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बदलते जमाने में घटी मिट्टी के दिए मांग, कुम्हारों से छिनता जा रहा रोजगार

दीपावली त्योहार के लिए कुम्हार मिट्टी के दीए बनाते हैं, लेकिन इस आधुनिक दौर में लोग प्लास्टिक के बने रंग-बिरंगे दीए ले रहे हैं, जिससे कलाकारों को निराशा हाथ लग रहा है.

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Published : Oct 21, 2019, 1:22 AM IST

दीए बनाते हुए कुम्हार

कटनी। रोशनी का पर्व दीपावली आने से पहले ही कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी के दीपक बनाने में जुट जाते है, लेकिन अब मिट्टी की बनी सामग्री की घटती मांग को देखकर कुम्हारों ने इसे बनाना भी कम कर दिया है. बदलते जमाने के इस दौर में मिट्टी के दिए और गणेश लक्ष्मी की मूर्ति की जगह आधुनिक जमाने में बनेने वाली पीओपी की मूर्तियों ने ले ली है.

मिट्टी के दिए नहीं बिकने पर कुम्हारों में निराशा
कुम्हारों का कहना है कि आजकल मिट्टी की कीमत में भी वृद्धि हो गई है, जिसमें मेहनत ज्यादा लगती है. ऐसे में इस पेशे से जुड़कर रहना आत्महत्या करने के
बराबर ही है.
दीपावली जैसे त्योहार में करीब 40 हजार मिट्टी के दीपक बेचते थे, लेकिन अब हालात ऐसे है कि आज बच्चे मिट्टी के खिलौनों की जगह प्लास्टिक के खिलौने पसंद करते हैं. बिक्री नहीं होने से परेशान कलाकार अपने बच्चों का पालन नहीं कर पा रहे हैं. वे इस परेशानी से जूझ रहे हैं. कुम्हार अपने पुश्तैनी व्यवसाय से दूर होते जा रहे हैं.

मंदिर के पुजारी ने बताया कि प्लास्टिक के बने दीप को अन्य सामानों को छोड़ मिट्टी के बने सामानों का प्रयोग करना चाहिए. खासतौर पर दीपावली त्योहार पर मिट्टी से बने दीए ही उपयोग करना चाहिए. इससे ना केवल पर्यावरण शुद्ध रहेगा बल्कि कुम्हारों की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी. कहा जाता है कि मिट्टी के दीए जलाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है. इस बार दीपावली के पावन अवसर पर मिट्टी के दीए जलाएं, जिससे घर के साथ-साथ कारीगरों के घर भी रोशन हो जाएं.

कटनी। रोशनी का पर्व दीपावली आने से पहले ही कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी के दीपक बनाने में जुट जाते है, लेकिन अब मिट्टी की बनी सामग्री की घटती मांग को देखकर कुम्हारों ने इसे बनाना भी कम कर दिया है. बदलते जमाने के इस दौर में मिट्टी के दिए और गणेश लक्ष्मी की मूर्ति की जगह आधुनिक जमाने में बनेने वाली पीओपी की मूर्तियों ने ले ली है.

मिट्टी के दिए नहीं बिकने पर कुम्हारों में निराशा
कुम्हारों का कहना है कि आजकल मिट्टी की कीमत में भी वृद्धि हो गई है, जिसमें मेहनत ज्यादा लगती है. ऐसे में इस पेशे से जुड़कर रहना आत्महत्या करने के
बराबर ही है.
दीपावली जैसे त्योहार में करीब 40 हजार मिट्टी के दीपक बेचते थे, लेकिन अब हालात ऐसे है कि आज बच्चे मिट्टी के खिलौनों की जगह प्लास्टिक के खिलौने पसंद करते हैं. बिक्री नहीं होने से परेशान कलाकार अपने बच्चों का पालन नहीं कर पा रहे हैं. वे इस परेशानी से जूझ रहे हैं. कुम्हार अपने पुश्तैनी व्यवसाय से दूर होते जा रहे हैं.

मंदिर के पुजारी ने बताया कि प्लास्टिक के बने दीप को अन्य सामानों को छोड़ मिट्टी के बने सामानों का प्रयोग करना चाहिए. खासतौर पर दीपावली त्योहार पर मिट्टी से बने दीए ही उपयोग करना चाहिए. इससे ना केवल पर्यावरण शुद्ध रहेगा बल्कि कुम्हारों की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी. कहा जाता है कि मिट्टी के दीए जलाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है. इस बार दीपावली के पावन अवसर पर मिट्टी के दीए जलाएं, जिससे घर के साथ-साथ कारीगरों के घर भी रोशन हो जाएं.
Intro:कटनी । परंपरागत धंधे से विमुख हो रहे कुम्हार, जरूरत है पहल कर इनके जीवन को संवारने की । विलुप्ति के कगार पर कला को सरकारी पहल की भी है खास जरूरत है । रोशनी का पर्व दीपावली आने से पूर्व ही कुम्हार समुदाय के लोग मिट्टी के दीपक बनाने में जुट जाते थे , लेकिन अब मिट्टी की बनी सामग्री की घटती मांग को देख कुम्हारों ने इसे बनाना भी कम कर दिया है । बदलते जमाने के इस दौर में मिट्टी के दिए और गणेश लक्ष्मी की मूर्ति की जगह आधुनिक जमाने के रंग बिरंगे बिजली के व मोमबत्तियां सहित पीओपी ने ले ली है जगह ।
गौरतलब है कि मिट्टी के पुश्तैनी व्यवसाय को छोड़कर कुम्हार अन्य कार्य करने लगे हैं । जी हां खैरानी इलाके में रहने वाले कुम्हार ने बताया कि कभी एक समय था जब हमारे पास जीवन यापन का एक मात्र साधन चाक ही था । मगर आज इसकी रफ्तार धीमी पड़ गई है । और पूरे परिवार का भरण पोषण करने में अक्षम हो गए हैं । हम सभी करें भी तो क्या करें और हमारे बच्चे इसे सीखना भी नहीं चाहते । अगर ऐसा हुआ तो यह कला भी विलुप्त हो जाएगी । हां आगे आने वाली पीढ़ी इसे तस्वीरों में और संग्रहालय में देख पाएगी । हम मांग करते हैं कि सरकार तक हमारी गुहार पहुंचे और इसके संरक्षण के लिए खास कदम उठाए जाएं ।


Body:वीओ - कुम्हारों ने बताया कि आजकल मिट्टी की कीमत में भी वृद्धि हो गई है । जिसमें मेहनत जोड़ दिया जाए तो सामग्री की लागत भी बाजार से नहीं निकल पाती है । ऐसे में इस पेशे से जुड़कर कर रहना आत्महत्या करने के बराबर है । कुम्हारों ने सुनाई व्यथा व लोगों ने रखी राय कभी दीपावली जैसे त्यौहार में करीब 40 हजार मिट्टी के दीपक बेचते थे और मिट्टी की बनी गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां बाजार की रौनक हुआ करती थी , साथ ही मिट्टी के बने रंग बिरंगी खिलौनों के भी काफी मांग थी लेकिन आज बच्चे मिट्टी के खिलौनों की जगह प्लास्टिक के खिलौना ज्यादा पसंद करते हैं । लोगों ने राज्य की इस दिवाली के इस त्यौहार में प्रत्येक व्यक्ति कुम्हारों द्वारा बनाए गए मिट्टी के बने दीपक ,गणेश लक्ष्मी की मूर्ति का व्यापक रूप में प्रयोग करने का संकल्प ले , ताकि कुम्हार अपने पुश्तैनी व्यवसाय से जीविकोपार्जन कर अपने बच्चों का लालन पालन सही तरीके से कर सकें । जिससे उनके जीवन में किसी प्रकार की कोई परेशानी ना हो ।


Conclusion:फाईनल - मंदिर के पुजारी ने बताया कि प्लास्टिक के बने दीपा को अन्य सामानों को छोड़ मिट्टी के बने सामानों का प्रयोग करना चाहिए खासतौर पर दीपावली के इस त्यौहार में मिट्टी के दिए हुए भगवान गणेश एवं लक्ष्मी की मूर्ति का प्रयोग करें इससे ना केवल पर्यावरण शुद्ध रहेगा बल्कि कुम्हारों का आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी मिट्टी के दीए जलाने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है माता अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती है । इस बार त्यौहार में मिट्टी के दीए जलाए जिससे आपके घर के साथ ही साथ कारीगरों के घर भी रोशन हो । साथी पंडित ने यह भी बताया कि वेद पुराणों में यह बताया गया है कि मिट्टी के बने दीपक वह भगवान गणेश लक्ष्मी के मूर्ति वाह धातु से बने वस्तुओं का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि सारे मनुष्य के जीवन में कोई कष्ट ना आए ।

बाईट - बिसाली कुम्हार - करिगिर
बाईट - छात्रा -
बाईट- कुम्हार
बाईट - मनोज तिवारी - मंदिर पुजारी
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