ग्वालियर (पीयूष श्रीवास्तव): मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में होने जा रहे ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में देश विदेश से कई निवेशक और मेहमान शामिल होंगे. इन सभी की आवभगत के लिए विशेष तैयारियां कि गई हैं. साथ ही कई बड़े निवेशकों को दुनियाभर में मशहूर ग्वालियर में बनी शालभंजिका की रेप्लिका भेंट की जाएगी. इसको इंडियन मोनालिसा भी कहा जाता है. इस खूबसूरत प्रतिमा को ग्वालियर की मिंट स्टोन से तैयार किया गया है. आइए जानते हैं इस विश्वप्रसिद्ध शालभंजिका का इतिहास और इसका महत्व.
मेहमानों को भेंट की जाएगी शालभंजिका
भोपाल में 24 और 25 फरवरी को ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट आयोजित होने जा रहा है. इस दिन देश दुनिया के कई उद्योगपति इस समिट में शामिल होंगे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस आयोजन में उपस्थित रहेंगे. कार्यक्रम में ग्वालियर अपनी छाप छोड़ने जा रहा है. मध्य प्रदेश सरकार कार्यक्रम में शामिल होने वाले कई बड़े उद्योगपतियों को भारतीय मोनालिसा कहे जाने वाली शालभंजिका भेंट करने वाली है. यह शालभंजिका ग्वालियर में बनाई गई हैं. इसको ग्वालियर के जाने माने मूर्तिकार दीपक विश्वकर्मा ने तैयार किया है.
9 दिन में तैयार की 70 रेप्लिका
ईटीवी भारत से बातचीत में दीपक विश्वकर्मा ने बताया कि "भारत सरकार की लघु उद्योग निगम की संस्था 'मृगनयनी' की ओर से उन्हें 70 शालभंजिका की प्रतिकृतियों का ऑर्डर मिला था. जिसे उन्होंने अपनी 16 लोगों टीम के साथ दिन-रात काम कर 9 दिन में तैयार कर भोपाल भिजवाया दिया है." दीपक के मुताबिक "उनके द्वारा तैयार प्रतिकृतियां देखने में हूबहू शालभंजिका के जैसी हैं. जिसका साइज 7 इंच है. इन्हें फाइबर ग्लास में पैक कर दिया गया है. जो भी मेहमान इसको अपने साथ लेकर जाएगा, वो हमेशा ग्वालियर को याद रखेगा."
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मेहमानों के लिए शालभंजिका का चुनाव क्यों?
इतने बड़े आयोजन में मेहमानों को भेंट करने के लिए ग्वालियर की शालभंजिका को ही क्यों चुना गया, ये एक बड़ा सवाल है, लेकिन इस बात का जवाब भी उतना ही आसान है. असल में इस कार्यक्रम के लिए 'वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट' प्रोग्राम के तहत चुनाव किया किया गया है. जिसमें ग्वालियर मिंट स्टोन भी शामिल है. जब उपहार के मिंट स्टोन की कोई कलाकृति भेंट करनी थी, तो शालभंजिका से बेहतर और खूबसूरत क्या हो सकता है. ये एक मशहूर कलाकृति है और भारतीय मोनालिसा के नाम से जानी जाती है. इसलिए इसे चुना गया.
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शालभंजिका क्यों इतनी खास
ग्वालियर किले के गुजरी महल म्यूजियम में प्रदर्शित शालभंजिका नागर शैली की पाषाण प्रतिमा है, जो खजुराहो में बनी मूर्तियों के समय की है. ये प्रतिमा 9वीं से 10वीं शताब्दी की है. यह खुदाई के दौरान विदिशा जिले के ग्यारस गांव में मिली थी. इसलिए इसको ग्यारस लेडी भी कहा जाता है. एक सुंदर महिला की छवि प्रदर्शित करती इस प्रतिमा के दोनों हाथ पैर नहीं है, फिर भी यह बेहद खूबसूरत है.
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इस पर बने जेवरात, शालभंजिका के बालों का काम भी बहुत बारीकी से किया गया है. इसके शरीर की बनावट और भावभंगिमा अत्यंत आकर्षक है. इसके चेहरे की मुस्कान अद्वितीय है. जिसकी वजह से ग्यारस लेडी को इंडियन मोनालिसा की संज्ञा दी गई. यह नारी सौंदर्य का अनुपम उदाहरण है.
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कितना चैलेंजिंग रहा शालभंजिका की प्रतिकृति तैयार करना
शालभंजिका की रेप्लिका तैयार करने वाले मूर्तिकार दीपक विश्वकर्मा कहते है कि "ग्यारस लेडी की प्रतिकृतियां तैयार करना काफी चैलेंजिंग था, क्योंकि इसका साइज बहुत छोटा था. इसे 7 इंच में बनाना था. जिसमें उसकी मुस्कान, चेहरे के भाव, आंख, नाक उसके गले में बने जेवरों का बारीक काम सभी पर काम करना था. हमने हूबहू वैसा ही बनाकर दिया है. सभी 70 प्रतिकृतियां भोपाल भेज दी गई गई है."