झाबुआ। कांग्रेस की परंपरागत सीट अब बीजेपी के खाते में चली गई है. बीजेपी के गुमान सिंह डामोर ने रतलाम-झाबुआ सीट से कांतिलाल को करारी शिकस्त देकर भूरिया युग का अंत कर दिया. इसके पहले पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में डामोर ने उनके बेटे विक्रांत भूरिया के सियासी सफर के शुरूआती दौर में ही ब्रेक लगा दिया था.
मध्यप्रदेश की आदिवासी बाहुल्य झाबुआ-रतलाम सीट कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी, जहां कांग्रेस को पछाड़ना न के बराबर था, 1970 से 2014 तक यहां कांग्रेस के झंडाबरदारों ने बीजेपी का कमल नहीं खिलने दिया, 2014 की मोदी लहर में बीजेपी के दिलीप सिंह भूरिया ने पहली बार कांतिलाल भूरिया को पराजित कर यहां कमल खिलाया था, लेकिन उनके निधन के बाद 2016 में हुए उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया ने फिर से बीजेपी को यहां से बेदखल कर दिया.
हाल में ही संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में फिर बीजेपी के जीएस डामोर ने कांतिलाल भूरिया को उन्हीं के गढ़ में पटखनी दे दी. बीजेपी प्रत्याशी गुमान सिंह डामोर का चुनावी मैनेजमेंट भूरिया के मैनेजमेंट पर भारी पड़ा था. यही वजह है कि भूरिया के गुलजार रहने वाले निवास और कार्यालय में 23 मई के बाद से सन्नाटा पसरा है.
एक दौर ऐसा भी था, जब कांग्रेस के कद्दावर नेता कांतिलाल भूरिया का इतना दबदबा था कि झाबुआ अलीराजपुर का कोई सरकारी पन्ना तक उनकी मर्जी के बिना इधर से उधर नहीं होता था. कभी केंद्र में सोनिया गांधी के 9 रत्नों में शामिल रहे कांतिलाल ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी अपना दबदबा बनाए रखा, लेकिन विधानसभा चुनाव में अपने बेटे का सियासी जीवन चमकाने के चक्कर में अपनों को ही दुश्मन बना बैठे, जिसका नतीजा उनके नवासे को भी भोगना पड़ा.
इस बार के आम चुनाव में बीजेपी ने कांतिलाल भूरिया को ऐसे चक्रव्यूह में फंसाया कि भूरिया निकल ही नहीं पाये और बाकी कसर उनके अपनों की नाराजगी, विरोध ने पूरी कर दी. जिसका खामियाजा 23 मई के नतीजों में देखने को मिला.