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बेटे के बाद बाप को पटखनी देकर 'गुमान' ने बचाया बीजेपी का गुमान, भूरिया युग का किया अंत

1970 से 2014 तक यहां कांग्रेस के झंडाबरदारों ने बीजेपी का कमल नहीं खिलने दिया, 2014 की मोदी लहर में बीजेपी के दिलीप सिंह भूरिया ने पहली बार कांतिलाल भूरिया को पराजित कर यहां कमल खिलाया था.

डामोर ने किया भूरिया युग का अंत
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Published : May 26, 2019, 3:13 PM IST

झाबुआ। कांग्रेस की परंपरागत सीट अब बीजेपी के खाते में चली गई है. बीजेपी के गुमान सिंह डामोर ने रतलाम-झाबुआ सीट से कांतिलाल को करारी शिकस्त देकर भूरिया युग का अंत कर दिया. इसके पहले पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में डामोर ने उनके बेटे विक्रांत भूरिया के सियासी सफर के शुरूआती दौर में ही ब्रेक लगा दिया था.

डामोर ने किया भूरिया युग का अंत

मध्यप्रदेश की आदिवासी बाहुल्य झाबुआ-रतलाम सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी, जहां कांग्रेस को पछाड़ना न के बराबर था, 1970 से 2014 तक यहां कांग्रेस के झंडाबरदारों ने बीजेपी का कमल नहीं खिलने दिया, 2014 की मोदी लहर में बीजेपी के दिलीप सिंह भूरिया ने पहली बार कांतिलाल भूरिया को पराजित कर यहां कमल खिलाया था, लेकिन उनके निधन के बाद 2016 में हुए उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया ने फिर से बीजेपी को यहां से बेदखल कर दिया.

हाल में ही संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में फिर बीजेपी के जीएस डामोर ने कांतिलाल भूरिया को उन्हीं के गढ़ में पटखनी दे दी. बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर का चुनावी मैनेजमेंट भूरिया के मैनेजमेंट पर भारी पड़ा था. यही वजह है कि भूरिया के गुलजार रहने वाले निवास और कार्यालय में 23 मई के बाद से सन्नाटा पसरा है.

एक दौर ऐसा भी था, जब कांग्रेस के कद्दावर नेता कांतिलाल भूरिया का इतना दबदबा था कि झाबुआ अलीराजपुर का कोई सरकारी पन्ना तक उनकी मर्जी के बिना इधर से उधर नहीं होता था. कभी केंद्र में सोनिया गांधी के 9 रत्नों में शामिल रहे कांतिलाल ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी अपना दबदबा बनाए रखा, लेकिन विधानसभा चुनाव में अपने बेटे का सियासी जीवन चमकाने के चक्कर में अपनों को ही दुश्मन बना बैठे, जिसका नतीजा उनके नवासे को भी भोगना पड़ा.

इस बार के आम चुनाव में बीजेपी ने कांतिलाल भूरिया को ऐसे चक्रव्यूह में फंसाया कि भूरिया निकल ही नहीं पाये और बाकी कसर उनके अपनों की नाराजगी, विरोध ने पूरी कर दी. जिसका खामियाजा 23 मई के नतीजों में देखने को मिला.

झाबुआ। कांग्रेस की परंपरागत सीट अब बीजेपी के खाते में चली गई है. बीजेपी के गुमान सिंह डामोर ने रतलाम-झाबुआ सीट से कांतिलाल को करारी शिकस्त देकर भूरिया युग का अंत कर दिया. इसके पहले पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में डामोर ने उनके बेटे विक्रांत भूरिया के सियासी सफर के शुरूआती दौर में ही ब्रेक लगा दिया था.

डामोर ने किया भूरिया युग का अंत

मध्यप्रदेश की आदिवासी बाहुल्य झाबुआ-रतलाम सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी, जहां कांग्रेस को पछाड़ना न के बराबर था, 1970 से 2014 तक यहां कांग्रेस के झंडाबरदारों ने बीजेपी का कमल नहीं खिलने दिया, 2014 की मोदी लहर में बीजेपी के दिलीप सिंह भूरिया ने पहली बार कांतिलाल भूरिया को पराजित कर यहां कमल खिलाया था, लेकिन उनके निधन के बाद 2016 में हुए उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया ने फिर से बीजेपी को यहां से बेदखल कर दिया.

हाल में ही संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में फिर बीजेपी के जीएस डामोर ने कांतिलाल भूरिया को उन्हीं के गढ़ में पटखनी दे दी. बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर का चुनावी मैनेजमेंट भूरिया के मैनेजमेंट पर भारी पड़ा था. यही वजह है कि भूरिया के गुलजार रहने वाले निवास और कार्यालय में 23 मई के बाद से सन्नाटा पसरा है.

एक दौर ऐसा भी था, जब कांग्रेस के कद्दावर नेता कांतिलाल भूरिया का इतना दबदबा था कि झाबुआ अलीराजपुर का कोई सरकारी पन्ना तक उनकी मर्जी के बिना इधर से उधर नहीं होता था. कभी केंद्र में सोनिया गांधी के 9 रत्नों में शामिल रहे कांतिलाल ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी अपना दबदबा बनाए रखा, लेकिन विधानसभा चुनाव में अपने बेटे का सियासी जीवन चमकाने के चक्कर में अपनों को ही दुश्मन बना बैठे, जिसका नतीजा उनके नवासे को भी भोगना पड़ा.

इस बार के आम चुनाव में बीजेपी ने कांतिलाल भूरिया को ऐसे चक्रव्यूह में फंसाया कि भूरिया निकल ही नहीं पाये और बाकी कसर उनके अपनों की नाराजगी, विरोध ने पूरी कर दी. जिसका खामियाजा 23 मई के नतीजों में देखने को मिला.

Intro:झाबुआ : 1980 से रतलाम झाबुआ संसदीय सीट पर काबिज भूरिया बाद का अंत भाजपा ने कर दिया । इस सीट पर कांग्रेस के दिलीप सिंह भूरिया और कांतिलाल भूरिया लगातार 10 सालों तक सांसद बने रहे। कांग्रेस के दोनों नेता पांच-पांच बार इस सीट पर सांसद रहे और भुरिया वाद को खूब मज़बूत किया। हालांकि 2014 में दिलीप सिंह भूरिया ने बीजेपी का दामन थाम कर इस सीट पर पहली बार भाजपा का कमल खिलाने में सफलता हासिल की। मगर यह जीत ज्यादा दिनों तक स्थिर न रह सकी ,इस सीट पर उपचुनाव में एक बार फिर से कांग्रेस के कांतिलाल के हाथों भाजपा पस्त हो गई ।


Body:भुरिया बाद का दबदबा इतना अधिक था कि झाबुआ अलीराजपुर का कोई सरकारी पन्ना उनकी मर्जी के बिना इधर से उधर नहीं होता । कभी केंद्र में सोनिया गांधी के नौ रत्नों में शामिल रहे कांतिलाल ने केंद्र के मंत्रिमंडल में भी अपना खूब दबदबा बनाए रखा। विधानसभा चुनाव में अपने नवासे का राजनीतिक जीवन चमकने के चक्कर मे अपनो के दुश्मन बन बैठे जिसका परिणाम भी नवासे को भोगना पड़ा। प्रदेश में 15 सालों के बाद मिले सत्ता सुख भोगने का तरीका भी संसदीय क्षेत्र की जनता को नागवार गुजरा। 5 महीने पहले आये 1 अनजान व्यक्ति के हाथों कांतिलाल भूरिया ओर उनके नवासे विक्रांत भूरिया को करारी हार मिली । इससे तो लगता है कि भूरिया के सिपहसालारो में विभीषण ओं की फौज थी जिसने न केवल कांग्रेस को खोखला किया बल्कि भाजपा को मजबूत होने में भी मदद की ।


Conclusion:भाजपा ने कांतिलाल भूरिया को ऐसा घेरा की भूरिया जाल में उलझ ही रह गए । भाजपा प्रत्याशी की घोषणा से पहले भूरिया ने पूरी लोकसभा में अपना प्रचार कर दिया था किंतु वे अपने विधायकों ,कार्यकर्ताओं और नेताओं को संतुष्ट नहीं कर पाए, जिसका परिणाम 23 मई को देखने को मिला । जिन विधायकों ने कांतिलाल को अपनी विधानसभाओं से 50000 वोटों की लीड दिलाने की बात कही थी ,वहां से भाजपा ने लीड लेकर जीत दर्ज कराई। संसदीय क्षेत्र में दूसरी बार भाजपा की जीत के साथ झाबुआ- अलीराजपुर में भूरियावाद का भी अंत हो गया। झाबुआ में कांतिलाल भूरिया का जो निवास और कार्यालय 23 मई से पहले दिन रात गुलजार रहता था वहां आज सन्नाटा पसरा है ।
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