झाबुआ। न मोटर है, न गाड़ी है, हम मजदूर हैं हमें पैदल ही जाना है. शायद ये लाइनें, उत्तर प्रदेश के मजदूरों पर सटीक बैठती हैं. गुजरात से आ रहे उत्तर प्रदेश के श्रमिक अपने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को खूब कोस रहें, क्योंकि उन्होंने अभी तक उनकी सुध नहीं ली. रोजी-रोटी के लिए यूपी के अलग-अलग गांव से निकल कर मजदूरी के लिए गुजरात पहुंचे ये लोग कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए हुए लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हो गए हैं. एक ओर महामारी का डर तो दूसरी ओर पेट की आग न बुझ पाने की चिंता के कारण ये मजदूर अब अपने वतन लौटने को मजबूर हैं.
सैकड़ों मजदूर वाहनों के अभाव में 42 डिग्री तापमान की चिलचिलाती धूप में सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल तय कर रहे हैं. गुजरात के राजकोट, सूरत और जामनगर में काम करने वाले मजदूर पिछले कई दिनों से पैदल चलते हुए मध्यप्रदेश की सीमा में दाखिल हुए. वहीं कुछ मजदूर बड़ी रकम देकर ट्रक, टेंपो में सवार होकर यहां पहुंचे थे. मजदूरों को उम्मीद थी कि मध्य प्रदेश की सीमा में उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके लिए बसों की व्यवस्था की होगी लेकिन यहां आकर भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी. जब उन्हें पता चला कि उत्तर प्रदेश की सरकार ने ऐसी कोई व्यवस्था अपने मजदूरों के लिए नहीं की है, तो उन्हें अपने सीएम योगी आदित्यनाथ पर काफी गुस्सा आया और अपनी मजबूरी पर रोना भी.
इन मजदूरों का दर्द और तकलीफ इनकी बातों से जाहिर हुआ. राजस्थान, महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों ने अपने मजदूरों के लिए पेट्रोल बॉर्डर पर बसें भेजी थीं, लेकिन यूपी सरकार ने अपने हजारों मजदूरों की खैर-खबर लेना तक उचित नहीं समझा. केंद्र सरकार विदेशों में फंसे लोगों को लाने के लिए हवाई जहाज भेज रही हैं लेकिन देश के अंदर ही फंसे मजदूरों को न राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार की जरूरी मदद उपलब्ध हो पा रही है. इन मजदूरो को न तो भर पेट खाना मिल रहा हैं और न ही इन्हें आराम. मजदूरों का कहना है कि हमारी तकलीफ कोई नहीं जान सकता, सब केवल वादे करते हैं और वो वादे झूठे होते हैं.