झाबुआ। पद्मश्री पुरस्कार के लिए नाम चयन होने पर जिले के परमार दंपति अचानक से सुर्खियों में आ गए हैं. ईटीवी भारत की टीम गोपाल कॉलोनी से लगे रातीतलाई क्षेत्र में स्थित उनके घर पहुंची. इस दौरान परमार दंपती कहीं गए थे. घर के बाहर खड़े होकर टीम ने उनका इंतजार किया. एक कलाकार का जीवन कितना मुफलिसीभरा हो सकता है, इसका जीवंत उदाहरण है परमार दंपती का का घर. पक्का घर तो बना लिया, लेकिन आगे के हिस्से में अब तक प्लास्तर नहीं हो पाया है. आसपास के घरों के लोग आश्चर्य से बाहर निकलकर देख रहे हैं. क्योंकि पद्मश्री पुरस्कार के लिए नाम आने के बाद सुबह से कोई न कोई उनके घर का पता पूछते हुए आ रहा है. करीब 15 मिनट के इंतजार के बाद बाइक पर परमार दंपति घर आते दिखे.
राष्ट्रीय स्तर का सम्मान पाने की खुशी : रमेश भाई ने कुर्ता-पैजामा पहन रखा था तो शांतिबाई करीने से साड़ी पहने हुई थीं. राष्ट्रीय स्तर का सम्मान मिलने की खुशी दोनों के चेहरे पर साफ नजर आ रही थी. आते ही उन्होंने अभिवादन किया और फिर घर के एक कमरे में बनी अपनी छोटी सी वर्कशॉप में ले गए. जहां एक पलंग के साथ कुछ कुर्सियां रखी थीं. दीवार पर एक कतार में गुड़ियां सजी हुई थीं, जो मानों बता रही हों कि हां हम ही हैं जिनके रचियता का श्रम आज सार्थक हो गया है. यहां परमार दंपती ने अपने जीवन के बहुत से अनछुए पहलू साझा किए. जिसमें आदिवासी गुड्डे-गुड़िया बनाने के साथ पद्मश्री पुरस्कार के लिए नाम आने तक का पूरा सफर था.
सुनिए परमार दंपति की पूरी कहानी : अपनी छोटी सी वर्कशॉप में पलंग पर बैठे परमार दंपती बात करते हुए भी गुड़िया तैयार करने में लगे थे. अपनी पत्नी शांति की तरफ इशारा करते हुए रमेश परमार बताते हैं आज से करीब 30 साल पहले उद्यमिता विकास केंद्र में इन्होंने 6 माह तक आदिवासी गुड़िया निर्माण की ट्रेनिंग ली थी. इसके बाद घर पर गुड़िया निर्माण का निर्णय किया. पैसे नहीं थे तो इधर उधर से कपड़े इकठ्ठे किए. इस तरह गुड़िया बनाने की शुरुआत हुई. वर्ष 1997 में राष्ट्रीय पर्व 15 अगस्त को तत्कालीन कलेक्टर मनोज श्रीवास्तव ने जिला स्तरीय पुरस्कार प्रदान किया तो हौसला बढ़ गया. इसके बाद मार्केटिंग के लिए मृगनयनी एंपोरियम भोपाल से संपर्क किया और शिल्पी मेलों में भाग लेना शुरू किया. वे कालिदास समारोह में भी पिछले 12-13 सालों से भाग ले रहे हैं. जिससे इस कला को राष्ट्रीय पहचान मिली. शांति बाई बताती हैं दिनभर में वे पांच जोड़ी गुड्डे-गुड़िया तैयार करती हैं. बाहर आदिवासी गुड़िया की बहुत ज्यादा डिमांड है. लोग पारंपरिक गुड्डे-गुड़िया जिसमें महिला सिर पर बांस की टोकरी लिए हो तो पुरुष कंधे पर तीर-कमान उठाए हो, उसे बहुत पसंद करते हैं. परमार दंपती विभिन्न विभागों के समन्वय से 400 से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षण दे चुके हैं.
सांसद और भाजपा जिलाध्यक्ष पहुंचे सम्मान करने : परमार दंपती का नाम पद्म श्री पुरस्कार के लिए आने के बाद सांसद गुमान सिंह डामोर और भाजपा जिलाध्यक्ष भानू भूरिया उनके निवास पर सम्मान करने पहुंचे. उनके साथ पूर्व विधायक शांतिलाल बिलवाल, पूर्व जिलाध्यक्ष ओमप्रकाश शर्मा, नगर मंडल अध्यक्ष अंकुर पाठक और अन्य भाजपा नेता मौजूद थे. उन्होंने पुष्पमाला पहनाकर और शॉल, श्रीफल भेंटकर दोनों का सम्मान किया. सांसद गुमान सिंह डामोर ने कहा कि पद्म विभूषण और जितने नागरिक सम्मान दिए जाते हैं, इसके लिए अब मोदी सरकार ने पूरी प्रक्रिया बदल दी है. पहले अनुशंसा के आधार पर ही पुरस्कार दे दिए जाते थे. उनके मापदंड कुछ इस प्रकार के थे कि उसमें गरीब व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं थी. प्रधानमंत्री मोदी ने ये पूरे मापदंड परिवर्तित कर दिए हैं.