहरी के पुरातन इतिहास को उजागर करता है. पत्थरों पर की गई नक्काशी, कलाकृतियां और कल्चुरी काल में किए गए निर्माण आज भी यहां मौजूद हैं. पुरातन समय की दास्तां बयां करती यह धरोहर आज अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. बताया जा रहा है कि यहां पर कुंड धाम में एक मंदिर है, जहां राजा कर्ण ने 6 कुंड बनवाए थे. जिसमें 12 महीने पानी भरा रहता है. मंदिर के गर्भ गृह में सातवां कुंड भी है. हालांकि सातवें कुंड में जाना वर्जित है. भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के लिए यहां पहुंचने वाले श्रद्धालु इन्हीं कुंडों के जल से भगवान का जलाभिषेक करते हैं.
मिला था खजाना
लोगों का यह भी मानना है कि यहां एक समय भारी मात्रा में खजाना मिला था. राजा कर्ण को खुद देवी मां सोना भेंट करती थी. इस इलाके में कई मठ मंदिर बने हैं, जो बेहद आकर्षित हैं. यहां एक तलाब भी है, जिसे लक्ष्मण सागर के नाम से जाना जाता है. यह तालाब करीब 52 एकड़ में फैला है. कहा जाता है कि इस तालाब में राजघराने की महिलाएं गुफा के जरिए नहाने आती थी. यह गुफा आज भी यहां मौजूद है, जो इस बात की गवाही देता है कि महिलाओं के नहाने के लिए अलग से व्यवस्था की गई थी.
पुरात्तव विभाग की अनदेखी के चलते यह स्थल आज अपना अस्तित्व खोने की कगार पर है. यहां पर मौजूद पुरानी मूर्तियां, पत्थरों पर की गई नक्काशी, कलाकृतियां और लक्षमण सागर तालाब का भी जीर्णोद्धार कर दिया जाए, तो इस इलाके में विकास अपने आप नजर आने लगेगा. पुरातत्व धरोहर से भरपूर यह इलाकें में पर्यटन की बहुत संभावनाएं हैं.